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Thursday 28 July 2011

गाँधी का उन्मुक्त या नाटकीय सेक्स जीवन.??

गाँधी का उन्मुक्त या नाटकीय सेक्स जीवन-

भारत पर जबरन थोपे गये राष्ट्रपिता मोहनदास कर्मचन्द गाँधी के जीवन पर इंगलैण्ड के सुप्रसिद्ध इतिहासकार जेड ऐडम्स ने अपने पंद्रह वर्ष के लम्बे अध्ययन और गहन शोधों के आधार पर 288 पृष्ठ की एक किताब लिखी है। जिसे “Gandhi : Naked Ambition” नाम दिया गया है। जिसका हिन्दी अनुवाद किया जाये तो इसे-”गाँधी की नग्न महत्वाकांक्षानाम दिया जा सकता है। इस किताब को आधार बनाकर अनेक भारतीय लेखकों ने भी गाँधी पर लिखने का साहस किया है, बल्कि यह कहना अधिक उचित होगा कि उक्त किताब के बहाने गाँधी के यौन जीवन पर उंगली उठाने का साहस जुटाया है। गाँधी को यौन कुण्ठाओं से ग्रस्त बताने वाले उक्त लेखक की पुस्तक की आड में अनेक भारतीय लेखक स्वयं भी अपनी अनेकों प्रकार की दमित कुण्ठाओं को बाहर निकालने का प्रयास कर रहे हैं। मैं भी इनमें से एक हूँ और उक्त पुस्तक के बहाने मैं भी गाँधी पर थोडा खुलकर लिखने का खतरा उठा रहा हूँ। आशा करता हूँ कि सुधिपाठक बिना पूर्वाग्रह अपनी अभिव्यक्तियाँ देंगे।
उक्त पुस्तक में गाँधी के ब्रह्मचर्य के प्रयोगों और इन प्रयोगों में शामिल स्त्रियों के संक्षिप्त उद्गारों के आधार पर यह सिद्ध करने का प्रयास किया गया है कि गाँधी ब्रह्मचर्य के प्रयोगों के नाम पर 16 वर्ष की कमसिन लडकियों, युवतियों तथा अधेड भारतीय तथा विदेशी महिलाओं के साथ अन्तरंगता से संलिप्त थे। गाँधी स्वयं निर्वस्त्र होकर, इन स्त्रियों को नंगी होकर अपने साथ सोने एवं बन्द बाथरूम में अपने साथ नहाने को सहमत या विवश किया करते थे। गाँधी के आश्रम के कुछ लोगों ने इन गतिविधियों पर दबी जुबान में आपत्ति भी की थी, जिन्हें गाँधी एवं गाँधी के अनुयाईयों की असप्रसन्नता का शिकार होना पडा। यहाँ तक की गाँधी के समय के अनेक वरिष्ठ स्वतन्त्रता सैनानियों ने इसी कारण गाँधी से दूरियाँ बना ली थी और वे यदाकदा ही उनसे बहुत जरूरी होने पर, सार्वजनिक बैठकों या कार्यक्रमों में औपचारिक रूप से मिला करते थे। जिनमें सरदार वल्लभ भाई पटेल भी शामिल थे। मेरे पास जितनी जानकारी उपलब्ध है, उसके अनुसार इस किताब में ऐसा काफी मसाला है, जिसे आज की जिज्ञासु युवा पीढी आठ सौ रुपये में खरीदकर पढना चाहेगी!
यद्यपि गाँधी के यौन जीवन पर उंगली उठाना आज के समय में उतना खतरनाक नहीं रहा है, जितना कि तीस वर्ष पहले हो सकता था। भारतीय राजनीति में बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक कांशीराम के उदय के साथ-साथ गाँधी और काँग्रेस के बारे में बहुत कुछ आम जनता को ज्ञात हो चुका है। अतः वर्तमान में गाँधी पर लिखने में उतना खतरा नहीं है, बल्कि गाँधी पर लिखने में प्रचारित होने और माल कमाने का पूरा अवसर है। उक्त किताब के लेखक ने भी यही किया है। मात्र 288 पृष्ठ की पुस्तक की कीमत आठ सौ (800) रुपये देखकर कोई भी समझ सकता है कि किताब को लिखने के पीछे कमाई करना ही बडा लक्ष्य है।
मेरा मानना है कि आज की युवा और पौढ पीढी बहुत संजीदा, जागरूक है और सच्चाई को जानने को उत्सुक है। इस देश में गाँधी को बेनकाब करने वालों को जानने के साथ-साथ और गाँधी को बेनकाब होते हुए देखने वालों की अच्छी-खासी तादाद है। इसलिये किताब भी बिकेगी और वर्ड की बेस्ट सेलर बुक्स में भी शामिल हो सकती है। इसके बावजूद भी मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि गाँधी को चाहे कितना ही बेनकाब किया जाये, अभी वह समय नहीं आया है, जबकि गाँधी की मूर्तियों को तोडने के लिये सरकारी आदेश जारी किये जायें। लेकिन एक दिन ऐसा अवश्य आयेगा, जबकि इस कथित ढोंगी महात्मा का सच इस देश की जनता के साथ-साथ इस देश की सरकार भी स्वीकारेगी! मुझे व्यक्तिगत रूप से गाँधी केउन्मुक्त या नाटकीय सेक्स जीवनयाब्रह्मचर्य के प्रयोगों के बहाने सेक्स की तृप्तिको लेकर उतनी आपत्ति नहीं है, जितनी कि गाँधी द्वारा अनेक महिलाओं के सेक्स एवं पारिवारिक जीवन को बर्बाद करने को लेकर है और इससे भी अधिक आपत्तिजनक तो गाँधी को इस देश परमहात्मा एवं राष्ट्रपिताके रूप में थोपे जाने पर है।
जहाँ तक गाँधी या नेहरू या अन्य किसी भी ऐसे व्यक्ति के सेक्स जीवन को उजागर करने या सार्वजनिक रूप से उछालने की बात है, जो आज अपना पक्ष रखने के लिये दुनिया में जीवित नहीं है, ऐसा करना तो नैतिक रूप से उचित है और हीं कानूनी रूप से ऐसा करना न्यायसंगत! सेक्स किसी भी व्यक्ति के जीवन में नितान्त व्यक्तिगत और महत्वपूर्ण विषय है। जिसे तो उघाडा जाना चाहिये और हीं प्रचारित या प्रसारित किया जाना जरूरी है। उक्त पुस्तक के लेखक ने अपने शोध में गाँधी को दमित सेक्स कुण्ठाओं से ग्रस्त पाया है। यदि गुपचुप सेक्स करना कुण्ठाग्रस्त होना नहीं और ब्रह्मचर्य के प्रयोग के नाम पर अपनी मनपसन्द स्त्रियों के साथ यौन सुख पाना कुण्ठाग्रस्त होना है तो लेखक की बात से सहमत होने में किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिये, लेकिन यह सच नहीं है। क्योंकि यौन विषयों पर हमारे देश में सार्वजनिक रूप से चर्चा करना भी अश्लीलता माना जाता है, लेकिन आज का युवा थोडी हिम्मत दिखाने का प्रयास कर रहा है। परन्तु इस देश का ढाँचा इस प्रकार से बनाया गया है या कालान्तर में ऐसा बन गया है कि सार्वजनिक रूप से समाज अपने ढाँचे से बाहर किसी को निकलने की आजादी नहीं देता। बेशक चोरी-छुपे आप कुछ भी करो।
इस सन्दर्भ में  दक्षिण भारतीय फिल्मों की सुप्रसिद्ध अभिनेत्री खुश्बू के बयान (विवाह पूर्व सुरक्षित सेक्स अनुचित नहीं) मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा राधा-कृष्ण के बिना विवाह किये साथ रहने को लेकर की गयी टिप्पणी को पढकर अनेक लोगों ने स्वयं को प्रचारित करवाने के लिये या वास्तव में सुप्रीम कोर्ट को सबक सिखाने के लिये हंगामा किया था। . प्र. हाई कोर्ट में रिट भी दायर की गयी। लेकिन कौन नहीं जानता कि आज या बिगत मानव इतिहास में अपवादों को छोडकर मनचाहा और ताजगीभरा सेक्स पाना, हर उम्र के स्त्री और पुरुष की मनोकामना रही है। हाँ सेक्स के मार्ग में भटकन एवं फिसलन हमेशा रही है। जिसमें कभी कभी हमारे पूज्यनीय समझे जाने वाले ऋषियों से लेकर आज तक के युवा भटकते रहे हैं।
जहाँ तक मोहनदास कर्मचन्द गाँधी के यौन-जीवन पर सार्वजनिक चर्चा का सवाल है तो हम सब जानते हैं कि गाँधी एक अत्यन्त तीक्ष्ण बुद्धि के स्वामी और धर्म का लबादा ओढकर लोगों को मूर्ख बनाने में दक्ष चालाक किस्म के राजनीतिज्ञ थे। जिसने बडी आसानी से दस्तावेजों पर यह सिद्ध कर दिया कि अंग्रेजों की अदालत द्वारा सुनाई गयी फांसी की सजा से भगत सिंह एवं उसके साथियों को बचाने में उनका (गाँधी का) का भरसक प्रयास रहा, लेकिन इसके बावजूद भी भगत सिंह एवं उनके साथियों को नहीं बचाया जा सका।
जबकि सच्चाई सभी जानते हैं कि गाँधी के कारण ही आजाद भारत को भगत सिंह एवं सुभाष चन्द्र बोस जैसे सच्चे सपूतों की सेवाएँ नहीं मिल पायी। गाँधी को भगत सिंह एवं सुभाष चन्द्र बोस तथा इनके सहयोगी फूटी आँख नहीं सुहाते थे। ऐसे व्यक्तित्व के धनी मोहनदास कर्मचन्द के बारे में उक्त किताब लिखी गयी है। जिसके बारे में बहुत सारे लोग जानते हैं कि गाँधी कभी भी अपनी पत्नी के साथ यौन सम्बन्धों से सन्तुष्ट नहीं थे (अधिकतर भारतीयों की भी यही दशा है), इसलिये उसने एक ऐसा बुद्धिमतापूर्ण, किन्तु चालाकी भरा रास्ता खोज निकाला, जिस पर गाँधी के तत्कालीन समकक्षों में भी दबी जुबान तक में विरोध में आवाज उठाने की हिम्मत नहीं थी और जीवन पर्यन्त गाँधी ऐसा ही ढोंगी बना रहा।
आजादी के बाद भी गाँधी को ढोंगी कहने की हिम्मत जुटाने के बजाय, हमने स्वयं को ही ढोंगी बना लिया और गाँधी को इस देश केराष्ट्रपिताके रूप में थोप लिया। वैसे देखा जाये तो ठीक ही किया, क्योंकि इस देश के राष्ट्रपिता स्वामी विवेकानन्द या स्वामी दयानन्द सरस्वती तो हो नहीं सकते थे! क्योंकि जिस देश की संस्कृति ऋषियों की अवैध औलाद (वेदव्यास) की अवैध सन्तानों से (नियोग के बहाने) संचारित होकर महाभारत की गाथा को आज तक गर्व के साथ गाती और फिल्माती हो, उस देश की आधुनिक सन्तानों का सच्चा राष्ट्रपिता यौनेच्छाओं की खुलकर तृप्ति करने वाला मोहनदास कर्मचन्द गाँधी ही हो सकता था।
अन्त में उपरोक्त के अलावा तीन बातें और कहना चाहूँगा-
1. पहली गाँधी दमित सेक्स या यौन कुण्ठाओं से ग्रस्त नहीं था, बल्कि वह अन्त समय तक खुलकर यौनसुख भोगने वाला ऐसा नाटककार और मुखौटे पहने जीवन जीने वाला भोगी था, जिसने जीवनभर स्वयं की पत्नी या अपने परिवार की तनिक भी परवाह नहीं की और जिसने अपनी राजनैतिक इच्छा पूर्ति के लिये केवल इस राष्ट्र के टुकडे होना ही स्वीकार किया, बल्कि कूटनीतिक तरीके से ऐसी परिस्थितियाँ निर्मित कर दी कि भारत के टुकडे होकर ही रहें।
2. दूसरी बात जिसे बहुत कम लोग जानते हैं कि गाँधी केवल अंग्रेज सरकार एवं अंग्रेजी प्रशासन के अन्याय या मनमानियों के विरुद्ध ही अनशन (उपवास) नहीं करता था, बल्कि उसने इस देश के 70 प्रतिशत दबे-कुचले और दमित लोगों के मूलभूत और जीवन जीने के लिये जरूरी हकों को छीनने के लिये भी अनशन का सफल नाटक किया। जिसके दुष्परिणाम इस देश को सदियों तक भुगतने पडेंगे। गाँधी के इसी षडयन्त्र की अवैध सन्तान है-अजा, अजजा एवं अन्य पिछडा वर्ग को नौकरियों में एवं अजा अजजा को विधायिका में लुंजपुंज और कभी खत्म होने वाला आरक्षण।
3. अन्तिम और तीसरी बात-जहाँ तक भारत के इतिहास और वर्तमान को देख कर ईमानदारी से आकलन करने की बात है तो गाँधी से भी अधिक कामुक और यौन लालायित हर आम स्त्री-पुरुष होता है, लेकिन स्त्री को तो हमने अनेक प्रकार की बेडियों में जकड रखा है, जबकि आम साहसी पुरुष यौनसुख हेतु मिलने वाले अवसरों को भुनाने से कभी नहीं चूकता। चूँकि गाँधी, नेहरू, बिल क्लिण्टन या कृष्ण ऐसे बडे व्यक्तित्व हैं, जिनके निजी जीवन की अन्तरंग बातें भी गोपनीय नहीं रह पाती हैं। इसीलिये इन पर किताबें लिखी जायेंगी, बहसें होंगी, अदालतों में याचिकाएँ दायर होंगी और कुछ लोग सडकों पर आकर भी धमाल मचा सकते हैं, लेकिन इसमें कुछ भी अस्वाभाविक या अनहोनी बात नहीं है। यह सब प्राकृतिक है। किसी भी जीव का अध्ययन करके देखा जा सकता है-अनेक मादाओं के झुण्ड में कोई एक शेर, एक बन्दर, एक सियार, एक चीता, एक सांड, एक भैंसा, एक बकरा या एक कुत्ता पाया जाता है और सन्तति का क्रम बिना व्यवधान चलता रहता है। यह अलग बात है कि आधुनिक नारी भी पुरुष की ही भांति प्रत्येक यौन-संसर्ग के दौरान यौनचर्मोत्कर्स की उत्कट लालसा की अवास्तविक और असम्भव कल्पनाओं में विचरण करने लगी है। दुष्परिणामस्वरूप ऐसी राह भटकी महिलाओं में से लाखों को हिस्टीरया जैसी अनेक मानसिक बीमारियों से पीडित होकर, घुट-घुट कर मरते हुए देखा जा सकता है।
लेकिन सवाल उठता है कि ऐसा क्यों? इस सवाल पर विस्तार से लिखने की जरूरत है, लेकिन संक्षेप में इतना ही लिखना चाहूँगा कि सेक्स दो टांगों के बीच का खेल नहीं(जैसा कि समझा जाता है) , बल्कि यह स्वस्थ मनुष्य के दो कानों के बीच (दिमांग) का खेल है। यदि और भी सरलता से कहा जाये तो शारीरक रूप से पूरी तरह स्वस्थ स्त्री-पुरुष के बीच सेक्स 20 प्रतिशत शारीरिक और 80 प्रतिशत मानसिक होने पर ही सुख या चर्मोत्कर्स या चर्मबिन्दु पर पहुँचने का आनन्द लिया जा सकता है। अन्यथा तो सेक्स पुरुषों की क्षणिक कामाग्नि के उबाल को शान्त करने का साधन और स्त्रियों की कामाग्नि प्रज्वलित करने वाली एक आवश्यक बुराई के सिवा कुछ भी नहीं है।
साभार-  डा पुरुषोत्तम मीणा.
सत्य तक पहुँचने के लिए कुछ इन्टरनेट लिंक दे रहा हूँ- 
http://www.straightdope.com/columns/read/2521/did-mahatma-gandhi-sleep-with-virgins
गांधी सम-लैंगिक था-..??
http://www.jpost.com/ArtsAndCulture/Books/Article.aspx?id=214133
 

9 comments:

  1. jitender ji,


    gandhi ji ke bare mey aap jo tipni ki hai. wo meri too samjh se bahar hai.esa hona na mumkin hai.

    baki aap ke rathrwad ka main samman karta hoon.

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  2. विक्रांत जी....
    मैंने अपनी अपनी तरफ से इसमें एक शब्द जोड़ा है "साभार"
    बाकी सब दुनिया में जो किताबे छपी हैं, शोध हुए हैं उन सबका निचोड़ है...
    सत्य तो वही जिसे दुनिया कहे...सबूत तो लोग बहुत सारी बातो का नहीं दे पाते हैं...वैसे मैंने दो इन्टरनेट लिंक भी दिए हैं...????

    जय हिंद...जय भारत...

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  3. bhaut sahi hi bhai, GANDHI THA HI KUTTA TABHI TO USKI MAUT BHI KUTTE JISI HUI, 'AASAMAYA'

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  4. BILKUL SAHI HAI... DHUAN WAHIN UTHTA HAI JAHAN AAG HOTI HAI !

    GANDI WAS NT CHARECTORFUL !

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  5. कुछ तो सच होगा ही ऐसे ही कोई किताब नहीं लिखता

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  6. tum sabne ek baat to sabit kar di duniya bebkoofo se khali nahi hai

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  7. Mere sankuchit soch wale mitron... pranaam.

    Main gandhiwaadi nahi aur na hi congresi hoon. Isliye koi galat fehmi mat rakhna.
    Koi bhi mahaan aadmi, jisne kuch bada kaam kiya ho uske jeewan ka tum agar postmortem karoge to kuch na kuch kharabi to mil hi jayegi... Kami to log Bhagvaan Raam mein bhi nikaal dete hain... to fir Gandhiji to insaan the.

    Itna socho ke usne kuch achha kaam to kiya hai ki nahi? Tumhare baap dadao ne kya kiya aur tum abhi Gandhi ki badnaami karke kaunsa desh ka bhala kar rahe ho?? Duniya mein bahut se log bharat ke baare mein sirf itna jaante hain ki wahan Mahatma Gandhi naam ke mahapurush wahan hue the.

    Burai sab mein hoti hai... Gandhiji ko nahi poojna to mat poojo.. lekin thodi sharam to karo.


    Vande Mataram.

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  8. जी में आपके बाकि पोस्ट का आदर और अभिनन्दन करता हु ,. लेकिन मेरा मन्ना हे की गाँधी इसे नहीं थे. क्यों की गांधीजी को बदनाम करने के लिए पूरा इंग्लेंड लगा था. तो जाहिर हे के उस समय के जो इतिहास कर रहे हो या को लेखक रहे हो वो अपनी किताब में ये सब लिखते होगे जो उनको अच्छा लगा होगा ....क्यों की जितना जिन्हा गिरा हुआ था लेकिन उसकी तो तारीफ ही होती थी, क्यों की वो अन्दर से इंग्लेंड से मिला हुआ था... और वो कुर्सी का गुलाम था....मगर गाँधी ने तो अपने पिता के मरने के बाद खुद भ्र्म्चार्य पला था.. . . और ये चीज तो कई अंग्रेजो ने स्वीकार किया हे... तो आप उसकी बात न मानते हुए जो आज छपकर आयी हे उसे मान लेने के लिए मान गए...ये आप जेसे समदार देशभक्त से आशा नहीं थी... आप ने वो नाली में से प्लास्टिक के कचड़े में से कुछ खाते हुए इन्सान को वहां छोड़ दिया था लेकिन गाँधी ने तो दुसरे की गरीबी को देखकर आपने कपडे तक त्याग दिए थे.....उसने आपने को आम आदमी साबित करने के लिए आपनी बेरिस्टर का प्रमाणपत्र को भी जला दिया था....


    क्या आप एसा कर सकते हे.....अगर आप एसा कहते हे के वो इसे व्यभिचारी थे तो आप गाँधी को तो भुल्जाओ लेकिन आप उनके साथ जो स्वतंत्र संग्राम में लगी और गाँधी को साथ देने वाली जो छोटी या बड़ी बाहें माता ओ का भी अपमान कर रहे हो......अगर कोई आदमी इतना गिरा हुआ होता हे तो वो इतना जनसमर्थन प्राप्त नही कर सकता......

    आप अगर श्री सुभास्चंद्र बोस के प्रशंसक हो तो आप को ये भी मालूम होगा की श्री बोसे जी पहेले इन्सान थे जिन्होंने गांधीजी को ''महात्मा '' कहा .... और गाँधी को इसीलिए महत्मा कहा के उन्होंने महेसुस किया था के वो भ्रम्चारी के पक्के उपासक थे......

    आज तो गाँधी जी को गाली देने में उनको निचा दिखने में सबको मजा आटा हे ,,,मगर कोई उनके जितना जेल जाके आये,,उनके जेसा पहेनावा पहेंके दिखाए...वो आजादी के लिए मुखिया जरूर थे ..मगर कोई राजनैतिक पद नहीं लिया था.....तो आज उनको लालची क्यो कहा जाता हे??

    आप को नमन करता हु कृपा करके आप अपने देशवासियो को विदेशियो के जेसे गुमराह मत करे....अभी जो लेखक दे रहे हे उनको मत पढ़े जो उस समाय के थे उनको पढ़े......


    हो सकता हे मेरा ज्ञान गाँधी के प्रति आप से कम हो मगर जितना में जनता हु उसमे गाँधी जी ने जीवन में बहुत सरे फेसले लिए लेकिन ज्यादातर काम अच्छे किये...


    में चाहता हु के आप आज जो नमक पर कर लगा हे उसे हटा कर दिखा दे .. तो आपको में गाँधी की आलोचना करने के योग्य मानूंगा.....
    मेरी गलतिया माफ़ करे.. और मेरे को सही ज्ञान प्रदान करे
    वन्दे मातरम
    भारत माँ का लाडला gautamसिंह rathod.
    gautam_rathod007@yahoo.com

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    1. अगर सच में अंग्रेज आज़ादी से पहले गांधी का कुछ बिगाड़ना चाहते तो बिगाड़ सकते थे लेकिन गांधी उनका पठु था।इसलिए अंग्रेजो ने गांधी का कुछ नही
      बिगाड़ा।अरे आप खुद सोचिये जो अंग्रेज हिटलर को मारने के लिए करोड़ो सैनिको को मार सकते है तो उनके लिए गांधी चीज़ ही क्या थे।गांधी तो अंग्रेजो की सन्तिपूर्वक देश लूटने की चल थी।असल में वो व्यक्ति ही पाखंडी व् देशद्रोही है जो गुलामी के समय में अहिंसा का पाठ सिखलाते है।

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