Powered By Blogger

Thursday 27 September 2012

सरदार भगत सिंह जी का अंतिम पत्र... हमारे नाम...

वीर भगत सिंह के 105 वें जन्म दिवस पर महान देशभक्त क्रांतिकारी हुतात्मा को शत-शत नमन...

यह है सरदार भगत सिंह जी का अंतिम पत्र अपने साथियों के नाम...
क्रांतिकारियों के नाम... राष्ट्रवादियों के नाम.... हमारे
नाम...

साथियो... 
स्वाभाविक है कि जीने की इच्छा मुझमें भी होनी चाहिए, मैं इसे छिपाना नहीं चाहता। लेकिन मैं एक शर्त पर जिंदा रह सकता हूँ, कि मैं क़ैद होकर या पाबंद होकर जीना नहीं चाहता। मेरा नाम हिंदुस्तानी क्रांति का प्रतीक बन चुका है और क्रांतिकारी दल के आदर्शों और कुर्बानियों ने मुझे बहुत ऊँचा उठा दिया हैइतना ऊँचा कि जीवित रहने की स्थिति में इससे ऊँचा मैं हर्गिज़ नहीं हो सकता। आज मेरी कमज़ोरियाँ जनता के सामने नहीं हैं। अगर मैं फाँसी से बच गया तो वो ज़ाहिर हो जाएँगी और क्रांति का प्रतीक-चिन्ह मद्धिम पड़ जाएगा या संभवतः मिट ही जाए. लेकिन दिलेराना ढंग से हँसते-हँसते मेरे फाँसी चढ़ने की सूरत में हिंदुस्तानी माताएँ अपने बच्चों के भगत सिंह बनने की आरज़ू किया करेंगी और देश की आज़ादी के लिए कुर्बानी देनेवालों की तादाद इतनी बढ़ जाएगी कि क्रांति को रोकना साम्राज्यवाद या तमाम शैतानी शक्तियों के बूते की बात नहीं रहेगी. हाँ, एक विचार आज भी मेरे मन में आता है कि देश और मानवता के लिए जो कुछ करने की हसरतें मेरे दिल में थी, उनका हजारवाँ भाग भी पूरा नहीं कर सका. अगर स्वतंत्र, ज़िंदा रह सकता तब शायद इन्हें पूरा करने का अवसर मिलता और मैं अपनी हसरतें पूरी कर सकता. इसके सिवाय मेरे मन में कभी कोई लालच फाँसी से बचे रहने का नहीं आया. मुझसे अधिक सौभाग्यशाली कौन होगा? आजकल मुझे ख़ुद पर बहुत गर्व है. अब तो बड़ी बेताबी से अंतिम परीक्षा का इंतज़ार है. कामना है कि यह और नज़दीक हो जाए.
 
आपका साथी,
भगत सिंह


मैं वीर भगत सिंह के पद-चिन्हों पर चलने का सदैव प्रयास करता हूँ...
क्या आप मेरे साथ क्रांतिकारी हुतात्मा के अनुयायी हो..???
टिप्पणी लिखकर समर्थन करें...

'राष्ट्र सर्वप्रथम सर्वोपरि'
वन्दे मातरम...
जय हिंद... जय भारत...

मैं नास्तिक क्यों हूँ: भगत सिंह

मैं नास्तिक क्यों हूँ: भगत सिंह
(यह लेख भगत सिंह ने जेल में रहते हुए लिखा था जो भगत सिंह के लेखन के सबसे चर्चित हिस्सों में रहा है. इस लेख में उन्होंने ईश्वर के प्रति अपनी धारणा और तर्कों को सामने रखा है. यहाँ इस लेख का कुछ हिस्सा प्रकाशित किया जा रहा है.)

प्रत्येक मनुष्य को, जो विकास के लिए खड़ा है, रूढ़िगत विश्वासों के हर पहलू की आलोचना तथा उन पर अविश्वास करना होगा और उनको चुनौती देनी होगी.
प्रत्येक प्रचलित मत की हर बात को हर कोने से तर्क की कसौटी पर कसना होगा. यदि काफ़ी
तर्क के बाद भी वह किसी सिद्धांत या दर्शन के प्रति प्रेरित होता है, तो उसके विश्वास का स्वागत है.

उसका तर्क असत्य, भ्रमित या छलावा और कभी-कभी मिथ्या हो सकता है. लेकिन उसको सुधारा जा सकता है क्योंकि विवेक उसके जीवन का दिशा-सूचक है.
लेकिन निरा विश्वास और अंधविश्वास ख़तरनाक है. यह मस्तिष्क को मूढ़ और मनुष्य को प्रतिक्रियावादी बना देता है. जो मनुष्य यथार्थवादी होने का दावा करता है उसे समस्त प्राचीन विश्वासों को चुनौती देनी होगी.
यदि वे तर्क का प्रहार न सह सके तो टुकड़े-टुकड़े होकर गिर पड़ेंगे. तब उस व्यक्ति का पहला काम होगा, तमाम पुराने विश्वासों को धराशायी करके नए दर्शन की स्थापना के लिए जगह साफ करना.
यह तो नकारात्मक पक्ष हुआ. इसके बाद सही कार्य शुरू होगा, जिसमें पुनर्निर्माण के लिए पुराने विश्वासों की कुछ बातों का प्रयोग किया जा सकता है.
जहाँ तक मेरा संबंध है, मैं शुरू से ही मानता हूँ कि इस दिशा में मैं अभी कोई विशेष अध्ययन नहीं कर पाया हूँ.
एशियाई दर्शन को पढ़ने की मेरी बड़ी लालसा थी पर ऐसा करने का मुझे कोई संयोग या अवसर नहीं मिला.
लेकिन जहाँ तक इस विवाद के नकारात्मक पक्ष की बात है, मैं प्राचीन विश्वासों के ठोसपन पर प्रश्न उठाने के संबंध में आश्वस्त हूँ.
मुझे पूरा विश्वास है कि एक चेतन, परम-आत्मा का, जो कि प्रकृति की गति का दिग्दर्शन एवं संचालन करती है, कोई अस्तित्व नहीं है.

हम प्रकृति में विश्वास करते हैं और समस्त प्रगति का ध्येय मनुष्य द्वारा, अपनी सेवा के लिए, प्रकृति पर विजय पाना है. इसको दिशा देने के लिए पीछे कोई चेतन शक्ति नहीं है. यही हमारा दर्शन है.
जहाँ तक नकारात्मक पहलू की बात है, हम आस्तिकों से कुछ प्रश्न करना चाहते हैं-(i) यदि, जैसा कि आपका विश्वास है, एक सर्वशक्तिमान, सर्वव्यापक एवं सर्वज्ञानी ईश्वर है जिसने कि पृथ्वी या विश्व की रचना की, तो कृपा करके मुझे यह बताएं कि उसने यह रचना क्यों की?
कष्टों और आफतों से भरी इस दुनिया में असंख्य दुखों के शाश्वत और अनंत गठबंधनों से ग्रसित एक भी प्राणी पूरी तरह सुखी नहीं.
कृपया, यह न कहें कि यही उसका नियम है. यदि वह किसी नियम में बँधा है तो वह सर्वशक्तिमान नहीं. फिर तो वह भी हमारी ही तरह गुलाम है.
कृपा करके यह भी न कहें कि यह उसका शग़ल है.
नीरो ने सिर्फ एक रोम जलाकर राख किया था. उसने चंद लोगों की हत्या की थी. उसने तो बहुत थोड़ा दुख पैदा किया, अपने शौक और मनोरंजन के लिए.
और उसका इतिहास में क्या स्थान है? उसे इतिहासकार किस नाम से बुलाते हैं?
सभी विषैले विशेषण उस पर बरसाए जाते हैं. जालिम, निर्दयी, शैतान-जैसे शब्दों से नीरो की भर्त्सना में पृष्ठ-के पृष्ठ रंगे पड़े हैं.
एक चंगेज़ खाँ ने अपने आनंद के लिए कुछ हजार ज़ानें ले लीं और आज हम उसके नाम से घृणा करते हैं.
तब फिर तुम उस सर्वशक्तिमान अनंत नीरो को जो हर दिन, हर घंटे और हर मिनट असंख्य दुख देता रहा है और अभी भी दे रहा है, किस तरह न्यायोचित ठहराते हो?
फिर तुम उसके उन दुष्कर्मों की हिमायत कैसे करोगे, जो हर पल चंगेज़ के दुष्कर्मों को भी मात दिए जा रहे हैं?

मैं पूछता हूँ कि उसने यह दुनिया बनाई ही क्यों थी-ऐसी दुनिया जो सचमुच का नर्क है, अनंत और गहन वेदना का घर है?
सर्वशक्तिमान ने मनुष्य का सृजन क्यों किया जबकि उसके पास मनुष्य का सृजन न करने की ताक़त थी?
इन सब बातों का तुम्हारे पास क्या जवाब है? तुम यह कहोगे कि यह सब अगले जन्म में, इन निर्दोष कष्ट सहने वालों को पुरस्कार और ग़लती करने वालों को दंड देने के लिए हो रहा है.
ठीक है, ठीक है. तुम कब तक उस व्यक्ति को उचित ठहराते रहोगे जो हमारे शरीर को जख्मी करने का साहस इसलिए करता है कि बाद में इस पर बहुत कोमल तथा आरामदायक मलहम लगाएगा?
ग्लैडिएटर संस्था के व्यवस्थापकों तथा सहायकों का यह काम कहाँ तक उचित था कि एक भूखे-खूँख्वार शेर के सामने मनुष्य को फेंक दो कि यदि वह उस जंगली जानवर से बचकर अपनी जान बचा लेता है तो उसकी खूब देख-भाल की जाएगी?
इसलिए मैं पूछता हूँ, ‘‘उस परम चेतन और सर्वोच्च सत्ता ने इस विश्व और उसमें मनुष्यों का सृजन क्यों किया? आनंद लुटने के लिए? तब उसमें और नीरो में क्या फर्क है?’’
मुसलमानों और ईसाइयों. हिंदू-दर्शन के पास अभी और भी तर्क हो सकते हैं. मैं पूछता हूँ कि तुम्हारे पास ऊपर पूछे गए प्रश्नों का क्या उत्तर है?
तुम तो पूर्व जन्म में विश्वास नहीं करते. तुम तो हिन्दुओं की तरह यह तर्क पेश नहीं कर सकते कि प्रत्यक्षतः निर्दोष व्यक्तियों के कष्ट उनके पूर्व जन्मों के कुकर्मों का फल है.
मैं तुमसे पूछता हूँ कि उस सर्वशक्तिशाली ने विश्व की उत्पत्ति के लिए छः दिन मेहनत क्यों की और यह क्यों कहा था कि सब ठीक है.
उसे आज ही बुलाओ, उसे पिछला इतिहास दिखाओ. उसे मौजूदा परिस्थितियों का अध्ययन करने दो.
फिर हम देखेंगे कि क्या वह आज भी यह कहने का साहस करता है- सब ठीक है.


वीर भगत सिंह के 105 वें जन्म दिवस पर क्रांतिकारी हुतात्मा को शत-शत नमन.

'राष्ट्र सर्वप्रथम सर्वोपरि'
वन्दे मातरम...
जय हिंद... जय भारत...

Wednesday 15 August 2012

ये कैसी आजादी.. यह कैसा स्वतंत्रता दिवस.??

रेवाड़ी (हरियाणा) से पिछले तीस साल से लगातार एकमात्र विधायक के निवास के सामने से निकलकर और शहर के पॉश इलाके 'मॉडल टाउन' से गुजरकर छोटे भाई को बस स्टैंड से लेने के लिए जा रहा था...

बाल-भवन के साथ लगती नाली के पास एक भिखारी जैसा अर्ध विक्षिप्त सा आदमी नाली में पड़ी पोलीथिन से निकालकर कुछ खा रहा था.!!
उसे देखते ही एक उबकाई के साथ दिमाग सन्नाटे में आ गया...

मैं ज़रा जल्दी में था... थोडा आगे चला कानों में आवाज पड़ी 'जिसे मान चुकी सारी दुनिया... भारत का रहने वाला हूँ.!!'
देश का भूत, वर्तमान, भविष्य अँधेरा बनकर मन-मस्तिष्क पर छा गया.??
उस व्यक्ति की सहायता के उद्देश्य से पांच मिनट बाद वापस आया...
मगर अफ़सोस वो नही मिला.!!

देखकर पर भी कुछ ना कर पाने का पश्चाताप मन में लेकर घूम रहा हूँ...


ये कैसी आजादी.. यह कैसा स्वतंत्रता दिवस.??

किस कलम से लिखूं- 'शुभकामनाएं'.??
और किस मुहं से दूँ- 'बधाइयाँ'.???

गोरे अंग्रेजों से काले अंग्रेजों को सत्ता हस्तांतरण के समझौते के 65
वर्ष पूरे होने पर किस बात की शुभकामनाएं.??

भ्रष्टाचार, लूट-खसोट, घपले-घोटाले, जुल्म, अत्याचार और अन्याय के 65 वर्ष पूरे होने पर किस बात की शुभकामनाएं.??

युवाओं में बढती चरित्रहीनता, अनैतिकता और पैसों की भूख के लिए सब कुछ दांव पर लगा देने के चारित्रिक पतन के 65 वर्ष पूरे होने पर किस बात की शुभकामनाएं.??

'नेहरु से नारायण दत्त अभिसेक्स' तक नेताओं में फ़ैली पोर्न स्टार विकृति के 65 वर्ष पूरे होने पर किस बात की शुभकामनाएं.??

पाकिस्तानी और बंगला देशी घुसपैठियों को 'राशन कार्ड' वाली कांग्रेसी शरण देने के और मुस्लिम तुष्टिकरण के 65 वर्ष पूरे होने पर किस बात की शुभकामनाएं.??

हिन्दुओं पर बढ़ते द्वेष व वैमनस्य वाले अत्याचार, जबरन धर्मान्तरण और मुस्लिम तुष्टिकरण द्वारा नीचा दिखाने के 65 वर्ष पूरे होने पर किस बात की शुभकामनाएं.??

मूलभूत सुविधाओं का अभाव, गरीबी, महंगाई, बढ़ते पूंजीवाद और आर्थिक विषमता की अपाट खाई के 65 वर्ष पूरे होने पर किस बात की शुभकामनाएं.??

भूख, भीख और गरीबी की हजारों योजनाओं में करोड़ों रूपये बर्बाद करके भी 'जहाँ से चले वहीं खड़े' जैसी स्थिति के 65 वर्ष पूरे होने पर किस बात की शुभकामनाएं.??

'फूट डालो राज करो' की पैतृक अंग्रेजी नीति और आरक्षण के नाम पर देश के सामाजिक, राजनैतिक और आर्थिक विघटन के 65 वर्ष पूरे होने पर किस बात की शुभकामनाएं.??

रोबोट प्रधानमन्त्री और कठपुतली राष्ट्रपति के 'किंग मेकर', स्विस बैंक्स काला धन माफिया और लोकतंत्र को लूटतंत्र बनाने वाले गाँधी-नेहरु खानदान की राजशाही के 65 वर्ष पूरे होने पर किस बात की शुभकामनाएं.??

तथाकथित 'स्वतंत्रता दिवस' के सच्ची आजादी में नहीं बदलने के 65
वर्ष पूरे होने पर किस बात की शुभकामनाएं.??


मुझे मेरे देश, मेरी धरती व मातृभूमि से स्वयं से ज्यादा और सबसे ज्यादा प्रेम है...
मैं 'राष्ट्र सर्वप्रथम सर्वोपरि' का कट्टर समर्थक और अनुयायी हूँ...
मगर क्या करूँ मित्रो.!!
ख़ुशी तब मनाई जाती है जब कोई दुःख नही होता.!!


'राष्ट्र सर्वप्रथम सर्वोपरि'

वन्दे मातरम्...
जय हिंद... जय भारत...

Thursday 2 August 2012

कांग्रेस और अन्ना गैंग- हम सब एक हैं.

कांग्रेसी प्यादे आ ही गए औकात पर.!!!
गैर राजनीतिक संगठन और ईमानदारी के एकमात्र अधिकृत ठेकेदार बनकर जनता को अनशनी ड्रामेबाजी द्वारा मूर्ख बनाने वाले, अन्ना के गुर्गे और अन्ना स्वयं एक राजनीतिक पार्टी बना रहे हैं, पार्टी बन ही चुकी है बस उसके लिए जनता से अगले दो दिन तक 'औपचारिक राय' माँगी गई है... ताकि इसी तरह व्यक्तिवादियों को निरंतर अनशन की छद्म भूल-भुलैया में उलझाये रखा जा सके...

इस कांग्रेसी सेफ्टी वाल्व गैंग का पूरा खेल हम तो बहुत पहले समझ चुके थे... और समय-समय पर इस पृष्
ठ (https://www.facebook.com/AnnaKhujaRe) पर सच्चाई लिखी भी गई...
अब पूर्णतया 'नंगे' हो चुके अन्ना गैंग की असलियत सबके सामने है...

सारे देश की जनता जो राजनीती की गंदगी से त्रस्त है, वो अच्छी तरह समझ ले-

सिविल सोसायटी और आजकल की राजनीतिक पार्टी में वही बड़ा अंतर है जो एक खानदानी महिला और वेश्या में होता है...
और अगर वह राजनीतिक पार्टी कांग्रेस का मोहरा हो तो वो वेश्या नही, पोर्न स्टार 'सनी लियोनी' बन जाती है...
यही चरित्र अन्ना गैंग की सनी लियोनी का, अर्थात राजनीतिक पार्टी का रहेगा.?

इस राजनीतिक पार्टी का एकमात्र उद्देश्य बीजेपी के वोटों का विभाजन कर सीधे सीधे कांग्रेस को फायदा पहुँचाना होगा...

NGOs सरगना अन्ना व इसके गैंग की नजर में भावी प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी साम्प्रदायिक हैं और मानवता के हत्यारे हैं...
और अन्ना गैंग के गुर्गे तथाकथित 'सेकुलर' देश में लोगों के चरित्र के तमगे बांटने वाले...
इन्होने जिसको बेईमान कह दिया वो कभी ईमानदार नही हो सकता... यहाँ पर कांग्रेसी नेता अपवाद हैं.!!
क्यूकि अन्ना महाभ्रष्ट प्रणव मूर्खजी को क्लीन चिट दे चुका है.!!

गाँधी ने जिस तरह ब्लैकमेलिंग अनशन करके भारत के लोगों को बेवकूफ बनाया वैसे ही गाँधी के अनुयायी भी कर रहें हैं...

ऐसा ही चिरंजीवी की 'प्रजा-राज्यम' ने किया था, कांग्रेस का विरोध किया और कांग्रेस में ही जा मिले...
हरियाणा में कुलदीप बिश्नोई ने कांग्रेस से अलग होकर 'हरियाणा जनहित कांग्रेस' बनाई, चुनाव लड़ा और अब उसके चार विधायक वर्तमान कांग्रेस सरकार में मंत्री हैं...
कोर्ट में केस चलते रहे हैं... चलते रहेंगे... मरने के बाद भारतीय राष्ट्रपति सजा माफ़ कर ही देते हैं.!!!

अब तैयार हो जाइए, भारतीयों...

अन्ना गैंग की नई राजनीतिक पार्टी 'NGOs अनशन कल्याण पार्टी' (अन्ना गैंग के कर्मों के अनुसार सुझावित नाम) के अद्भुत अनुभव के लिए...

और हमेशा याद रखिये-

"सभी कांग्रेसी गाँधीवादी नही होते,
मगर सभी गांधीवादी शत प्रतिशत कांग्रेसी हैं."


'राष्ट्र सर्वप्रथम सर्वोपरि'

वन्दे मातरम्...
जय हिंद... जय भारत...

Wednesday 25 July 2012

"तुम मुझे क्या खरीदोगे... मैं तो मुफ्त हूँ.!!"


"तुम मुझे क्या खरीदोगे... मैं तो मुफ्त हूँ.!!"
'मुफ्त' होना ही दुःख है आम आदमी का... उसके सिवाय इस देश में कुछ भी मुफ्त नही है और गरीब की औकात इस महंगाई का सामना करने की अब रही नही.?

देश की जनता का बुरा हाल और मरना मुहाल कर दिया है, इस लोकद्रोही कांग्रेस सरकार ने... 
हर चीज के दाम आसमान छू रहे हैं... किसी पर कोई नियंत्रण नही है.??
आम आदमी का दिन-रात बढती खाद्य महंगाई से जीना मुश्किल हो गया है... सरकार जनहित ताक पर रखकर हाथ पर हाथ धरे बैठी है...

जबकि भ्रष्टाचार के लिए सभी मंत्रियों के हाथ खुले छोड़ रखे हैं...
आर्थिक विषमता की खाई असीमित होती जा रही है...
गरीब भूखे मर रहे हैं और अमीर करोडपति से अरबपति हो रहे हैं...

जनता के पास कोई विकल्प भी नही है 2014 से पहले...
"एक दिन की मूर्खता से पांच साल तक सजा मिलती है."
 --यही तथाकथित लोकतंत्र का कडवा और काला सत्य है...

आज के गरीब की हिम्मत नही है और ना ही उसका वश चलता है कि वो जुल्म का विरोध करे...  और जिनको डटकर विरोध करना चाहिए, वो मौन हैं और घरों में दुबके बैठे हैं...
इन सबके लिए 'दुष्यंत कुमार जी' ने कहा है-

"कहीं तो धूप की चादर बिछाकर बैठ गए...
कहीं तो छाँव सिरहाने लगाकर बैठ गए...
जब लहुलुहान नजारों का जिक्र आया तो,
शरीफ लोग उठे और दूर जाकर बैठ गए..."

देश के इन्हीं तथाकथित 'शरीफ' लोगों ने अनैतिक, अन्याय और अत्याचार के खिलाफ प्रतिक्रिया देना बंद कर दिया है...
जिस दिन देश व समाज के सभ्य व बुद्धिजीवी लोग सरकार के भ्रष्टाचार, अत्याचार व दुराचार के खिलाफ आवाज उठा देंगे...
इस देश को लूटने वाले डकैतों को अपना बोरिया-बिस्तर बाँधना ही पडेगा...
आवश्यकता है देश की जनता के संगठित होने की...

'राष्ट्र सर्वप्रथम सर्वोपरि'
वन्दे मातरम्...
जय हिंद... जय भारत...

Sunday 22 July 2012

'कोकरोच और कव्वा' बनाम 'हिन्दू और मुस्लिम'

एक कीट होता है कोकरोच, इनकी ख़ास आदत होती है... जब भी कोई साथी कोकरोच ऊपर चढ़ता है...टांग पकड़ कर खींच लेते हैं... एक कोकरोच मरेगा तो दूसरा देखने भी नही आएगा... संगठन नाम की कोई चीज नही होती...
एक पक्षी होता है कव्वा... शक्ल व वाणी का कर्कश, चालाक और ख़ास बात ये कि एक कव्वे की मौत पर अठारह कोस के कव्वे इकट्ठे होकर कांव-कांव मचाते हैं और अपने संगठन की मिसाल बनाते हैं...

भारत में कोकरोच हैं हिन्दू... रोज मरते हैं... जुल्म सहते हैं.. अन्याय झेलते हैं मगर संगठित नही होते...

उदारत
ा की आड़ में नपुंसकता छुपाते हैं, कटते हैं, मरते हैं मगर उफ़ तक नही करते...
जनसंख्या है सौ करोड़, मगर कर्म हैं विलुप्त प्रजाति जैसे...

जबकि कव्वे हैं मुसलमान- कट्टर, कर्कश और कठोर... संगठन इस तरह का कि स्वीडन में मुहम्मद का कार्टून बनता है और दंगे होते हैं दिल्ली में...

जनसंख्या है बीस करोड़, मगर कर्म हैं तालीबानी...

समझने की बात ये हैं कि कव्वा हमेशा कोकरोच को खाता है... पिछली एक सहस्त्राब्दी से तो यही हो रहा है...

जयचंद के वंशज हैं वो लोग जो 'अमन की आशा' की आशा में भेड़ की खाल में सियारों को और घर में बैठे तालिबानी पैरोकारों को शह देते हैं...
मुस्लिम तुष्टिकरण के लिए देश में साम्प्रदायिक दंगों की स्थिति बनाते हैं...

जो हाल दिल्ली के सुभाष पार्क का हुआ है- मुल्लों का अतिक्रमण व एक और बाबरी मस्जिद की धमकी...

गैर जमानती वारंट के बाद भी देशद्रोही बुखारी का बाल बांका ना होना...
जबकि हिन्दू संतों पर अत्याचार... बाबा रामदेव पर हमला... आचार्य बालकृष्ण की गिरफ्तारी...
ये सब कांग्रेस की मुल्ला तुष्टिकरण नीति का परिणाम है...

निष्कर्ष रूप में यही कहूँगा, इन सबके लिए उत्तरदायी कारण सिर्फ एक है-- असंगठित, छिन्न-भिन्न हिन्दू...


समस्त हिन्दुओं...

इसके लिए तुम स्वयं जिम्मेदार हो... तुम्हारे अन्दर का पुरुषार्थ खत्म हो चुका है..
और स्वार्थ जाग गया है.. तुम्हे देश और सनातन हिन्दू धर्म से कोई लेना देना नही.??
तुम सर पर रूमाल बांधकर मुल्लों की लाशों पर सर पटकते ही मर जाओगे...
तुम्हारी पिछली पीढ़ियों ने 'शर्म निरपेक्षता' को सींचा है.??
और वो अब बबूल बनकर तुम्हारी औलादों को चुभ रही है और चुभती ही रहेगी..
अगर 'नपुंसक चुप्पियों' से उठकर संगठित नहीं हुए तो..??
'कायर अहिंसक मनोवृति और झूठी शर्म निरपेक्षता' से निकलकर संगठित नहीं हुए तो..??
आने वाली पीढ़ी को क्या जवाब दोगे..???
अपनी 'मृत आत्मा' के किसी कोने में 'नकली धर्म-निरपेक्षता' की नींद में सोये हुए 'छोटे से जमीर के टुकड़े' से अवश्य पूछना.??



 






 






जय श्री राम...
'राष्ट्र सर्वप्रथम सर्वोपरि'
वन्दे मातरम्...
जय हिंद... जय भारत...

Monday 30 April 2012

गौ-माता बचाओ... हिंदुत्व बचाओ...

मैं आज अपने मित्र के यहाँ गया था...
वहां चर्चा होने लगी तो मैंने वर्तमान में गौ-माता की दशा पर बात की...

मैंने कहा- "जब हमारा बचपन था तो लोग अपने घर में बनी पहली रोटी गाय के लिए रखते थे, दूसरी रोटी कुत्ते के लिए और बचा हुआ खाना व अन्य निकृष्ट खाद्य पदार्थ घर के बाहर डालते थे जिन्हें सूअर खा जाते थे... मगर आज ये हाल हो गया है सूअर तो कहीं दिखते नही.?? कुत्तों को लोग घरों में नहा-धुलाके रखते हैं.. बची गौ माता... सब कचरा और बचा-खुचा खाना अब उसके हिस्से में आता है... आखिर हम हिन्दू जो गौ की पूजा करते हैं, इतने गैर-जिम्मेदार क्यों हो गये कि गौ-माता को ये दिन देखने पड़े.??"

तभी वहां पर बैठी, मेरे मित्र की माता जी ने एक कथा सुनाई-
""जब श्री राम और माता सीता वनवास में थे... तो श्राद्ध के दिनों में राजा दशरथ के श्राद्ध के दिन श्री राम ने कहा- मैं पिंड दान के लिए कंदमूल फल लेकर आता हूँ.. अगर पितृ आयें तो खाली हाथ मत जाने देना(उस समय पितृ दिखाई देते थे)... जब पितरों की टोली आई तब सीता माता के पास पिंडदान के लिए कुछ भी नही था... राजा दशरथ ने कहा मिटटी का पिंड बनाकर दे दो... सीता माता ने मिटटी में पानी डालकर पिंड बनाकर दान कर दिया... वहां पर गाय और पीपल ये सब देख रहे थे... जब श्री राम आये और उन्होंने पूछा तो सीता माता ने सारा वृतांत सुनाया... श्रीराम को विश्वास नही हुआ... सीता माता ने कहा- गौ और पीपल से पूछ लो..?? पीपल ने हां कर दी मगर गाय ने मना कर दिया... कहते हैं तब माता सीता ने गाय को श्राप दिया कि "तूने झूठ बोला है... तेरी गति खराब होगी... तू कलियुग में 'विष्ठा' खाती फिरेगी."
यही कारण है कि अब भी पीपल की पूजा होती है... और गाय की बेकद्री है...""

हालाँकि वो किंवदन्ती थी...
ऐसी कथाओं को सुनकर-सुनाकर हम अपने कर्तव्यों से मुहं नही मोड़ सकते.??
हम सब हिन्दुओं को गौ-माता के लिए अपना कर्तव्य जरुर निभाना चाहिए...
गाय को सम्मान मिलना ही चाहिए...

हम कितने ही अपव्यय करते हैं जीवन में.??
थोडा सा दान-धर्म गौ-माता के लिए भी किया जाना चाहिए...

जागो, मेरे भारत के उदार, अहिंसक हिन्दुओं...
सुनो गौ माता की करुण-कहानी-
"गोपाल तेरी गैया रो - रो कर यह बतला रही
जिनके तुम बने थे ग्वाले तेरे ही देश में काटी जा रही
मैंने अपना दूध पिलाकर, जिन्हें इतना बड़ा बनाया
उन मेरे ही अपनों ने अपनों के हाथों कटवाया
ऐ हिंद देश के लोगो सुन लो मेरी करुण कहानी
गौ हत्या बंद करो रे मत करो तुम नादानी
जब सब को दूध पिलाया गौ माता कहलाई
फिर किस अपराध के बदले मुझे काटे आज कसाई
मेरा कोई साथ न देता मैंने सबकी प्रीत पहचानी
गौ हत्या बंद करो रे मत करो तुम नादानी
जब जाऊं कसाई खाने, चाबुक से पीटी जाती
फिर उबले जल से मेरी, चमड़ी उतार ली जाती
जब अंत मौत का आता, मत पूछो रे मेरी करुण कहानी
गौ हत्या बंद करो रे मत करो तुम नादानी
जिसे अपनी कहते थे मोहन वह हुई है आज पराई
सच्चिदानंद बन तुमने, कैसी लीला दिखलाई
कटती बाजार सडको पर, करते हैं सब मनमानी
गौ हत्या बंद करो रे मत करो तुम नादानी..."
सभी भारतीयों को ही तय करना पड़ेगा कि श्री कृष्ण की सच्ची सेवा क्या है.??

हम उनके दर्शन के लिए मथुरा-वृन्दावन तो जाते हैं पर जो गौ-माता बिहारी जी को इतनी प्रिय है, उसकी रक्षा के लिए आगे क्यों नहीं आते.??

हम भूल रहे हैं हम उस सनातन हिन्दू धर्म के अनुयायी हैं जिसमे गौ माता की आरती भी गाई जाती है-
"आरती श्री गौ मैया की ।
आरती हरन विश्व धैया की । ।
अर्थकाम, सद्धर्म प्रदायिनी,
अविचल, अमल, मुक्ति-पद दायिनी ।
सुरमानव सौभाग्य विधायिनी,
प्यारी पूज्य नन्द छैया की । । टेक । ।
अखिल विश्व प्रतिपालिनी माता,
मधुर अमिय दुग्धान्न प्रदाता ।
रोग - शोक संकट परित्राता ,
भव सागर-हित दृढ़ नैया की ।। २ ।।
आयु ओज आरोग्य विकासिनी,
दु:ख दैन्य दारिद्रय विनाशिनि,
सुषमा सौख्य समृद्धि प्रकाशीनी ।
विमल विवेक बुद्धि दैया की ।। ३ ।।
सेवक हो चाहे दु:खदाई, सम पय-सुधा
पियावति माता, शत्रु- मित्र सबको सुखदाई,
स्नेह स्वभाव विश्व जैया की ।। ४ ।।"
सभी भारतीयों से, विशेषतौर से हिन्दुओं से निवेदन है कि उठो, जागो, एकजुट हो जाओ...
ताकि पूजनीय गौ-माता के अस्तित्व को समाप्त करने पर तुले, सभी व्यक्तियों और संस्थाओं को कड़ी सजा दिलाई जा सके, भारत-भूमि पर हो रहे इस अत्याचार को रोका जा सके और इस गंभीर विषय पर सरकार को सख्त कानून बनाने के लिए और गौ माता को 'राष्ट्रीय पशु' घोषित करने के लिए मजबूर किया जा सके.!!!!




जय गौ-माता
की...
जय सीयाराम जी की...
वन्दे मातरम्...
जय हिंद... जय भारत...


Sunday 11 March 2012

देशद्रोही


गजनी का बादशाह शाहबुद्दीन गौरी अपने निश्चय का पक्का और एक महत्वाकांक्षी व्यक्ति था... भारत पर अपनी विजय पताका फहराने की उसकी महत्वाकांक्षा उसके सिंहासनारूढ़ होते ही जन्म चुकी थी... वह भारत को विजय कर वहां अपना राज्य स्थापित करना चाहता था.. सदैव के लिए उसे अपने वंश के अधिकार में करना चाहता था... उसकी दृष्टि में इस्लाम की सच्ची सेवा काफिरों के मन्दिरों को नष्ट करके और नगरों को लूट-उजाड़ कर धन एकत्रित करने में नही थी अपितु उन पर इस्लाम का एकछत्र शासन स्थापित कर उन्हें शरियत(इस्लाम) के सिद्धांतों के अनुसार चलाने में थी.. वह भारत का विजयी लुटेरा नही बनना चाहता था, अपितु शहंशाह बनना चाहता था... इसलिए वह बहुधा अपने पूर्ववर्ती सुलतान, महमूद गजनवी के लिए कहा करता था-

" सुल्तान महमूद बहादुर और मूर्ख लुटेरा था.. समझदार और काबिल शासक नही."

सुलतान शाहबुद्दीन की इस महत्वाकांक्षा की पूर्ति में एकमात्र किन्तु प्रबल रोड़ा था, दिल्ली-पति सम्राट पृथ्वीराज चौहान... पृथ्वीराज के राज की सीमा सुल्तान की सीमाओं से लगी हुई थी... भारतवर्ष के समस्त राजा पृथ्वीराज को अपना सम्राट मान चुके थे... जो राजा कन्नौजपति जयचंद के अधीन थे वे भी पृथ्वीराज से सदैव भयभीत रहते थे... पृथ्वीराज के पराक्रमी सामंत, बलिष्ठ सेना और विलक्षण व्यक्तित्व के कारण किसी को उसके राज्य की ओर आँख उठाने का साहस नही होता था... स्वयम सुलतान शाहबुद्दीन गौरी सीमा के युद्धों में पृथ्वीराज के पराक्रमी सामंतों से पराजित होकर कई बार मैदान छोड़ चुका था... कई बार वह बंदी बनाकर क्षमा कर दिया गया था... अंतिम बार उसने पूरी शक्ति ओर ताकत के साथ भारत पर आक्रमण किया था किन्तु इस बार भी तराइन के युद्ध में उसे पूर्णतया पराजित होना पड़ा था.. चामुंडराय ने उसे इस बार भी बंदी बना लिया था, किन्तु पृथ्वीराज ने दंड लेकर उसे फिर क्षमा कर दिया था...
गौरी को अपनी पराजय से अधिक दुखदायी पृथ्वीराज द्वारा उसे दी गई क्षमा लग रही थी... पराजय में केवल अपनी तैयार शक्ति ओर हिम्मत की न्यूनता का ही बोध होता है किन्तु शत्रु द्वारा दी गई क्षमा में शत्रु की शक्ति ओर साहस के साथ साथ उसके बडप्पन और महत्व की भी स्वीकृति समाहित होती है... सुल्तान गौरी अपनी बार बार की पराजय से तो खिन्न था ही, वह पृथ्वीराज की क्षमा से लज्जित और अपमानित भी था...

अब उसने अपनी महत्वाकांक्षा, पराजय और क्षमा जनित अपमान की अग्नि को बुझाने की प्रतिशोध की भावना, इन दो सहयोगी मानस शक्तियों से प्रेरित होकर कार्य करना आरम्भ किया... उसने अब तक प्राप्त अनुभव के आधार पर नई प्रणाली से अपनी सेना का संगठन किया.. अतुल मात्रा में सामग्री एकत्रित की... राजपूतों की युद्ध प्रणाली को ध्यान में रखते हुए नई प्रणाली द्वारा सेना को प्रशिक्षित किया और वह सब प्रकार से एक बार फिर भारत पर आक्रमण करके अपने विपरीत भाग्य की परीक्षा लेने को तैयार हो गया...

ठीक उसी समय उसे कन्नौजपति जयचंद से सन्देश मिल चुका था...
"हमारे साथ युद्ध में पृथ्वीराज की बहुत अधिक शक्ति क्षीण हो चुकी है... आप एक बार फिर उसके राज्य पर आक्रमण करो... इस बार आपकी विजय निश्चित है... हम इस युद्ध में पूर्ण तटस्थ रहेंगे... वह जैसा आपका शत्रु है वैसा हमारा भी शत्रु है..."

यह सन्देश सुलतान गौरी के भाग्योदय की निश्चित रूप से ही अग्रिम सूचना थी... किन्तु सुल्तान गौरी को अपने भाग्योदय पर विश्वास नही हो रहा था... अब भी उसे अपनी शक्ति और तैयारी पृथ्वीराज की तुलना में नगण्य और अपर्याप्त लग रही थी... बार बार की पराजय से उसके दृढ़ मन को आत्म लघुत्व की भावना दबा चुकी थी... वह राजपूतों के प्रबल पराक्रम और अदभुत रण-कौशल के स्मरण मात्र से भयभीत था... उससे कहीं अधिक भयभीत उसके सैनिक और सेनापति थे... वे इस बार किसी भी दशा में फिर मौत के मुंह में जाने के लिए तैयार नही थे... किन्तु सुलतान के भय और अपनी व्यक्तिगत प्रतिष्ठा के कारण कोई भी सैनिक अथवा सेनापति अपनी वास्तविक मनोदशा को सुलतान के सामने प्रकट नही कर रहा था किन्तु मानव स्वभाव को गहराई से समझने की स्वाभाविक बुद्धि शक्ति वाले सुलतान से अपनी सेना का नैतिक स्तर और व्याप्त हीन मनोवृति छिपी हुई नही थी... वह भली-भांति जानता था कि उसके सेनापति और सैनिक राजपूतों से अपने को हीन और क्षीण समझते थे... इसलिए वह प्रत्येक मनोवैज्ञानिक उपाय से अपनी सेना का साहस और नैतिक स्तर ऊपर उठाने में लगा हुआ था पर फिर भी वह यह अनुभव कर रहा था कि उसकी सेना अब तक राजपूतों का मुकाबला करने के लिए पर्याप्त रूप से नैतिक दृष्टि से तैयार और शक्ति संपन्न नही हो पाई थी...

इन्ही सब परिस्थितियों और दुविधाओं में सुलतान गौरी एक दिन अपने मुख्य सरदारों और सेनापतियों से घिरा हुआ गजनी के दरबार में बैठा हुआ था... इसो समय द्वार रक्षक ने आकर सूचना दी- "जहाँ पनाह ! पृथ्वीराज का एक सिपहसालार हजूर की खिदमत में हाजिर होना चाहता है.."

मन ही मन में- " यह मुझे गुप्तचरों से पहले ही मालूम हो गया है, किन्तु पृथ्वीराज का सिपहसालार और मेरी खिदमत में हाजिर होना चाहता है... क्या मामला है?"

प्रकट - "उसे फ़ौरन यहाँ आने की इजाजत दो.."
उसी समय एक बलिष्ठ यौद्धा ने गजनी दरबार में प्रवेश किया... उसका चेहरा सुलतान को एकदम परिचित सा लगा.. उसने अपनी स्मरण शक्ति पर जोर देकर विचारों को पुनः संचित किया...
"सरहद की लड़ाइयों में यह कई बार हमारे खिलाफ लड़ चुका था... हाँ, उस दिन कैद होने के बाद इसी ने हमारे घायल हाथ से सबसे पहले आगे बढ़कर तलवार छीनी थी... इसका नाम.....?? इसका नाम.....? शायद हुगली... नही नही हुहुली राय है..."

इतने में उस सामंत ने झुककर सुलतान को अभिवादन किया और अपना परिचय देते हुए बोल उठा-
"मैं दिल्लीपति पृथ्वीराज का सामंत हुहुलीराय हूँ..."

"हाँ, हम तुम्हे अच्छी तरह जानते हैं, हुहुली राय ! तुम्हारे बहादुर दिल और फौलादी हाथों की करामात हम कई बात देख चुके हैं.. कहो यहाँ कैसे आये? तुम्हारे बहादुर मालिक और दूसरे सब लोग ठीक तो हैं.?"

सामंत ने इस प्रश्न का कुछ भी उत्तर नही दिया... उसने आगे बढ़कर मिटटी का एक सुन्दर ढांचा सुलतान के पैरों के पास रख दिया...

"यह क्या है हुहुली राय?"

"यह वह सब कुछ है जिसको पाने के लिए आप अब तक प्रयत्न करते आये हैं..."

सुलतान ने देखा है कि वह किसी किले का नमूना है जिसके एक आँगन में सिंहासन पर कोई व्यक्ति बैठा हुआ था... पहले वह एक टक उस मिट्टी के नमूने की ओर देखता रहा.. उसकी समझ में कुछ भी तो नही आ रहा था... सहसा उसे ध्यान आया कि वह रचना दिल्ली के किले की थी.. हाँ, वह दिल्ली का ही किला था किन्तु उसमे सिंहासन पर बैठा हुआ वह व्यक्ति कौन था- सुलतान ने सोचा - "अगर यह नमूना दिल्ली के किले का ही है वह आदमी भी जरुर पृथ्वीराज ही होगा... पृथ्वीराज को उसी का एक सिपहसालार मेरे पैरों में बैठा रहा है... आखिर बात क्या है?"

"यह क्या तोहफा लाये हो, हुहुली राय ! हमारे कुछ भी समझ में नही आ रहा है..."

"इस तोहफे के रूप में दिल्ली और पृथ्वीराज को आपके चरणों में रख रहा हूँ..."

"हैं? यह कैसे हुहुली राय ! तुम तो पृथ्वीराज के वफादार सिपहसालार हो... बतलाओ, क्या तुम्हारा झगड़ा हो गया है ?"

"केवल झगड़ा ही नही हुआ है... सुलतान, इससे भी बढ़कर बहुत कुछ हो गया है.."

इसके उपरान्त हुहुली राय ने वह सब.....!
( यह कहानी अपूर्ण ही रह गई थी )

लेखक- कुंवर आयुवान सिंह हुडील...
उनकी पुस्तक 'ममता और कर्तव्य' से साभार...

"राष्ट्र सर्वप्रथम सर्वोपरि"
वन्दे मातरम्...
जय हिंद... जय भारत...

Friday 13 January 2012

"अब मन नहीं करता 'मै अन्ना हूँ' कहने का..."

अन्ना भक्त कहने लगे हैं- "अब मन नहीं करता 'मै अन्ना हूँ' कहने का..."
अन्ना गैंग ने एक अप्रत्याशित फैसला (अन्ना के अंधों के लिए तो आश्चर्य ही है) क्या लिया, सब स्तब्ध रह गये...
जब अन्ना गैंग ने बीजेपी का विरोध करने का फैसला लिया जबकि अपनी प्रेस कांफ्रेंस में MMRDA मैदान में अन्ना और केजरीवाल ने सारी दुनिया के सामने ये बयान दिया कि वो कांग्रेस का विरोध पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में करेंगे... क्युकी कांग्रेस सत्ता में है और उसका दायित्व बनता है लोकपाल लाने का...

अन्ना हजारे और अन्ना गैंग के विरोध के सच्चे तथ्यात्मक कारण--
अन्ना गैंग का 'दोगला' वाकया मुझे अब भी अच्छी तरह याद है जब मैं उनको लेकर असमंजस में था ... हालाँकि मेरा शक विश्वास में नही बदला था.. मैं कई बार उनपे विश्वास करने की सोचता था.. मगर मेरी आत्मा का एक कोना मुझे रोके हुए था कि भगवान् ने किसी इंसान को सम्पूर्ण नही बनाया फिर मैं अन्ना को 'सम्पूर्ण' क्यों समझूं'??
अन्ना गैंग के गुर्गे 27 -28 अगस्त को आदर्शवादिता का ढोंग करते हुए साधारण 'अल्टो' कार में मंत्रियों के घरों के चक्कर लगा रहे थे जिसे कांग्रेस प्रायोजित मीडिया पूरी कवरेज दे रहा था.. मगर 'आरक्षण में बँटे' बच्चों से अनशन खुलवाकर जब ये गैंग एक अन्य प्रायोजक 'विलासिता से भरपूर' अस्पताल 'मेदान्ता' गुडगाँव पहुंचा (क्या दिल्ली में अन्य कोई सरकारी अस्पताल नहीं था??) तो उनका विशालकाय बाहुबली जैसा 'काफिला' देखकर मेरा विरोध आले दर्जे पर पहुँच गया...
और मैंने अपने देश के लिए, सच्चाई के लिए इस कांग्रेस के 'सेफ्टी वाल्व' का सम्पूर्ण विरोध करने का फैसला लिया...

जबकि विरोधी मैं इस गैंग का मई के महीने से ही हूँ जब मैंने पहली बार विश्वबंधु गुप्ता जी को सुना था...
http://www.youtube.com/watch?v=zQDKDvkGvz4
जब मैंने पहली बार अपने इस ब्लॉग पर ये लेख छापा था..
http://jitendersinghshekhawat.blogspot.com/2011/07/blog-post_25.html

जिन बाबा रामदेव से मंच मिला उनका ही विरोध,
हरामी बुखारी का चरण चुम्बन,
अग्निवेश का देशद्रोही और अलगाववादी व्यवहार,
रामलीला मैदान अनशन के हिसाब में धांधली,
केजरीवाल और किरण बेदी के 'पैसा हथियाओ काण्ड',
संदीप सिसोदिया के NGO को फोर्ड फाउंडेशन का दान,
अशांत दूषण का कश्मीर को अलग करने का सुझाव,
अन्ना का तानाशाही और अन्ना गैंग की देशद्रोहिता पर धृतराष्ट्री रवैया,
संदीप पांडे और मेधा पाटकर की देश विरोधी संस्था 'Save Afzal Gooru',
संदीप पांडे और मेधा पाटकर का AFSPA विरोधी देशद्रोही रैली,
अन्ना की इंदिरा गाँधी-राजीव गाँधी के लिए सम्मान और चाटुकारितापूर्ण सहानुभूति,
कुमार अविश्वास द्वारा बाबा रामदेव और हिंदुत्व का अपमान ,
और सबसे नया MMRDA मैदान मुंबई में प्रेस कांफ्रेंस में 'पांच राज्यों में कांग्रेस का विरोध करने के वायदे' से मुकरे...
इत्यादि...

इस तरह अनेक तथ्य आते गए और सच्चाई उजागर होती गई...
90 के दशक में तत्कालीन महाराष्ट्र सरकार, शरद पवार के भयंकर भ्रष्टाचार और दाऊद इब्राहीम सरीखे आतंकी माफिया सरदार के खिलाफ मुंबई म्युनिसिपल कारपोरेशन के तत्कालीन उपायुक्त जी.आर.खैरनार ने अपने जीवन को दांव पर लगाकर भीषण संघर्ष किया था... अत्यंत साधारण सा सामान्य जीवन जीने वाले बेहद ईमानदार खैरनार ने इसके लिए मीडियायी भांडों और उनकी नौटंकी का सहारा नहीं लिया था...
आज उन्हीं खैरनार ने न्यूज़ एक्सप्रेस चैनल पर चर्चा के दौरान बेबाकी से कहा कि
"मैं अन्ना हजारे को बहुत पहले से और बहुत करीब से जानता हूँ... इन दिनों उसकी बीमारी की बात भी उसका ड्रामा ही है, इससे पहले भी अपने कई अनशनों की असफलता छुपाने के लिए वो ऐसे ड्रामे करता रहा है... मुंबई में जनता से मिले जबर्दस्त तिरस्कार के मुद्दे से मुंह चुराने के लिए ही अन्ना की बीमारी का ड्रामा किया जा रहा है."
खैरनार ने यह भी कहा कि ये लोग अपना अहंकारी तानाशाही संकुचित रवैय्या छोड़े तथा भ्रष्ट लोगों के स्थान पर स्वच्छ छवि के लोगों को लाया जाए तो मैं खुद इस आन्दोलन से जुड़ सकता हूँ...

मैं हमेशा ये सवाल 'अन्ना भक्तों' से पूछता हूँ, मगर आज तक किसी ने भी तथ्यों के साथ सत्य जवाब नही दिया है-
कुछ तथा-कथित 'भ्रष्टाचार विरोधी' लोग अन्ना हजारे और बाबा रामदेव को एक साथ जोड़ते हैं... उन सब बुद्धिजीवियों से कुछ सवाल--
१. माना कि अन्ना हजारे स्वच्छ छवि के हैं और अनशन करने की क्षमता रखते हैं इस उम्र में और इसी क्षमता का सदुपयोग अन्ना टीम ने किया है.. लेकिन मैं जानना चाहता हूँ कि अन्ना टीम के सदस्यों में देशहित को लेकर टकराव क्यों हैं... उदाहरण के लिए प्रशांत भूषण की कश्मीर टिप्पणी और संदीप पांडे व मेधा पाटकर द्वारा AFSPA का विरोध 'देशद्रोहिता' की हद पार कर रहे हैं.??
२. अन्ना गैंग बाबा रामदेव का राष्ट्रीय मंच छीन कर उन्हें लतियाने वाले कथित 'सेकुलर' हैं जिन्हें अपने अनशन के मंच पर भारत माता की तस्वीर पसंद नहीं... इस विषय पर कोई अपने विचार देना चाहेगा.??
३. बाबा रामदेव को कथित दूसरा गाँधी और उसके छुटभैये NGO संचालक अपने साथ एक मंच पर क्यों नहीं रखना चाहते.???
४. इस देश में देश हित का केवल एक ही मुद्दा है 'जन-लोकपाल'..???  ड्राफ्ट देख रखा है इस 'पिलपिले' लोकपाल का... आश्चर्य की बात चोर से ही जेल बनवा रहे हैं.?? दीवार में 'बचाव के छिद्र' तो छूटेंगे ही..??
५. बाबा के राष्ट्रीय संस्कृति बचाओ, स्वदेशी और काला धन जैसे अन्य मुद्दों पर 'अन्ना गैंग' बात क्यों नही करता..??
६. अन्ना गैंग परिवर्तित 'सिक-यु-लायर्स' हैं जिनके प्रायोजक विदेशी चंदा देने वाले हैं... मैं विश्वास के साथ कह सकता हूँ कि जिस संगठन की नींव इतनी खोखली और राष्ट्रविरोधी है.. वो देश में 'ईमानदारी के तमगे बांटने वाला' और 'भ्रष्टाचार का सर्व-नाशक' कैसे हो सकता है.?? अपने विचार जरुर रखियेगा...
७. क्या कोई मुझे बताएगा कि रामलीला मैदान में प्रायोजित और नियोजित अनशन कथित 'मुस्लिम' और दलित' लड़कियों से ही क्यों खुलवाया गया... क्या मासूम और भगवान के रूप बच्चे भी 'आरक्षण' में बँटे हुए हैं... ऐसा करने के पीछे कितनी घृणित राजनीति है... ये कोई नही देख पाया.?? जो लोग देश को धर्म और आरक्षण में बाँट रहे हैं, वो 'राष्ट्र हितैषी' और गैर राजनैतिक कैसे हो सकते हैं.??? इस सवाल का जवाब अवश्य दीजियेगा.??

कांग्रेस का कथित एजेंट 'अन्ना गैंग' जिसका उपयोग कांग्रेस ने बाबा रामदेव के आन्दोलन को कुचलने के लिए 'मोहरे' के रूप में किया... बाबा के कभी ना साथ थे और ना ही हो सकते हैं... ये कडवा सार्व-भौमिक सत्य है जिसे अन्ना के 'अंध-समर्थक' समझ लें और जान लें...

मैं अन्ना गैंग का विरोध जारी रखूँगा क्योकि ये वो गैंग है जिसने बाबा रामदेव के साथ साथ माँ भारती की तस्वीर को भी साम्प्रदायिक बोल कर मंच से उतार फेंका था...
अन्ना गैंग के लोगो के कुछ बयान--
रामदेव को योग सिखाना चाहिए, कमिटी में कौन रहेगा या कौन नहीं, रामदेव कौन होता है हमें सिखाने वाला.. -शांति भूषण.
बाबा रामदेव केवल योग गुरु है देश हित के लिए हमें उनकी राय की जरुरत नहीं है... --अरविन्द केजरीवाल.
हमारी छह शर्ते है रामदेव मान लेते है तो हम उनके मंच पर जायेगे नहीं तो नहीं.. --अन्ना हजारे.
रामदेव के पास सोचने समझने की शक्ति नहीं है... --अन्ना हजारे (4 जून के बाद )
रामदेव केवल अपनी दुकान चलाना चाहते है इसलिए वो अन्ना के आन्दोलन में अपने सहयोग को दर्शाना चाहते है लेकिन अन्ना के मंच पर किसी और को आने नहीं देंगे हम... --किरण बेदी, प्रशांत भूषण, अरविन्द केजरीवाल, संदीप पांडे (अन्ना के तिहाड़ से बाहर आने के बाद मीडिया में)
रामदेव अगर चाहे तो भी हम उनके साथ नहीं आ सकते, हमारा और उनका रास्ता अलग अलग है, उनके साथ संघ और भाजपा के लोग है.. --अन्ना हजारे.
अन्ना तो फकीर है... बाबा रामदेव को मैंने समझाया कि भैया अगर अपनी दुकान चलानी है तो सरकार से पंगा ना ले... तुम अनशन वन्शन के चक्कर में मत पड़ो, तुम्हारी दुकान बंद हो जायेगी  मैं 4 जून को सोया और सुबह उठ कर देखा पूरा नज़ारा ही अलग था, रामदेव की दुकान का शटर गिर चूका था सारा सामान यहाँ-वहाँ फैला हुआ था... --कुमार विश्वास.


अन्ना गैंग के कुछ और सदस्यों के देशद्रोही बयान-
मेधा पाटेकर-  खुशहाल कश्मीर भूंखे नंगे हिन्दुस्तान के साथ क्यूँ रहे.??
प्रशांत भूषण- आज़ाद कश्मीर को पाकिस्तान को दे देना चाहिए...
संदीप पाण्डेय- अफजल भी इंसान है उसके भी कुछ हक और अधिकार हैं...

और अब तक की सबसे बड़ी 'पर्दानशीं' सच्चाई, जिसे अन्ना गैंग और उसके समर्थक कभी स्वीकार नही करते--
लोकपाल का मुद्दा-
लोकपाल सन 1968 से शुरू हुई उस भ्रष्टाचार विरोधी संस्था का नाम है जो कभी अपने मुकाम तक नही पहुँच पाई यानि कि क़ानून नही बन पाई...
लोकपाल के मुद्दे को अरविन्द केजरीवाल और अन्ना गैंग ने 93 वर्षीय आदरणीय शम्भू दत्त शर्मा जी से चुराया, जिन्होंने वास्तव में जंग-ए-आजादी में अंग्रेजों से तो लोहा लिया ही था साथ ही साथ 93 वर्ष की इस अवस्था में भी भयंकर भ्रष्टाचार के खिलाफ लोकपाल बिल लाने की मांग को लेकर इसी साल 30 जनवरी को आमरण अनशन पर बैठ गए थे... शर्मा जी इसके पहले पिछले 12 वर्षों से अधिक समय से, तब से लोकपाल की लड़ाई लड़ रहे हैं जब पूरा 'अन्ना गैंग' मोटी तनख्वाहों वाली ऊंची सरकारी नौकरियों में मौज ले रहा था और 'कमाने-खाने' के लिए राष्ट्रीय पुरस्कारों के जुगाड़ में लगा था...
लेकिन "अन्ना गैंग" और उसका सरगना किशन बाबू राव भूल कर भी श्री शम्भु दत्त जी का नाम नहीं लेता...
इस साल जब बिना किसी प्रचार के श्रद्धेय शर्मा जी आमरण अनशन पर बैठ गए थे तब इसके बाद सक्रिय हुए इस अन्ना गैंग ने इन 93 वर्षीय स्वतंत्रता संग्राम सेनानी को किस तरह धोखा दिया, आहत किया, इसकी जानकारी लीजिये--
http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/10652101.cms

शम्भू दत्त शर्मा जी के विषय में और लोकपाल आन्दोलन के उनके संघर्ष तथा "अन्ना गैंग" द्वारा किये गए छल की विस्तृत जानकारी के लिए इस वेब लिंक को भी क्लिक कर के देखिये-
http://epaper.hindustantimes.com/PUBLICATIONS/HT/HKL/2011/07/03/ArticleHtmls/THE-ORIGINAL-ANNA-03072011011029.shtml


"..........आस्तीनों के साँपों की कमी नही है भारत में............
'एक टोली' में देखना चाहो तो 'कांग्रेस और अन्ना गैंग' को देखो."


कुछ अन्य लिंक इस गैंग के विरोध के समर्थन में--
http://www.youtube.com/watch?v=G4zRHEw21h8 

http://rajuparulekar.files.wordpress.com/2011/12/vipin-nayyar-story.pdf

http://www.youtube.com/watch?v=byDBpRL4yCo


वन्दे मातरम्...
जय हिंद.. जय भारत...