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Tuesday 13 May 2014

हरा समुंदर गोपी चंदर

आज कुछ बच्चे गलियारे में खेल रहे थे...

हरा समुंदर गोपी चंदर...
बोल मेरी मछली कितना पानी.?

एक बच्चा (सीने पर हाथ रखकर)- इतना पानी.!

(फिर सभी बच्चे डुबकी लगाकर उठने की अवस्था में)
हरा समुंदर गोपी चंदर...
बोल मेरी मछली कितना पानी.?


एक बच्चा (गले पर हाथ रखकर)- इतना पानी.!

(फिर सभी बच्चे डुबकी लगाकर उठने की अवस्था में)
हरा समुंदर गोपी चंदर...
बोल मेरी मछली कितना पानी.?

एक बच्चा (नाक पर हाथ रखकर)- इतना पानी.!

तभी मैं उनके बीच पहुँच गया और एक कड़ी जोड़ते हुए मैंने कहा-
बच्चों, खेल के आखिर में बोलना-
"पानी हुआ, नाक के पार...
अबकी बार मोदी सरकार."


'मोदी सरकार' सुनकर सभी बच्चे हंसते-
मुस्कुराते हुए खुश हुए
और
मेरे कहे शब्दों को जोड़कर 'हरा समुंदर गोपी चंदर' खेल का आनंद उठाते रहे.!



Tuesday 29 April 2014

बचपन की यादें.

गाँव की पहाड़ी पर और उसकी तलहटी में खंडहर पड़े मकानों में दोस्तों के साथ मधुमक्खी का छत्ता तोड़कर शहद खाना आजकल के बच्चों को बस सुनाने की बातें रह गयी हैं...

वह भी समय था जब शहद की खातिर छत्ते के ऊपर जमा मधुमक्खियों को उड़ाने के लिए धुंआ करना होता था जिसके लिए सूती कपड़ा नहीं मिलता था क्यूंकि टेरीकोट और पोलिस्टर का चलन हुआ करता था...
फिर किसी पुरानी बोरी का कपड़ा ढूंढकर लाया जाता था...
दोस्तों में झगड़ा होता था माचिस तू लाएगा, माचिस तू लाएगा... जब माचिस नहीं मिलती थी तो ऊपलों के हारे (पशुओं के चारे में मिलाने के लिए ग्वार बाजरा आदि गर्म करने का बड़े चूल्हे जैसा जिसमें ऊपलों का प्रयोग किया जाता है) में से आंच किसी पत्थर पर रखकर लाई जाती थी...

फिर बोरी के टुकड़े को लकड़ी के सिरे पर बांधकर अधजला करके धुएँदार बनाया जाता था और छत्ते के नीचे फौजियों वाला काला कम्बल ओढ़कर एक लड़का खड़ा हो जाता था, दस मिनट बाद धुंए से परेशान होकर सब मधुमक्खियां छत्ते को छोड़ देती थी...
पेड़ की उस डाली को तोड़कर अथवा शहद वाले हिस्से को एक बर्तन में डालकर ले आते थे और सब लंगोटिए यार मिलकर शहद खाते थे.
एक दिन शहद का आनंद ले रहे सब लड़कों को किसी ज्यादा समझदार साथी ने यह बता दिया कि ततैये के छत्ते में 'मिश्री' होती है...
किन्तु मिश्री प्राप्त करने के लिए ततैयों का बड़ा छत्ता होना चाहिए.!
गाँव के स्कूल के निकट तालाब के किनारे पुराने विशाल बरगद पर भ्रमर मक्खी (बड़ी मधुमक्खी) के विशालकाय छत्ते तो सबने देखे थे मगर ततैयों के बड़े छत्ते ढूँढने पर भी कहीं नहीं मिले...

कुछ दिन बाद हुआ ये कि हम तीन दोस्तों ने मिलकर सोचा क्यूँ ना छोटे छत्ते से ही काम चलाया जाए... किसी पुरानी हवेली में ततैये का छत्ता दिख गया और मिश्री के लालच में हमने धुंए का तीर ततैयों पर छोड़ दिया...
ततैये किसके बाप के धुंए से डरते हैं...
अपने छत्ते के पास आई धुंए वाली लकड़ी को उन्होंने खुद पर आक्रमण समझा और हम सबके मुहं और आँख अपने डंक से सुजा-सुजाकर वापस भेजा...
फिर कभी मिश्री खाने की इच्छा नहीं हुई...
इस घटना के बाद घर पर डांट पड़ी और पता चला कि ततैयों के छत्ते में मिश्री जैसा कुछ नहीं होता है.!

यादें याद आती हैं.!!

Monday 28 April 2014

राष्ट्रवादी और हिंदुआ सूरज- नरेन्द्र भाई मोदी

#AbkiBaarModiSarkar
भारतीय लोकतंत्र में नई पुरानी अनेक राजनीतिक पार्टियाँ आईं जो सिर्फ सत्ता महत्वाकांक्षा के लिए मुद्दों से बलात्कार करती रही... भावनाओं से खेलकर आम आदमी को धरना/अनशन/ड्रामों से बहकाती रही, बहलाती रहीं.!!

देश के सैनिकों के सर कटते रहे, वीर सैनिकों पर आतंकी हमले होते रहे और आम आदमी के हितैषी राजनीतिक दल सैनिकों के विशेषाधिकारों का विरोध करते रहे, आतंकियों की फांसी का विरोध करते रहे... देश को टोपी पहनने वाले वोट बैंक के लिए कठमुल्लों से टोपी पहनकर राष्ट्र की सुरक्षा से समझौता करते रहे...

भारतीय राजनीती में अबकी बार पहली बार राष्ट्रवादी और हिंदुआ सूरज का उदय हुआ है...
नरेन्द्र भाई मोदी...

इस देश में नरेन्द्र मोदी अकेले नेता हैं-
जो बंगाल में जाते हैं तो खुले आम बांग्लादेशियों को खदेड़ने की धमकी देते हैं...
जो अरुणाचल प्रदेश में जाते हैं तो चीन की साम्राज्यवादी नीति पर प्रहार करते हैं...
जो पाकिस्तान की आतंकी गतिविधियों का जोरदार विरोध करते हैं...
और
आज मोदी जी ने फारूख अब्दुल्ला के देशद्रोही वक्तव्य की आलोचना करते हुए कश्मीरी पंडितों को कश्मीर घाटी में प्रताड़ित किये जाने और वहां से भगाए जाने का मुद्दा उठाया है...

सोचो, मेरे देशप्रेमियों...
विचार करो, मेरे भारत भक्तों...
आखिर कांग्रेस, वाम दल, समाजवादी पार्टी, बसपा, TMC, राकांपा, राजद, जदयू, आआपा आदि अनेक मुल्ला तुष्टिकरण करने वाली पार्टियों ने आज तक बांग्लादेशियों के विरुद्ध अथवा कश्मीरी पंडितों के समर्थन में कोई बयान क्यूँ नहीं दिया.?

असल में सेकुलरिज्म की आड़ में सत्ता का धंधा चलाने वाले किसी भी तरह मुसलमानों को नाराज नहीं करना चाहते...
केवल इस्लाम का परचम दुनिया पर लहराने की इच्छा रखने वाले मुस्लिम किसी देश और सीमा को नहीं मानते हैं और यही कारण है कि बर्मा में जब रोहिंग्या मुसलमान बौद्धों द्वारा मारे जाते हैं तो मुम्बई के आजाद मैदान में पुलिस मीडिया पिटती है और अमर जवान शहीद स्थल तोड़े जाते हैं मगर सरकार किसी एक को भी सजा नहीं दे पाती...
स्वीडन में मोहम्मद साहब के कार्टून बनते हैं और दिल्ली में सरकारी सम्पत्ति तोडी जाती हैं...
ईराक में सद्दाम मरता है और विरोध दिल्ली में होता है...
पाकिस्तान क्रिकेट में भारत से जीतता है तो जश्न मुसलमानों की गलियों में मनाया जाता है...

आखिर क्यूँ.?
क्यूंकि अब तक की किसी भी सरकार ने इनकी खुली इस्लाम परस्ती का विरोध नहीं किया...
राष्ट्र के विरुद्ध उनके कार्यों पर कभी उन्हें दण्डित नहीं किया गया...
बल्कि इसके विपरीत तुष्टिकरण और वोट बैंक की नीति को सर्वोच्च रखते हुए उनका पक्ष लिया गया और उनके भारत विरोधी मंसूबों को हौसला दिया गया...

मैं अथवा मोदी जी मुसलमानों के विरोधी नहीं है बल्कि भारत विरोधियों के विरोधी हैं वो देशद्रोही चाहे किसी भी धर्म का हो...

16 मई से देश नये युग में प्रवेश कर रहा है...

"राष्ट्र सर्वप्रथम सर्वोपरि"
वन्दे मातरम...
जय हिंद... जय भारत...

Tuesday 26 February 2013

वीर सावरकर के प्रथम कीर्तिमान.!!

स्वातंत्र्य समर वीर विनायक दामोदर सावरकर की पुण्य-तिथि पर
उन्हें शत-शत नमन...
सभी राष्ट्रवादियों को वीर सावरकर के विषय में सब कुछ जानना चाहिए...

वीर सावरकर के प्रथम कीर्तिमान-
1. वीर सावरकर पहले क्रांतिकारी देशभक्त थे जिन्होंने 1901 में ब्रिटेन की रानी विक्टोरिया की मृत्यु पर नासिक में शोक सभा का विरोध किया और कहा कि वो हमारे शत्रु देश की रानी थी, हम शोक क्यूँ करें? क्या किसी भारतीय महापुरुष के निधन पर ब्रिटेन में शोक सभा हुई है.?
2. वीर सावरकर पहले देशभक्त थे जिन्होंने एडवर्ड सप्तम के राज्याभिषेक समारोह का उत्सव मनाने वालों को त्र्यम्बकेश्वर में बड़े बड़े पोस्टर लगाकर कहा था कि गुलामी का उत्सव मत मनाओ...
3. विदेशी वस्त्रों की पहली होली पूना में 7 अक्तूबर 1905 को वीर सावरकर ने जलाई थी...
4. वीर सावरकर पहले ऐसे क्रांतिकारी थे जिन्होंने विदेशी वस्त्रों का दहन किया, तब बाल गंगाधर तिलक ने अपने पत्र केसरी में उनको शिवाजी के समान बताकर उनकी प्रशंसा की थी जबकि इस घटना की दक्षिण अफ्रीका के अपने पत्र 'इन्डियन ओपीनियन' में गाँधी ने निंदा की थी...
5. सावरकर द्वारा विदेशी वस्त्र दहन की इस प्रथम घटना के 16 वर्ष बाद गाँधी उनके मार्ग पर चले और 11 जुलाई 1921 को मुंबई के परेल में विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार किया...
6. सावरकर पहले भारतीय थे जिनको 1905 में विदेशी वस्त्र दहन के कारण पुणे के फर्म्युसन कॉलेज से निकाल दिया गया और दस रूपये जुरमाना किया... इसके विरोध में हड़ताल हुई... स्वयं तिलक जी ने 'केसरी' पत्र में सावरकर के पक्ष में सम्पादकीय लिखा...
7. वीर सावरकर ऐसे पहले बैरिस्टर थे जिन्होंने 1909 में ब्रिटेन में ग्रेज-इन परीक्षा पास करने के बाद ब्रिटेन के राजा के प्रति वफादार होने की शपथ नही ली... इस कारण उन्हें बैरिस्टर होने की उपाधि का पत्र कभी नही दिया गया...
8. वीर सावरकर पहले ऐसे लेखक थे जिन्होंने अंग्रेजों द्वारा ग़दर कहे जाने वाले संघर्ष को '1857 का स्वातंत्र्य समर' नामक ग्रन्थ लिखकर सिद्ध कर दिया...
9. सावरकर पहले ऐसे क्रांतिकारी लेखक थे जिनके लिखे '1857 का स्वातंत्र्य समर' पुस्तक पर ब्रिटिश संसद ने प्रकाशित होने से पहले प्रतिबन्ध लगाया था...
10. '1857 का स्वातंत्र्य समर' विदेशों में छापा गया और भारत में भगत सिंह ने इसे छपवाया था जिसकी एक एक प्रति तीन-तीन सौ रूपये में बिकी थी... भारतीय क्रांतिकारियों के लिए यह पवित्र गीता थी... पुलिस छापों में देशभक्तों के घरों में यही पुस्तक मिलती थी...
11. वीर सावरकर पहले क्रान्तिकारी थे जो समुद्री जहाज में बंदी बनाकर ब्रिटेन से भारत लाते समय आठ जुलाई 1910 को समुद्र में कूद पड़े थे और तैरकर फ्रांस पहुँच गए थे...
12. सावरकर पहले क्रान्तिकारी थे जिनका मुकद्दमा अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय हेग में चला, मगर ब्रिटेन और फ्रांस की मिलीभगत के कारण उनको न्याय नही मिला और बंदी बनाकर भारत लाया गया...
13. वीर सावरकर विश्व के पहले क्रांतिकारी और भारत के पहले राष्ट्रभक्त थे जिन्हें अंग्रेजी सरकार ने दो आजन्म कारावास की सजा सुनाई थी...
14. सावरकर पहले ऐसे देशभक्त थे जो दो जन्म कारावास की सजा सुनते ही हंसकर बोले- "चलो, ईसाई सत्ता ने हिन्दू धर्म के पुनर्जन्म सिद्धांत को मान लिया."
15. वीर सावरकर पहले राजनैतिक बंदी थे जिन्होंने काला पानी की सजा के समय 10 साल से भी अधिक समय तक आजादी के लिए कोल्हू चलाकर 30 पोंड तेल प्रतिदिन निकाला...
16. वीर सावरकर काला पानी में पहले ऐसे कैदी थे जिन्होंने काल कोठरी की दीवारों पर कंकर कोयले से कवितायें लिखी और 6000 पंक्तियाँ याद रखी...
17. वीर सावरकर पहले देशभक्त लेखक थे, जिनकी लिखी हुई पुस्तकों पर आजादी के बाद कई वर्षों तक प्रतिबन्ध लगा रहा...
18. वीर सावरकर पहले विद्वान लेखक थे जिन्होंने हिन्दू को परिभाषित करते हुए लिखा कि-
'आसिन्धु सिन्धुपर्यन्ता यस्य भारत भूमिका.
पितृभू: पुण्यभूश्चैव स वै हिन्दुरितीस्मृतः.'
अर्थात समुद्र से हिमालय तक भारत भूमि जिसकी पितृभू है जिसके पूर्वज यहीं पैदा हुए हैं व यही पुण्य भू है, जिसके तीर्थ भारत भूमि में ही हैं, वही हिन्दू है...
19. वीर सावरकर प्रथम राष्ट्रभक्त थे जिन्हें अंग्रेजी सत्ता ने 30 वर्षों तक जेलों में रखा तथा आजादी के बाद 1948 में नेहरु सरकार ने गाँधी हत्या की आड़ में लाल किले में बंद रखा पर न्यायालय द्वारा आरोप झूठे पाए जाने के बाद ससम्मान रिहा कर दिया... देशी-विदेशी दोनों सरकारों को उनके राष्ट्रवादी विचारों से डर लगता था...
20. वीर सावरकर पहले क्रांतिकारी थे जब उनका 26 फरवरी 1966 को उनका स्वर्गारोहण हुआ तब भारतीय संसद में कुछ सांसदों ने शोक प्रस्ताव रखा तो यह कहकर रोक दिया गया कि वे संसद सदस्य नही थे जबकि चर्चिल की मौत पर शोक मनाया गया था...
21.वीर सावरकर पहले क्रांतिकारी राष्ट्रभक्त स्वातंत्र्य वीर थे जिनके मरणोपरांत 26 फरवरी 2003 को उसी संसद में मूर्ति लगी जिसमे कभी उनके निधन पर शोक प्रस्ताव भी रोका गया था....
22. वीर सावरकर ऐसे पहले राष्ट्रवादी विचारक थे जिनके चित्र को संसद भवन में लगाने से रोकने के लिए कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गाँधी ने राष्ट्रपति को पत्र लिखा लेकिन राष्ट्रपति डॉ. अब्दुल कलाम ने सुझाव पत्र नकार दिया और वीर सावरकर के चित्र अनावरण राष्ट्रपति ने अपने कर-कमलों से किया...
23. वीर सावरकर पहले ऐसे राष्ट्रभक्त हुए जिनके शिलालेख को अंडमान द्वीप की सेल्युलर जेल के कीर्ति स्तम्भ से UPA सरकार के मंत्री मणिशंकर अय्यर ने हटवा दिया था और उसकी जगह गांधी का शिलालेख लगवा दिया...
वीर सावरकर ने दस साल आजादी के लिए काला पानी में कोल्हू चलाया था जबकि गाँधी ने कालापानी की उस जेल में कभी दस मिनट चरखा नही चलाया....
24. महान स्वतंत्रता सेनानी, क्रांतिकारी-देशभक्त, उच्च कोटि के साहित्य के रचनाकार, हिंदी-हिन्दू-हिन्दुस्थान के मंत्रदाता, हिंदुत्व के सूत्रधार वीर विनायक दामोदर सावरकर पहले ऐसे भव्य-दिव्य पुरुष, भारत माता के सच्चे सपूत थे, जिनसे अन्ग्रेजी सत्ता भयभीत थी, आजादी के बाद नेहरु की कांग्रेस सरकार भयभीत थी और अब कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गाँधी के सहयोग से चलने वाली UPA सरकार भयभीत है...
25. वीर सावरकर माँ भारती के पहले सपूत थे जिन्हें जीते जी और मरने के बाद भी आगे बढ़ने से रोका गया... पर आश्चर्य की बात यह है कि इन सभी विरोधियों के घोर अँधेरे को चीरकर आज वीर सावरकर के राष्ट्रवादी विचारों का सूर्य उदय हो रहा है...

जय श्री राम...
साभार- श्री निवास शर्मा शास्त्री.
संस्थापक- वीर सावरकर विचार मंच, रेवाड़ी (हरियाणा)
सम्पर्क सूत्र- 08607044744


'राष्ट्र सर्वप्रथम सर्वोपरि'
वन्दे मातरम...
जय हिंद... जय भारत...

Thursday 27 September 2012

सरदार भगत सिंह जी का अंतिम पत्र... हमारे नाम...

वीर भगत सिंह के 105 वें जन्म दिवस पर महान देशभक्त क्रांतिकारी हुतात्मा को शत-शत नमन...

यह है सरदार भगत सिंह जी का अंतिम पत्र अपने साथियों के नाम...
क्रांतिकारियों के नाम... राष्ट्रवादियों के नाम.... हमारे
नाम...

साथियो... 
स्वाभाविक है कि जीने की इच्छा मुझमें भी होनी चाहिए, मैं इसे छिपाना नहीं चाहता। लेकिन मैं एक शर्त पर जिंदा रह सकता हूँ, कि मैं क़ैद होकर या पाबंद होकर जीना नहीं चाहता। मेरा नाम हिंदुस्तानी क्रांति का प्रतीक बन चुका है और क्रांतिकारी दल के आदर्शों और कुर्बानियों ने मुझे बहुत ऊँचा उठा दिया हैइतना ऊँचा कि जीवित रहने की स्थिति में इससे ऊँचा मैं हर्गिज़ नहीं हो सकता। आज मेरी कमज़ोरियाँ जनता के सामने नहीं हैं। अगर मैं फाँसी से बच गया तो वो ज़ाहिर हो जाएँगी और क्रांति का प्रतीक-चिन्ह मद्धिम पड़ जाएगा या संभवतः मिट ही जाए. लेकिन दिलेराना ढंग से हँसते-हँसते मेरे फाँसी चढ़ने की सूरत में हिंदुस्तानी माताएँ अपने बच्चों के भगत सिंह बनने की आरज़ू किया करेंगी और देश की आज़ादी के लिए कुर्बानी देनेवालों की तादाद इतनी बढ़ जाएगी कि क्रांति को रोकना साम्राज्यवाद या तमाम शैतानी शक्तियों के बूते की बात नहीं रहेगी. हाँ, एक विचार आज भी मेरे मन में आता है कि देश और मानवता के लिए जो कुछ करने की हसरतें मेरे दिल में थी, उनका हजारवाँ भाग भी पूरा नहीं कर सका. अगर स्वतंत्र, ज़िंदा रह सकता तब शायद इन्हें पूरा करने का अवसर मिलता और मैं अपनी हसरतें पूरी कर सकता. इसके सिवाय मेरे मन में कभी कोई लालच फाँसी से बचे रहने का नहीं आया. मुझसे अधिक सौभाग्यशाली कौन होगा? आजकल मुझे ख़ुद पर बहुत गर्व है. अब तो बड़ी बेताबी से अंतिम परीक्षा का इंतज़ार है. कामना है कि यह और नज़दीक हो जाए.
 
आपका साथी,
भगत सिंह


मैं वीर भगत सिंह के पद-चिन्हों पर चलने का सदैव प्रयास करता हूँ...
क्या आप मेरे साथ क्रांतिकारी हुतात्मा के अनुयायी हो..???
टिप्पणी लिखकर समर्थन करें...

'राष्ट्र सर्वप्रथम सर्वोपरि'
वन्दे मातरम...
जय हिंद... जय भारत...

मैं नास्तिक क्यों हूँ: भगत सिंह

मैं नास्तिक क्यों हूँ: भगत सिंह
(यह लेख भगत सिंह ने जेल में रहते हुए लिखा था जो भगत सिंह के लेखन के सबसे चर्चित हिस्सों में रहा है. इस लेख में उन्होंने ईश्वर के प्रति अपनी धारणा और तर्कों को सामने रखा है. यहाँ इस लेख का कुछ हिस्सा प्रकाशित किया जा रहा है.)

प्रत्येक मनुष्य को, जो विकास के लिए खड़ा है, रूढ़िगत विश्वासों के हर पहलू की आलोचना तथा उन पर अविश्वास करना होगा और उनको चुनौती देनी होगी.
प्रत्येक प्रचलित मत की हर बात को हर कोने से तर्क की कसौटी पर कसना होगा. यदि काफ़ी
तर्क के बाद भी वह किसी सिद्धांत या दर्शन के प्रति प्रेरित होता है, तो उसके विश्वास का स्वागत है.

उसका तर्क असत्य, भ्रमित या छलावा और कभी-कभी मिथ्या हो सकता है. लेकिन उसको सुधारा जा सकता है क्योंकि विवेक उसके जीवन का दिशा-सूचक है.
लेकिन निरा विश्वास और अंधविश्वास ख़तरनाक है. यह मस्तिष्क को मूढ़ और मनुष्य को प्रतिक्रियावादी बना देता है. जो मनुष्य यथार्थवादी होने का दावा करता है उसे समस्त प्राचीन विश्वासों को चुनौती देनी होगी.
यदि वे तर्क का प्रहार न सह सके तो टुकड़े-टुकड़े होकर गिर पड़ेंगे. तब उस व्यक्ति का पहला काम होगा, तमाम पुराने विश्वासों को धराशायी करके नए दर्शन की स्थापना के लिए जगह साफ करना.
यह तो नकारात्मक पक्ष हुआ. इसके बाद सही कार्य शुरू होगा, जिसमें पुनर्निर्माण के लिए पुराने विश्वासों की कुछ बातों का प्रयोग किया जा सकता है.
जहाँ तक मेरा संबंध है, मैं शुरू से ही मानता हूँ कि इस दिशा में मैं अभी कोई विशेष अध्ययन नहीं कर पाया हूँ.
एशियाई दर्शन को पढ़ने की मेरी बड़ी लालसा थी पर ऐसा करने का मुझे कोई संयोग या अवसर नहीं मिला.
लेकिन जहाँ तक इस विवाद के नकारात्मक पक्ष की बात है, मैं प्राचीन विश्वासों के ठोसपन पर प्रश्न उठाने के संबंध में आश्वस्त हूँ.
मुझे पूरा विश्वास है कि एक चेतन, परम-आत्मा का, जो कि प्रकृति की गति का दिग्दर्शन एवं संचालन करती है, कोई अस्तित्व नहीं है.

हम प्रकृति में विश्वास करते हैं और समस्त प्रगति का ध्येय मनुष्य द्वारा, अपनी सेवा के लिए, प्रकृति पर विजय पाना है. इसको दिशा देने के लिए पीछे कोई चेतन शक्ति नहीं है. यही हमारा दर्शन है.
जहाँ तक नकारात्मक पहलू की बात है, हम आस्तिकों से कुछ प्रश्न करना चाहते हैं-(i) यदि, जैसा कि आपका विश्वास है, एक सर्वशक्तिमान, सर्वव्यापक एवं सर्वज्ञानी ईश्वर है जिसने कि पृथ्वी या विश्व की रचना की, तो कृपा करके मुझे यह बताएं कि उसने यह रचना क्यों की?
कष्टों और आफतों से भरी इस दुनिया में असंख्य दुखों के शाश्वत और अनंत गठबंधनों से ग्रसित एक भी प्राणी पूरी तरह सुखी नहीं.
कृपया, यह न कहें कि यही उसका नियम है. यदि वह किसी नियम में बँधा है तो वह सर्वशक्तिमान नहीं. फिर तो वह भी हमारी ही तरह गुलाम है.
कृपा करके यह भी न कहें कि यह उसका शग़ल है.
नीरो ने सिर्फ एक रोम जलाकर राख किया था. उसने चंद लोगों की हत्या की थी. उसने तो बहुत थोड़ा दुख पैदा किया, अपने शौक और मनोरंजन के लिए.
और उसका इतिहास में क्या स्थान है? उसे इतिहासकार किस नाम से बुलाते हैं?
सभी विषैले विशेषण उस पर बरसाए जाते हैं. जालिम, निर्दयी, शैतान-जैसे शब्दों से नीरो की भर्त्सना में पृष्ठ-के पृष्ठ रंगे पड़े हैं.
एक चंगेज़ खाँ ने अपने आनंद के लिए कुछ हजार ज़ानें ले लीं और आज हम उसके नाम से घृणा करते हैं.
तब फिर तुम उस सर्वशक्तिमान अनंत नीरो को जो हर दिन, हर घंटे और हर मिनट असंख्य दुख देता रहा है और अभी भी दे रहा है, किस तरह न्यायोचित ठहराते हो?
फिर तुम उसके उन दुष्कर्मों की हिमायत कैसे करोगे, जो हर पल चंगेज़ के दुष्कर्मों को भी मात दिए जा रहे हैं?

मैं पूछता हूँ कि उसने यह दुनिया बनाई ही क्यों थी-ऐसी दुनिया जो सचमुच का नर्क है, अनंत और गहन वेदना का घर है?
सर्वशक्तिमान ने मनुष्य का सृजन क्यों किया जबकि उसके पास मनुष्य का सृजन न करने की ताक़त थी?
इन सब बातों का तुम्हारे पास क्या जवाब है? तुम यह कहोगे कि यह सब अगले जन्म में, इन निर्दोष कष्ट सहने वालों को पुरस्कार और ग़लती करने वालों को दंड देने के लिए हो रहा है.
ठीक है, ठीक है. तुम कब तक उस व्यक्ति को उचित ठहराते रहोगे जो हमारे शरीर को जख्मी करने का साहस इसलिए करता है कि बाद में इस पर बहुत कोमल तथा आरामदायक मलहम लगाएगा?
ग्लैडिएटर संस्था के व्यवस्थापकों तथा सहायकों का यह काम कहाँ तक उचित था कि एक भूखे-खूँख्वार शेर के सामने मनुष्य को फेंक दो कि यदि वह उस जंगली जानवर से बचकर अपनी जान बचा लेता है तो उसकी खूब देख-भाल की जाएगी?
इसलिए मैं पूछता हूँ, ‘‘उस परम चेतन और सर्वोच्च सत्ता ने इस विश्व और उसमें मनुष्यों का सृजन क्यों किया? आनंद लुटने के लिए? तब उसमें और नीरो में क्या फर्क है?’’
मुसलमानों और ईसाइयों. हिंदू-दर्शन के पास अभी और भी तर्क हो सकते हैं. मैं पूछता हूँ कि तुम्हारे पास ऊपर पूछे गए प्रश्नों का क्या उत्तर है?
तुम तो पूर्व जन्म में विश्वास नहीं करते. तुम तो हिन्दुओं की तरह यह तर्क पेश नहीं कर सकते कि प्रत्यक्षतः निर्दोष व्यक्तियों के कष्ट उनके पूर्व जन्मों के कुकर्मों का फल है.
मैं तुमसे पूछता हूँ कि उस सर्वशक्तिशाली ने विश्व की उत्पत्ति के लिए छः दिन मेहनत क्यों की और यह क्यों कहा था कि सब ठीक है.
उसे आज ही बुलाओ, उसे पिछला इतिहास दिखाओ. उसे मौजूदा परिस्थितियों का अध्ययन करने दो.
फिर हम देखेंगे कि क्या वह आज भी यह कहने का साहस करता है- सब ठीक है.


वीर भगत सिंह के 105 वें जन्म दिवस पर क्रांतिकारी हुतात्मा को शत-शत नमन.

'राष्ट्र सर्वप्रथम सर्वोपरि'
वन्दे मातरम...
जय हिंद... जय भारत...

Wednesday 15 August 2012

ये कैसी आजादी.. यह कैसा स्वतंत्रता दिवस.??

रेवाड़ी (हरियाणा) से पिछले तीस साल से लगातार एकमात्र विधायक के निवास के सामने से निकलकर और शहर के पॉश इलाके 'मॉडल टाउन' से गुजरकर छोटे भाई को बस स्टैंड से लेने के लिए जा रहा था...

बाल-भवन के साथ लगती नाली के पास एक भिखारी जैसा अर्ध विक्षिप्त सा आदमी नाली में पड़ी पोलीथिन से निकालकर कुछ खा रहा था.!!
उसे देखते ही एक उबकाई के साथ दिमाग सन्नाटे में आ गया...

मैं ज़रा जल्दी में था... थोडा आगे चला कानों में आवाज पड़ी 'जिसे मान चुकी सारी दुनिया... भारत का रहने वाला हूँ.!!'
देश का भूत, वर्तमान, भविष्य अँधेरा बनकर मन-मस्तिष्क पर छा गया.??
उस व्यक्ति की सहायता के उद्देश्य से पांच मिनट बाद वापस आया...
मगर अफ़सोस वो नही मिला.!!

देखकर पर भी कुछ ना कर पाने का पश्चाताप मन में लेकर घूम रहा हूँ...


ये कैसी आजादी.. यह कैसा स्वतंत्रता दिवस.??

किस कलम से लिखूं- 'शुभकामनाएं'.??
और किस मुहं से दूँ- 'बधाइयाँ'.???

गोरे अंग्रेजों से काले अंग्रेजों को सत्ता हस्तांतरण के समझौते के 65
वर्ष पूरे होने पर किस बात की शुभकामनाएं.??

भ्रष्टाचार, लूट-खसोट, घपले-घोटाले, जुल्म, अत्याचार और अन्याय के 65 वर्ष पूरे होने पर किस बात की शुभकामनाएं.??

युवाओं में बढती चरित्रहीनता, अनैतिकता और पैसों की भूख के लिए सब कुछ दांव पर लगा देने के चारित्रिक पतन के 65 वर्ष पूरे होने पर किस बात की शुभकामनाएं.??

'नेहरु से नारायण दत्त अभिसेक्स' तक नेताओं में फ़ैली पोर्न स्टार विकृति के 65 वर्ष पूरे होने पर किस बात की शुभकामनाएं.??

पाकिस्तानी और बंगला देशी घुसपैठियों को 'राशन कार्ड' वाली कांग्रेसी शरण देने के और मुस्लिम तुष्टिकरण के 65 वर्ष पूरे होने पर किस बात की शुभकामनाएं.??

हिन्दुओं पर बढ़ते द्वेष व वैमनस्य वाले अत्याचार, जबरन धर्मान्तरण और मुस्लिम तुष्टिकरण द्वारा नीचा दिखाने के 65 वर्ष पूरे होने पर किस बात की शुभकामनाएं.??

मूलभूत सुविधाओं का अभाव, गरीबी, महंगाई, बढ़ते पूंजीवाद और आर्थिक विषमता की अपाट खाई के 65 वर्ष पूरे होने पर किस बात की शुभकामनाएं.??

भूख, भीख और गरीबी की हजारों योजनाओं में करोड़ों रूपये बर्बाद करके भी 'जहाँ से चले वहीं खड़े' जैसी स्थिति के 65 वर्ष पूरे होने पर किस बात की शुभकामनाएं.??

'फूट डालो राज करो' की पैतृक अंग्रेजी नीति और आरक्षण के नाम पर देश के सामाजिक, राजनैतिक और आर्थिक विघटन के 65 वर्ष पूरे होने पर किस बात की शुभकामनाएं.??

रोबोट प्रधानमन्त्री और कठपुतली राष्ट्रपति के 'किंग मेकर', स्विस बैंक्स काला धन माफिया और लोकतंत्र को लूटतंत्र बनाने वाले गाँधी-नेहरु खानदान की राजशाही के 65 वर्ष पूरे होने पर किस बात की शुभकामनाएं.??

तथाकथित 'स्वतंत्रता दिवस' के सच्ची आजादी में नहीं बदलने के 65
वर्ष पूरे होने पर किस बात की शुभकामनाएं.??


मुझे मेरे देश, मेरी धरती व मातृभूमि से स्वयं से ज्यादा और सबसे ज्यादा प्रेम है...
मैं 'राष्ट्र सर्वप्रथम सर्वोपरि' का कट्टर समर्थक और अनुयायी हूँ...
मगर क्या करूँ मित्रो.!!
ख़ुशी तब मनाई जाती है जब कोई दुःख नही होता.!!


'राष्ट्र सर्वप्रथम सर्वोपरि'

वन्दे मातरम्...
जय हिंद... जय भारत...