Powered By Blogger

Saturday 3 September 2011

अहिंसा से मिली नहीं है, लहू दे के आज़ादी की कीमत चुकाई है.....

आप कहते हैं गांधी बाबा ने कमाल किया, बिना हिंसा, बिना खडग बिना ढाल पाई है.?
और पूछता मैं ये अहिंसा का समर्थन है या कि क्रांतिकारियों की जड़ से सफाई है..
कितने ही क्रांतिकारियों ने प्राण दान किये तब कहीं जाके आज़ादी घर आई है...
प्रेम से, अहिंसा से या दान में मिली नहीं है, लहू से स्वतंत्रता की कीमत चुकाई है... 

                                              -कवि मनवीर 'मधुर'


जिस देश में 1830 का संथाल, 1837 का कूका आन्दोलन, 1839 का भील आन्दोलन, सिख आन्दोलन, नागा साधू आन्दोलन में 4करोड़ भारतीय शहीद हुए.... उसके बाद देश के इतिहास में महान प्रथम स्वतंत्रता संग्राम हुआ जिसमे 1करोड़ 70 लाख भारतीयों ने मातृभूमि के लिए प्राण न्योछावर किये... देश में 7लाख क्रान्तिकारियो जिनमे भगत सिंह, अशफाक उल्लाह खान, बटुकेश्वर दत्त, राजगुरु, सुखदेव, राम प्रसाद बिस्मिल, चंद्रशेखर आजाद, उधम सिंह, राजेंदर लाहिरी, जतिन दास, रोशन लाल, भगवती चरण वोहरा, दुर्गा भाभी जैसे हजारों ने देश की आज़ादी के लिए प्राण न्योछावर कर दिए...
क्या देश इतनी सारी कुर्बानियां भूल गया..???

1857 का महान स्वतंत्रता संग्राम जो अविस्मरणीय था, को कांग्रेसी चाटुकारों ने उस गाँधी को बड़ा दिखाने के लिए इतिहास से मिटा दिया..... इस महान विद्रोह की शुरुआत 1856 में हुई थी.... 1856 में बैरकपुर छावनी में अंग्रेजो ने नए कारतूस इस्तेमाल करने शुरू कर दिया.... इन कारतूसो को बन्दुक में भरने से पहले इनको मुह से छीला जाता था..... इन कारतूसो में गाय और सूअर की चर्बी मिली हुई थी.... जिसका छावनी के एक भारतीय सैनिक को पता चल गया था..... उस समय फौज में भारतीय और ब्रिटिश सैनिको का अनुपात 12:1था..... जब भारतीयों ने इन कारतूसो का विरोध किया तो ब्रिटिश अधिकारियों ने सैनिको को फौज से निकाल दिया.... मंगल पाण्डेय नाम के एक सैनिक ने अपने अंग्रेजी अधिकारी को गोली मार दी.... बाद में 8 अप्रेल 1857 को मंगल पाण्डेय को फांसी दे दी गई...
मंगल पाण्डेय इस संग्राम के 'जनक' थे... लेकिन उनको वो सम्मान कभी ना मिल सका...
अप्रैल 1857में बैरकपुर छावनी में विद्रोह हो गया और विद्रोही भारतीय सैनिको ने बैरकपुर पर कब्ज़ा करके दिल्ली की और रुख करने का एलान किया.... पूरा बंगाल विद्रोहियों से भर गया और विद्रोहियों ने बिहार की तरफ कूच किया.... 10 मई को विद्रोह का दिन चुना गया ताकि पुरे देश में अंग्रेजो को भगाया जा सके.... उस समय झांसी में रानी लक्ष्मीबाई, मराठवाडा में नानाजी राव, राजपुताना में राजपूत, दिल्ली में बहादुरशाह जफ़र, मध्य भारत में तात्या टोपे, बंगाल के नवाब और बिहार कुंवर सिंह और जमींदारों ने विद्रोह का बिगुल बजा दिया.... लेकिन सिंधिया परिवार, कुछ मराठी और कुछ राजपूत रियासतों ने सत्ता के लालच में ब्रिटिश हुकूमत का साथ दिया... अंग्रेजो ने इस विद्रोह को कुचलने में पूरी ताकत लगा दी और कुछ जयचंदों और मीरजाफर जैसे गदारो की वजह से अंग्रेजो ने 1857 में इस विद्रोह को काबू में कर लिया....इस विद्रोह में झांसी की रानी लक्ष्मीबाई को शहीद होना पड़ा.....
कुछ सफेदपोश गद्दारों ने इसे 'ग़दर' का नाम दिया है...
वीर सावरकर (1883-1966) अतुलनीय देशभक्त और भारत माता के एक महान सपूत और पहले इतिहासकार हैं जिन्होंने 1857 के युद्ध को "भारत की आजादी की पहली लड़ाई" अपनी पुस्तक में घोषित किया...
अगर वो क्रान्ति तब सफल हो गई होती तो आज हमारे देश के हालत कुछ और होते... भगत सिंह को कच्ची उम्र में क्रांति का वरण ना करना पड़ता... इस गयासुदीन और गांधी का इतना नाम होता... पाकिस्तान होता... हम आज सुकून से अपने देश में रह रहे होते...

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की कुछ विभूतियाँ-

वन्दे मातरम... जय हिंद... जय भारत...

1 comment:

  1. न जाने कितने झूले थे फाँसी पर कितनों ने गोली खाई थी
    क्यों जूठ बोलते हो साहब की चरखे से आजादी आई थी।

    ReplyDelete