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Saturday 31 December 2011

निराधार अंग्रेजी नववर्ष और भारतीय संवत्सर का श्रेष्ठता और वरिष्ठता बोध...

भारत सदैव ही 'विश्व-गुरु' रहा है... फिर हम अपनी 'सर्वश्रेष्ठता का गर्व' क्यों ना करें.??
अंग्रेजी नववर्ष और पश्चिमी 'असभ्यता' का अन्धानुकरण करने वालो...
अपने अन्दर की छुपी हुई मानसिक कायरता की पीठ समय समय पर दिखाने वालो...
अंग्रेजो के मानसिक गुलामो... काले अंग्रेजो...
विश्व की सवश्रेष्ठ सभ्यता भारतीय सभ्यता के बारे में भी जानो--

विक्रम संवत अथवा बिक्रम सम्बत कैलेण्डर भारत में सर्वाधिक प्रयोग होने वाला है जबकि यह नेपाल का आधिकारिक कैलेण्डर है...
विक्रम सम्वत की स्थापना उज्जैन के राजा विक्रमादित्य ने 56 ईसा पूर्व शकों पर अपनी विजय के बाद की थी...
इस विषय में समकालीन राजा चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य का नाम आता है जो गलत है...
यह चन्द्र पंचांग पर आधारित है और प्राचीन हिन्दू पंचांग और वैदिक समय के पंचांग का अनुसरण करता है... यह सौर गणना पर आधारित ग्रेगोरियन कैलेण्डर से 56.7 वर्ष वरिष्ठ है... और वरिष्ठता क्या होती है ये ओलम्पिक में सौ मीटर दौड़ स्पर्धा के द्वितीय स्थान पर आये धावक से पूछना.??
भारत में आधिकारिक रूप से शक संवत को मान्यता प्राप्त है... मगर भारतीय संविधान की 'प्रस्तावना' के हिंदी संस्करण में संविधान को अपनाने की तिथि 26 नवम्बर 1949 विक्रम संवत के अनुसार मार्गशीर्ष शुक्ल सप्तमी संवत 2006 है....
हिन्दू पंचांग हिन्दू समाज द्वारा माने जाने वाला कैलेंडर है.. इसके भिन्न-भिन्न रूप मे यह लगभग पूरे भारत मे माना जाता है... पंचांग नाम पांच प्रमुख भागों से बने होने के कारण है, यह है: पक्ष, तिथी, वार, योग और कर्ण... एक साल मे 12 महीने होते है... हर महिने मे 15 दिन के दो पक्ष होते है, शुक्ल और कृष्ण... पंचांग (पंच + अंग = पांच अंग) हिन्दू काल-गणना की रीति से निर्मित पारम्परिक कैलेण्डर या कालदर्शक को कहते हैं... पंचांग नाम पाँच प्रमुख भागों से बने होने के कारण है, यह है- तिथि, वार, नक्षत्र, योग और करण... इसकी गणना के आधार पर हिंदू पंचांग की तीन धाराएँ हैं- पहली चंद्र आधारित, दूसरी नक्षत्र आधारित और तीसरी सूर्य आधारित कैलेंडर पद्धति... भिन्न-भिन्न रूप में यह पूरे भारत में माना जाता है...
एक साल में 12 महीने होते हैं... प्रत्येक महीने में 15 दिन के दो पक्ष होते हैं- शुक्ल और कृष्ण... प्रत्येक साल में दो अयन होते हैं... इन दो अयनों की राशियों में 27 नक्षत्र भ्रमण करते रहते हैं... 12 मास का एक वर्ष और 7 दिन का एक सप्ताह रखने का प्रचलन विक्रम संवत से शुरू हुआ... महीने का हिसाब सूर्य व चंद्रमा की गति पैर रखा जाता है... यह 12 राशियाँ बारह सौर मास हैं... जिस दिन सूर्य जिस राशि मे प्रवेश करता है उसी दिन की संक्रांति होती है... पूर्णिमा के दिन चंद्रमा जिस नक्षत्र मे होता है उसी आधार पर महीनों का नामकरण हुआ है... चंद्र वर्ष, सौर वर्ष से 11 दिन 3 घड़ी 48 पल छोटा है... इसीलिए हर 3 वर्ष मे इसमे एक महीना जोड़ दिया जाता है जिसे अधिक मास कहते हैं...
जिस तरह जनवरी अंग्रेज़ी का पहला महीना है उसी तरह हिन्दी महीनों में चैत वर्ष का पहला महीना होता है...
हम इसे कुछ इस तरह से समझ सकते हैं-
मार्च-अप्रैल                         -चैत्र (चैत)
अप्रैल-मई                   -वैशाख (वैसाख)
मई-जून                         -ज्येष्ठ (जेठ)
जून-जुलाई                 -आषाढ़ (आसाढ़)
जुलाई-अगस्त              -श्रावण (सावन)
अगस्त-सितम्बर           -भाद्रपद (भादो)
सितम्बर-अक्टूबर         -अश्विन (क्वार)
अक्टूबर-नवम्बर        -कार्तिक (कातिक)
नवम्बर-दिसम्बर      -मार्गशीर्ष (अगहन)
दिसम्बर-जनवरी                  -पौष (पूस)
जनवरी-फरवरी                   -माघ (माह)
फरवरी-मार्च                -फाल्गुन (फागुन)
नववर्ष ज़रूर मनाऐं परन्तु इस बार 22 मार्च को हर्षोल्लास के साथ...
ताकि दुनिया को भी पता चले कि हमें अपनी संस्कृति जान से प्यारी है...
हमारा तो नया साल होगा.....
शुभ संवत 2069 जो की प्रभात वेला में, दिए जला कर, मंगल ध्वनियों के साथ,
22 मार्च 2012 को शुभारम्भ होगा... तब हम कहेंगे...
****आपको नव वर्ष की शुभ कामनाएं... *****

आप सबसे अनुरोध है कि भारतीय नव वर्ष का अधिक से अधिक प्रचार-प्रसार और समर्थन करे...

शुभकामनाएं मध्य रात्रि में क्यों नहीं देनी चाहिए.??
संध्या काल के आरम्भ होते ही रज तम का प्रभाव वातावरण में बढ़ने लगता है अतः इस काल में आरती करते हैं और संध्या काल में किये गए धर्माचरण हमें उस रज तम के आवरण से बचाता है... परन्तु आजकल पाश्चात्य संस्कृति के अँधानुकरण करने के चक्रव्यूह में फंसे हिन्दू इन बातों का महत्व नहीं समझते... मूलतः हमारी भारतीय संस्कृति में कोई भी शुभ कार्य मध्य रात्रि नहीं किया जाता है परन्तु वर्तमान समय में एक पैशाचिक कुप्रथा आरम्भ हो गयी है और वह की लोग मध्य रात्रि में ही शुभकामनाएं देते हैं और और फलस्वरूप उन शुभकामनाओं का कोई प्रभाव नहीं पड़ता... जैसे पाश्चात्य संस्कृति के अनुसार नववर्ष मनाते हैं और सभी लोग मध्य रात्रि में ही नए वर्ष की शुभकामनाएं देने लगते हैं... कारण है समाज में धर्म शिक्षण का अभाव है और ऊपर से मीडिया ने सर्व सत्यानाश कर रखा है आजकल गाँव में भी शहरों की तरह सब कुछ होने लगा है... हमारी भारतीय संस्कृति तम से रज और रज से सत्व और ततपश्चात त्रिगुणातीत होने का प्रवास सिखाती है परन्तु आज सात्विकता क्या है यह भी अधिकांश हिन्दुओं को पता नहीं है.??
हिन्दू पर्व मानव के मन में सात्विकता जगाते हैं, चाहे वे रात में हों या दिन में... जबकि अंग्रेजी पर्व नशे और विदेशी संगीत में डुबोकर चरित्रहीनता और अपराध की दिशा में ढकेलते हैं... इसलिए जिन "मानसिक गुलामों" को इस अंग्रेजी और ईसाई नववर्ष को मनाने की मजबूरी हो, वे इसका भारतीयकरण कर मनाएं व एक जनवरी को निर्धनों को भोजन कराएं, बच्चों के साथ कुष्ठ आश्रम, गोशाला या मंदिर में जाकर दान-पुण्य करें, 31 दिसम्बर की रात में अपने गांव या मोहल्ले में भगवती जागरण करें, जिसकी समाप्ति एक जनवरी को प्रातः हो, अपने घर, मोहल्ले या मंदिर में 31 दिसम्बर प्रातः से श्रीरामचरितमानस का अखंड पारायण प्रारम्भ कर एक जनवरी को प्रातः समाप्त करें, एक जनवरी को प्रातः सामूहिक यज्ञ का आयोजन करें, एक जनवरी को प्रातः बस और रेलवे स्टेशन पर जाकर लोगों के माथे पर तिलक लगाएं...

भारतीय संस्कृति के हित में इस कविता को भी याद रखना चाहिए-
अँग्रेजी सन को अपनाया,
विक्रम संवत भुला दिया है...
अपनी संस्कृति, अपना गौरव
हमने सब कुछ लुटा दिया है...
जनवरी-फरवरी अक्षर-अक्षर
बच्चों को हम रटवाते हैं...
मास कौन से हैं संवत के,
किस क्रम से आते-जाते हैं...
व्रत, त्यौहार सभी अपने हम
संवत के अनुसार मनाते हैं...
पर जब संवतसर आता है,
घर-आँगन क्यों नहीं सजाते...
माना तन की पराधीनता
की बेड़ी तो टूट गई है...
भारत के मन की आज़ादी
लेकिन पीछे छूट गई है...
सत्य सनातन पुरखों वाला
वैज्ञानिक संवत अपना है...
क्यों ढोते हम अँग्रेजी को
जो दुष्फलदाई सपना है...
अपने आँगन की तुलसी को,
अपने हाथों जला दिया है...
अपनी संस्कृति, अपना गौरव,
हमने सब कुछ लुटा दिया है...
सर्वश्रेष्ठ है संवत अपना
हमको इसका ज्ञान नहीं हैं...





 









वन्दे मातरम्...
जय हिंद... जय भारत...

Monday 26 December 2011

अभय क्रांतिकारी और अंग्रेजो को उनके घर में घुसकर मारने वाले... वीर शहीद उधम सिंह के जन्म दिवस पर उनको शत शत शत नमन...

शहीद-ए-आजम उधम सिंह एक ऐसे महान क्रांतिकारी थे जिन्होंने जलियांवाला बाग हत्याकांड का बदला लेने के लिए अपना जीवन देश के नाम कुर्बान कर दिया... लंदन में जब उन्होंने माइकल ओ. ड्वायर को गोली से उड़ाया तो पूरी दुनिया में इस भारतीय वीर की गाथा फैल गई...

शहीद उधम सिंह (वास्तविक नाम शेर सिंह जम्मू) का जन्म 26 दिसम्बर 1899 को पंजाब के संगरूर जिले के गांव सुनाम में सिख परिवार में हुआ था.. इनके पिता का नाम सरदार टहल सिंह कंबोज(अमृत लेने से पहले का नाम चुहाड़ सिंह) और माता का नाम नारायणी था.. सरदार टहल सिंह पास के गाँव उपल में रेलवे क्रोसिंग पर चौकीदार थे.. शेर सिंह की माँ का देहावसान 1901 में हुआ और 1907 में उनके पिता भी चल बसे... भाई किशन सिंह रागी की सहायता से बालक शेर सिंह और उसके बड़े भाई मुक्ता सिंह को पुतलीघर, अमृतसर के केंद्रीय खालसा अनाथालय में ले जाया गया... जहाँ उनका नया नामकरण हुआ... शेर सिंह अब उधम सिंह बन गए और मुक्ता सिंह को नाम मिला साधू सिंह... सन 1917 में भाई साधू सिंह की अकाल मृत्यु के बाद उधम सिंह इस दुनिया में अकेले रह गए..
उधम सिंह विभिन्न शिल्प कलाओं में निपुण थे... उन्होंने पंजाबी, हिंदी, उर्दू व अंग्रेजी में निपुणता हासिल की और 1918 में मेट्रिक पास करके, 1919 में अनाथालय छोड़ दिया...

13 अप्रैल 1919 को अमृतसर के जलियांवाला बाग़ में करीब बीस हजार निहत्थे लोग मुख्यत: पंजाबी इकट्ठे हुए.. यह सभा डॉ सत्यपाल और डॉ सैफुद्दीन किचलू की रोलेट एक्ट के तहत गिरफ्तारी के विरोध में थी जिसे कुछ स्थानीय नेताओं ने अंग्रेजी सरकार का विरोध करते हुए सम्बोधित किया... यहाँ पर उधम सिंह अपने अनाथालय के दोस्तों के साथ कडकती गर्मी की दोपहरी के बाद लोगो को पानी पिला रहे थे..
थोड़ी देर बाद ही 90 सैनिकों का एक दल राइफल और खुकरी से लैस होकर दो बख्तरबंद गाड़ियों के साथ जिसमे बहुत सारी मशीन गन थीं, मार्च करता हुआ आ पहुंचा... गाड़ियाँ बाग के अन्दर तंग रास्ते की वजह से प्रविष्ट नही कर पा रही थी.. ब्रिगेडियर-जनरल रेगिनाल्ड डायर के हाथ में कमान थी... सैन्य-दल ने करीब शाम 5 :15 पर बाग़ में प्रवेश किया... बिना किसी चेतावनी के डायर ने फायरिंग करने का आदेश दिया खासतौर से उस जगह जहाँ भीड़ ज्यादा थी... हमला दस मिनट तक जारी रहा.. और एकमात्र प्रवेश द्वार सैनिको द्वारा बंद किया हुआ था... लोगो ने दीवार कूदकर जाने की कोशिश की.. कुछ गोलियों से बचने के लिए कुँए में कूद गए...
एक अनुमान के अनुसार अकेले कुँए से ही 120 लाशें निकाली गई थी.. सैकड़ों लोग मारे गए और हजारों घायल हुए.. आधिकारिक सूत्रों के अनुसार 379 लोग ( 337 आदमी, 41 लड़के और एक छः सप्ताह का बच्चा) मारे गए और 200 जख्मी हुए... अन्य रिपोर्टों के अनुसार एक हजार से ज्यादा 1300 तक लोग मारे गए थे.. पंडित मदन मोहन मालवीय और लाला गिरधारी लाल के अनुसार हजार से ज्यादा लोग मारे गए.. पंडित श्रृद्धानन्द के अनुसार यह संख्या 1500 से ज्यादा थी जबकि अमृतसर के सिविल सर्जन डॉ स्मिथ ने यह संख्या 1800 बताई.. राजनैतिक कारणों से वास्तविक मृत और घायलों की संख्या कभी बताई ही नही गई.. वास्तविक संख्या पर बहस आज तक जारी है... आधिकारिक सूत्रों के अनुसार करीब 1650 गोलियां चलाई गई थी...

इस जघन्य हत्याकाण्ड के लिए उधम सिंह ने मुख्य रूप से पंजाब के लेफ्टिनेंट गवर्नर माइकल ओ डायर को दोषी माना.. नए खुलासो के अनुसार इस हत्याकांड को अंग्रेजी सरकार का समर्थन था और वो भारतियों को सबक सिखाना चाहते थे ताकि सारे भारत और पंजाब में उनका भय बना रहे...
इस घटना ने उधम सिंह को हिला कर रख दिया.. और उनके जीवन में एक नया मोड़ ला दिया...
उधम सिंह ने स्वर्ण मन्दिर के पवित्र सरोवर में स्नान करके प्रतिज्ञा ली कि वो इस घटना का प्रतिशोध लेंगे और देश का सम्मान पुनर्स्थापित करेंगे...

उधम सिंह सक्रिय राजनीति में कूद पड़े और एक समर्पित क्रांतिकारी बन गए..  उन्होंने अनाथालय छोड़ दिया और एक देश से दूसरे देश घूमने लगे, अपने गुप्त उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए, लंदन में अपने शिकार तक पहुंचने के लक्ष्य के लिए जीवन के विभिन्न चरणों में उन्होंने शेर सिंह, ऊधम सिंह, उधन सिंह, उड़े सिंह, उदय सिंह, फ्रैंक ब्राजील, और राम मोहम्मद सिंह आजाद आदि नाम रखे..  वह 1920 में अफ्रीका पहुँचे, 1921 में नैरोबी के लिए आगे बढे... उधम सिंह ने संयुक्त राज्य अमेरिका के लिए कोशिश की लेकिन असफल रहे... वह 1924 में भारत लौटे और उसी वर्ष अमेरिका पहुंचे जहाँ उधम सिंह सक्रिय रूप से ग़दर पार्टी में शामिल हो गए...  ग़दर पार्टी भारतीय समूह था जो अपनी क्रांतिकारी गतिविधियों और संस्थापक सोहन सिंह भकना के नाम से जाता था... उधम सिंह ने स्वतंत्रता संग्राम के लिए अमेरिकी और संगठित प्रवासी भारतीयों में क्रांतिकारी गतिविधियों के लिए तीन साल बिताए... भगत सिंह के आदेश पर वह जुलाई 1927 में भारत लौट आए... वह अमेरिका से 25 साथियों के साथ रिवाल्वर और गोला बारूद की एक खेप लाये थे... 30 अगस्त 1927 को ऊधम सिंह को अमृतसर में बिना लाइसेंस हथियारों के लिए गिरफ्तार किया गया था... कुछ रिवाल्वर, गोला - बारूद और निषिद्ध ग़दर पार्टी  के "ग़दर-इ-गूंज" ("विद्रोह की आवाज") की कागज की प्रतियां जब्त की गई... उन पर शस्त्र अधिनियम की धारा 20 के तहत मुकदमा चलाया गया था... उधम सिंह को पांच साल सश्रम कारावास की सजा सुनाई गई थी... वह चार साल के लिए जेल में रहे... भारतीय क्रांति के शिखर चन्द्रशेखर आजाद और भगत सिंह और उनके साथी राजगुरु-सुखदेव अब इस दुनिया में नही थे...
ऊधम सिंह को जेल से 23 अक्टूबर 1931 को रिहा किया गया था... वह अपने पैतृक गाँव सुनाम के लिए लौट आए, लेकिन उनकी क्रांतिकारी गतिविधियों के कारण स्थानीय पुलिस द्वारा लगातार उत्पीड़न के कारण वो वापस अमृतसर आये... वहां उन्होंने राम मोहम्मद सिंह आजाद नाम के साथ साइन बोर्ड पेंटर की दूकान खोल ली..
तीन साल तक ऊधम सिंह ने पंजाब में अपनी क्रांतिकारी गतिविधियों को जारी रखा और लंदन तक पहुँचने के लिए ओ' डायर की हत्या की योजना पर भी काम किया... उनके आंदोलनों पर पंजाब पुलिस द्वारा लगातार निगरानी की जा रही थी...  वह 1933 में अपने पैतृक गांव चले गए और फिर वहां से कश्मीर में एक गुप्त क्रांतिकारी मिशन पर, जहाँ वो पुलिस की नजर से दूर थे और जर्मनी के लिए भाग निकले...
उधम सिंह अंतत: 1934 में लंदन पहुँच गए और 9 एडलर स्ट्रीट, व्हाइटचैपल (ईस्ट लंदन) कमर्शियल रोड के पास रहने लगे...
ब्रिटिश पुलिस की गुप्त रिपोर्ट के मुताबिक, उधम सिंह 1934 के शुरूआती समय तक भारत में थे, फिर वह इटली पर पहुंच गए और 3-4 महीनों के लिए वहाँ रुके थे... इटली से वह फ्रांस, स्विट्जरलैंड और ऑस्ट्रिया के लिए रवाना हुए और अंतत: 1934 में इंग्लैंड पहुंच गए, जहां उन्होंने कार खरीदी और यात्रा के उद्देश्यों के लिए अपनी कार का इस्तेमाल किया... उनका असली उद्देश्य तथापि, हमेशा माइकल ओ' डायर ही था... उधम सिंह ने एक छः चैंबर रिवॉल्वर एमुनेशन के साथ खरीदी...कई अवसरों को छोड़ने के बावजूद, उधम सिंह एक सही समय की प्रतीक्षा कर रहे थे ताकि वह हत्या को अधिक प्रभावी बना सकें और वैश्विक ध्यान आकर्षित कर सकें...

जलियांवाला बाग़ हत्याकांड के 21 साल बाद वह अवसर 13 मार्च 1940 को आया जब ईस्ट इंडिया एसोसिएशन और रायल सेंट्रल एशियन सोसायटी की एक संयुक्त बैठक काकस्टन हॉल में निर्धारित हुई...

और वक्ताओं में माइकल ओ' डायर भी था...
उधम सिंह ने अपनी रिवाल्वर किताब में छुपाई जो बीच में से रिवाल्वर के आकार में काटी हुई थी और काकस्टन हॉल में फ्रैंक ब्राजील नामक वर्दीधारी सैनिक के रूप में प्रवेश कर लिया... और दीवार के पीछे स्थिति संभाल ली... बैठक के अंत में जब सब लोग उठ खड़े हुए और डायर, जेटलैंड से बात करने के लिए मंच की ओर चला गया... उधम सिंह ने अपनी रिवाल्वर निकाल कर डायर पर दो फायर किये और वो तुरंत मर गया..फिर उधम सिंह ने भारत के राज्य सचिव जेटलैंड पर गोली चलाई और उसे घायल कर दिया लेकिन गंभीर नहीं... फिर उन्होंने लुइस डेन को एक गोली मार दी, जिससे उसकी रेडियस हड्डी टूट गई और गंभीर चोटों के साथ भूमि पर गिर पड़ा.. एक गोली लोर्ड लैमिंगटन के दायें हाथ पर लगी थी... ऊधम सिंह का भागने का कोई इरादा नहीं था... उन्हें मौके पर ही गिरफ्तार कर लिया गया...
उनके हथियार, एक चाकू, उनकी डायरी, उस दिन चलाई गोली के साथ अब स्कॉटलैंड यार्ड के 'ब्लैक संग्रहालय' में रखे हैं...

विडंबना यह है कि प्रेस को एक बयान में, महात्मा गांधी ने काक्सटन हॉल शूटिंग की निंदा की थी और कहा- "the outrage has caused me deep pain. I regard it as an act of insanity...I hope this will not be allowed to affect political judgement".
एक सप्ताह के बाद उनके समाचार पत्र 'हरिजन' ने लिखा-- "We had our differences with Michael O'Dwyer but that should not prevent us from being grieved over his assassination. We have our grievances against Lord Zetland. We must fight his reactionary policies, but there should be no malice or vindictiveness in our resistance. The accused is intoxicated with thought of bravery".
जवाहर लाल नेहरू ने अपने नेशनल हेराल्ड में लिखा है--
"Assassination is regretted but it is earnestly hoped that it will not have far-reaching repercussions on political future of India. We have not been unaware of the trend of the feeling of non-violence, particularly among the younger section of Indians. Situation in India demands immediate handling to avoid further deterioration and we would warn the Government that even Gandhi's refusal to start civil disobedience instead of being God-send may lead to adoption of desperate measures by the youth of the country".

नेताजी सुभाष चंद्र बोस ही अकेले सार्वजनिक नेता थे जिन्होंने ऊधम सिंह की कार्रवाई को मंजूरी दी..
RC Aggarwara 'भारत और राष्ट्रीय आंदोलन के संवैधानिक इतिहास' में लिखते हैं-- ऊधम सिंह के साहसिक कृत्य ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में नए सिरे से संघर्ष के लिए बिगुल फूंका...
वीर सावरकर ने इसे वीरतापूर्ण कार्य बताया…
दुनिया भर के प्रेस व अखबारों ने जलियांवाला बाग की कहानी को याद किया और माइकल ओ' डायर को इन घटनाओं के लिए पूरी तरह जिम्मेदार ठहराया...
लंदन के टाइम्स द्वारा उधम सिंह को "स्वतंत्रता का लड़ाका" बताया गया था और उनकी कार्रवाई को " दलित भारतीय लोगों के मन में दबे हुए रोष की अभिव्यक्ति "...
Bergeret, रोम से बड़े पैमाने में प्रकाशित, में साहसी के रूप में ऊधम सिंह की कार्रवाई की प्रशंसा की...

पुलिस कस्टडी में उधम सिंह ने टिप्पणी की- "क्या जैटलैंड मर गया.??" अपने पेट के बायीं तरफ हाथ से इशारा करते हुए उधम सिंह ने कहा- "मैंने उसके यहाँ पर दो डाली थी..सही यहाँ पर.."
उसके बाद कुछ मिनट उधम सिंह चुप रहे और फिर कहा- "केवल एक ही मरा?? ओह... मैंने तो सोचा मैंने ज्यादा मारे हैं.. मैं धीमा हो गया था... तुम्हे पता है .. वहाँ बहुत सारी महिलायें थी.."

1 अप्रैल 1940 को ऊधम सिंह पर औपचारिक रूप से माइकल ओ' डायर की हत्या का आरोप लगाया गया था...
जबकि ब्रिक्सटन जेल में ऊधम सिंह सुनवाई का इंतजार कर 42 दिन भूख हड़ताल पर चले गए और उन्हें रोज जबरन खिलाया जाता था...
 4 जून 1940, को सुनवाई में उनसे जब नाम पूछा गया

तो उन्होंने बताया-"राम मोहम्मद सिंह आजाद"..
उधम सिंह को दोषी पाया गया और जस्टिस एटकिंसन ने उन्हें मौत की सजा सुनाई...
31 जुलाई 1940 को ऊधम सिंह को पेंटोनविले जेल में फांसी पर लटका दिया था... उस दोपहर के बाद में जेल के मैदान के भीतर दफनाया गया था...

जुलाई 1974 में सुल्तानपुर लोधी के विधायक एस साधु सिंह थिंड ने शहीद उधम सिंह के अवशेषों को स्वदेश प्रत्यावर्तित करने का अनुरोध किया और इंदिरा गाँधी से ब्रिटिश सरकार से बात करने को कहा.. और ब्रिटिश सरकार ने शहीद के अवशेष लौटाने की बात स्वीकार कर ली... स्वयं विधायक एस साधु सिंह थिंड भारत सरकार के विशेष दूत बनकर इंग्लैंड गए और शहीद उधम सिंह के अवशेष भारत लेकर आये.. स्वदेश आने पर 'शहीद' जैसा स्वागत किया गया.. दिल्ली हवाई अड्डे पर 'देह अवशेष ताबूत' का स्वागत करने वाले डॉ शंकर दयाल शर्मा जो उस समय कांग्रेस के अध्यक्ष थे और ज्ञानी जैल सिंह, पंजाब के मुख्यमंत्री थे... इंदिरा गांधी, प्रधानमंत्री ने भी पुष्पांजलि अर्पित की... बाद में पंजाब के उनके जन्मस्थान सुनाम में अंतिम संस्कार किया गया..
उनकी राख और अस्थियों को सतलुज नदी में विसर्जित किया गया.. 

और भारत का महान शहीद भारत में ही विलीन हो गया..


















वन्दे मातरम्...
जय हिंद... जय भारत...