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Wednesday 14 September 2011

हिंदी, हिन्दू और हिंद विरोधी प्रधानमंत्री-

हिंदी, हिन्दू और हिंद विरोधी प्रधानमंत्री-
भारत का कैसा दुर्भाग्य है कि उसे हिंदी, हिन्दू और हिंद विरोधी प्रधानमंत्री ही अधिक मिले 
सर्वप्रथम मेकोले की अँग्रेजी-मिशनरी नीतियो का पालन करने को कटिबद्ध जवाहरलाल नेहरू 18 वर्षों तक भारत के प्रधानमंत्री बने रहे उन्हें तो भारत शब्द से ही घृणा थी संविधान में भारत के लिए इंडिया शब्द पर वे बहुत अड़े रहे
भारत की भाषा, भारत का धर्म और भारतीय वेषभूषा से भी उन्हें एलर्जी हुआ करती थी और धोती को वे असभ्यों का वेश मानते थे कुल मिलाकर वह हर चीज बुरी और असभ्य मानते थे जो अंग्रेज़ नहीं करते

समस्त भारत में स्वतन्त्रता के समय हिन्दी को ही राष्ट्र भाषा बनाए जाने की मांग थी, किन्तु जवाहरलाल नेहरू ने ऐसे हथकंडे अपनाए कि हिन्दी राष्ट्र भाषा बन ही न सके हिन्दी विरोधी लॉबी को बढ़ावा देते रहे, उनके शिक्षा मंत्री मौ॰ आजाद हिन्दी-विरोधी आंदोलनो के लिए पैसे बांटते रहे तमिलनाडू के रामास्वमी नाइक़र को हिन्दी के विरोध के लिए समय समय पर भारी धन राशि से सहायता करते रहे हिन्दी विकसित नहीं हैयह तर्क दिया गया (भाषाओं की जननी संस्कृत की बेटी जिसे कहा जाता हैं वह विकसित नहीं है, ऐसा मानना था जवाहर लाल नेहरु का ) ‘हिन्दी के स्थान पर हिंदुस्तानी होनी चाहिएइसे आंदोलन बनाया गया और सरकारी धन लुटाया क्षेत्रीय भाषाओं की मांग को बलवती बनाया गया ऐसे कुछ प्रदेशों को अहिंदी भाषी प्रदेशों की संज्ञा दी गई आजकल हिन्दी मराठी जैसे झगड़े सब नेहरू की ही देन है
हिन्दी की उपभाषाओं जैसे राजस्थानी, हिमाचली, डोगरी, मैथिली, भोजपुरी, अवधी आदि की मांगे उठवा कर हिन्दी के पक्ष को दुर्बल करना चाहा ऐसे बे सिर पैर के तर्क दिये गए कि राष्ट्रभाषा से भारत विभाजित हो जाएगा ( जबकि संसार में किसी भी देश कि राष्ट्रीय एकता के लिए राजभाषा को आवश्यक माना जाता है) देश के नेता बाबू राजेंद्र प्रसाद, श्री टंडन और हजारो महापुरुष सिर पटकते रहे पर जवाहर लाल ने किसी की भी नहीं चलने दी और आज यह दशा हैं कि जिस इंगलेंड ने हमारी भारत माता को गुलामी की जंजीरों में जकडा, देशभक्तो को फांसी पर लटकाया, हमारी भाषा को दबाया, उन हजारों मील दूर से आए अंग्रेज़ो की अवैज्ञानिक भाषा को ही वास्तविक रूप में भारत में राष्ट्रभाषा के सिंहासन पर विराजमान कर दिया हैं नेहरू का पाक प्रेम तो इतना अधिक था कि वे इस बात से उदासीन रहते थे कि कौन सा क्षेत्र पाकिस्तान में जा रहा हैं और कौन सा भारत में रहेगा उनका सोचना था कि क्या फर्क पड़ता है यदि कुछ हजार इधर उधर रह गया
चीन से लड़ाई हारने पर इस प्रधानमंत्री से संसद मे पूछा गया कि क्यों हारे.??
कैसे बटवारा किया जमीन का.??
तो जवाब क्या आयावह जमीन जो चीन ने ली है उस पर तो घास का तिनका भी नहीं उगता
इस कथन पर तपाक से एक सांसद प्रकाशवीर शास्त्री ने कहा किपीएम साहब! आपके गंजे सिर पर भी एक बाल नहीं उगता तो क्या इसे काट दिया जाना चाहिए.?”
इसी कारण कितने ही हिन्दू बहुल जिले अनुचित रूप से पाकिस्तान को दे दिये गए जैसे सिंध के थरपारकर के क्षेत्र, बंगाल का खुलना जिला, ‘हिन्दू बहुललाहौर, यहाँ तक कि 98 प्रतिशत हिन्दू बौद्ध जनसंख्या वाला पर्वतीय जिला चट्ट्गांव भी बांग्लादेश मे चला गया (जिसे हम क्रिकेट के मैदान के रूप मे याद करते है आजकल)

सुचना के अधिकार से नेहरु के बारे में आज एक बहुत ही गन्दी और भयावह सच्चाई पता चली है-
असल में नेहरु हिन्दुओ से बहुत घृणा करते थे
जब सरदार पटेल जी के प्रयासों से सोमनाथ मंदिर 1951में बनकर तैयार हुआ तो सरदार पटेल जी ने राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद जी से मंदिर का उद्घाटन करने का अनुरोध किया जिसे राजेन्द्र बाबू ने सहर्ष स्वीकार कर लिया. साथ ही सरदार पटेल जी ने नेहरू जी से भी पत्र लिखकर इस समारोह में भाग लेने की अपील की.

लेकिन नेहरु जिसे कांग्रेसी भारत का "शिल्पी " आदि ना जाने किन किन झूठे अलंकारों से नवाजते है, ने अपनी गन्दी और तुच्छ मानसिकता का परिचय देते हुए सिर्फ वोट बैंक की खातिर सरदार पटेल को एक पत्र लिखकर कहा कि वो किसी भी ऐसे समारोह में नहीं जाते जिससे देश का साम्प्रदायिक सद्भाव बिगड़े और नेहरु ने राजेन्द्र बाबू से भी पत्र लिखकर सोमनाथ के उद्घाटन समारोह में ना जाने की अपील की, जिसे राजेन्द्र बाबू ने अस्वीकार कर दिया.
लेकिन चूँकि भारत में प्रधानमंत्री सत्ता का केन्द्र है इसलिए राजेंद्र बाबू ने नेहरु का मान रखते हुए सरकारी खर्च के बजाय निजी पैसे से समारोह में शिरकत की. उन्होंने फ्रोंतियर मेल ट्रेन से बरोड़ा फिर बरोड़ा से सोमनाथ पहुचे,
जबकि देश के राष्ट्रपति को विशेष ट्रेन और जहाज़ की सुविधा है.

हालांकि नेहरु ने लखनऊ के नदवा इस्लामिक कालेज, अजमेर दरगाह और देवबंद के दारुल उलूम के कई समारोहों में एक प्रधानमंत्री के तौर पर शिरकत की थी...
क्या तब नेहरु को इस देश की साम्प्रदायिक सद्भाव का ख्याल नहीं था.?

इसी वोट बैंक की तुष्टिकरण नीति को वर्तमान में सोनिया गांधी बखूबी आगे बढा रही है...

कूटनीतिक द्रष्टिकोण से 1971 में हारे हुए पाकिस्तान के बंदी सैनिकों को 'बिना कश्मीर' रिहा करना इंदिरा गांधी की 'मूर्खता' ही समझी जाती है...

इतिहास साक्षी है कि हमारे शत्रु-प्रेमी प्रधानमंत्री भारत को बहुत महंगे पड़े है...
कश्मीर समस्या जो भारत के कलेजे का नासूर बनी है वह पाक प्रेम का ही दुष्परिणाम है,
नहीं तो क्यों महाराजा हरिसिह के कश्मीर को भारत में मिलाने के प्रस्ताव को लंगड़ा बना डाला गया?
क्यों कश्मीर के भारत में विलय के मार्ग में रुकावटें डाली गई?
क्यों कश्मीर की पुण्यभूमि को इस प्रकार मलेच्छों द्वारा पदाक्रांत करने दिया गया?
क्यों कश्मीर में तब लाखों हिंदुओं को पाकिस्तानियों के हाथों मारे जाने के लिए असहाय छोड़ दिया गया.?
क्यों भारत की विजयी सेना को पाक विजित क्षेत्रों को पुनः जीत कर भारत में मिला लेने से रोक लिया गया.??
और क्यों आक्रमणरत पाकिस्तान को 55 करोड़ रूपए(आज के वक़्त के बीस हज़ार करोड़ रूपये, इसके लिए गांधी द्वारा अनशन किया गया) मंत्रिमंडल का विरोध होते हुए भी दे दिये गए?
देश के शीर्ष नेताओं का पाक प्रेमी होना हमेशा भारत के लिए खतरा रहा है.??

केवल एक और घटना का उल्लेख करते हैं जो अभी तक जनता के सामने नहीं आई, मोरारजी देसाई उच्चकोटि के गांधीवादी थे जब वे प्रधानमंत्री बने तो उन्हें भारत की गुप्तचर एजेंसी राकी फाइलों से पता चला कि पाकिस्तान में परमाणु बम बनाने की जो तैयारियां चल रही हैं उसे विफल करने के लिए, और इस हेतु क्वेटा में बन रहे कारखाने को ध्वस्त करने के लिए पूर्व प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी की स्वीकृति से भारत के गुप्तचर पाकिस्तान में सक्रिय हैं उन्होने इस कार्य में कुछ पाक नागरिकों का सहयोग भी प्राप्त कर लिया, रा के पूर्व निदेशक श्री मलिक ने अपने लेख मे बताया कि मात्र दस हजार डॉलर में इस योजना का पूरा मानचित्र कोई वैज्ञानिक बेचने के लिए तैयार था किन्तु गांधीवादी प्रधानमंत्री को रा के इस कृत्य पर क्रोध गया, दस हजार डालर तो क्या देने थे, उन्होने गांधी से भी बढ़कर कार्य किया और मोरारजी ने रा की पूरी योजना से ही पाकिस्तान को अवगत करा दिया...
और कुछ समय पश्चात् पाकिस्तान का सबसे बड़ा पुरस्कार 'निशान-ए-पाकिस्तान' प्राप्त किया...
वन्दे-मातरम्...
जय हिंद...जय भारत....

 

3 comments:

  1. आँखे खोलना वाला लेख|अपने स्वार्थ के लिए देश बेचने वाले इन नेताओं की हकीकत बयान करने के लिए साधुवाद||

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  2. हालांकि नेहरु ने लखनऊ के नदवा इस्लामिक कालेज, अजमेर दरगाह और देवबंद के दारुल उलूम के कई समारोहों में एक प्रधानमंत्री के तौर पर शिरकत की थी...
    क्या तब नेहरु को इस देश की साम्प्रदायिक सद्भाव का ख्याल नहीं था.?

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  3. मेकोले जब भारत आया तो उस ने देखा की एक किसान मिटटी पर ही सो रहां है .एक गरीब कुम्हार हस्ते हुए घड़े बना रहां था.और बहुत सी चीजे देखि मकोले ने भारत मे .वेह सोच मे पद गया की .यहाँ के लोग इतने खुश की मिटटी पर एक किसान सो रहां है.लेकिन हमारे देश मे तो लोगो को रात को नीद तक नही आती.कितने खुश भारत के लोग .इस ख़ुशी के पीछे क्या राज हो सकता है .. मकोले ने निर्कश निकला की इस के पीछे इनकी संस्कृति ,और आद्यात्मिकता है . देश मे आज भी बच्चो को राजा महाराजो की गाथाएं सुनाई जाती है.यहाँ की संस्कृति इतनी ब्रभावित है की इस हिन्दू धर्म मे एसा कोई भी त्यौहार नही जो दुखी का त्यौहार हो..इन की संस्कृति जब तक लोगो के मन मे है तब तक इन्हें गुलाम बनाया नही जा सकता.उसने सोचा इन की संस्कृति से ये दूर होंगे ...तभी इन्हें गुलाम बनाया जा सकता है ..अन्यथा नहीं ...हिन्दू संतो को बदनाम करना होगा जो इन्हें हिन्दू संस्कृति की शिक्षा दे रहे है ....

    जो आज मकोले का mission सफल होते दिखाई दे रहां है .. हम अपनी संस्कृति के ही दुश्मन हो रहे है .

    सब के मन मे बसने वाले राम को बोला जाता है की वो है ही नही .
    रामसेतु तोड़ने को कहाँ जाता है ..आज मकोले का सिधांत सफल होते दिखाई दे रहां है ...

    इन नेताओ की हकीकत बयां करने के लिए धन्यवाद ...

    जितेंदर जी
    दिल की अँधेरी रात मे दिल को न बेक़रार कर .
    सुबह जरुर आयेगी सुबह का इंतजार कर.

    आज भारत के संत ,भारत की हिन्दू संस्कृति दुनिया मे महशूर हो गयें .भले ही हमारें नेता इन्हें न माने. कुछ उद्धरण देता हूँ.


    पंजाब केसरी २४ ओक्टुबर २००९ को प्रकाशित :- अमेरिका वासियों ने हृदय की शांति के लिए ॐ का जप शुरू किया .

    हिन्दू समाज के पवन ग्रंथो का ज्ञान आज विदेशो मे भी अपना प्रकाश फैला रहां है .ताईवान , नेपाल , श्री लंका , मलेशिया ,आस्ट्रलिया ,जर्मनी , सहित कई और देशो मे हिन्दू ग्रन्थ के शलोक का प्रचार वहां के लोगो
    जहाँ हृदय की शांति के लिए करते है . वही अब अमेरिका मे भी वहां के लोगो ने " ॐ " का जब शुरू कर दिया है.!
    जानकारी के अनुसार यह बात सामने आयी है की अमेरिका की प्रसिद्ध पत्रिका " न्यूज़ वीक " मे इस सर्वे पर छपे एक लेख के अनुसार अमरेकी विचार का स्तर धीरे --धीरे हिन्दू होने लगा है. और अपनी परम्परागत ईसाइयत से दूर हो रहे है. इस समय अमेरिका मे रह रहे १० लाख से अधिक हिन्दुओ के
    रहन --सहन ने उनमे यह परिवर्तन ला दिया है ! वर्ष २००८ मे हुए सर्वे के अनुसार ईसाईयों ने माना है कि हिन्दू धर्मं सर्श्रेष्ट है.! उन्होंने "ॐ " का जाप करके परिक्षण किया .तो उन्हें अधिक शांति मिली ! अब हाल ये है कि लोग गिरजाघरो के बहार बैठकर ही "ॐ" का जाप करते है .
    आश्रम जी बापू का डाक टिकट अमेरिका मे चल रहां है ..
    और भी बहुत सी बातें है.. आने वाला समय हमारा है ...
    जल्द ही भारत विश्व गुरु के पद पर असीं होगा ..इस मे तनिक मात्र भी संदेह नही है .

    आप का मित्र
    कँवर विक्रांत सिंह

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