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Saturday 10 September 2011

महान क्रांतिकारी 'बाघा जतिन'...

क़लम, आज उनकी जय बोल-
जतिंद्र नाथ मुखर्जी, प्यार से 'बाघा जतिन' के रूप में याद किये जाते है, भारत में ब्रिटिश शासन के खिलाफ मुख्य बंगाली क्रांतिकारियों में से थे.. एक बहुत छोटी उम्र से, बाघा जतिन ने अंग्रेजों के खिलाफ क्रांतिकारी गतिविधियों के आयोजन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी और युगांतर राजनीतिक दल के नेता बने.
चार्ल्स ऑगस्टस तेगार्ट, भारत में एक ब्रिटिश पुलिस अधिकारी ने मशहूर टिप्पणी की है कि बंगाली क्रांतिकारी निस्वार्थ राजनैतिक कार्यकर्ताओं की एक नस्ल के हैं और बाघा जतिन एक शानदार उदाहरण थे..

जतिन्द्रनाथ मुखर्जी 7 दिसंबर,1879 को बंगाल के नदिया जिले के कुश्तिया उपखंड के कायाग्राम गांव में पैदा हुए थे. कायाग्राम वर्तमान में बांग्लादेश में स्थित है. अपने जन्म के तुरंत बाद, जतिन्द्रनाथ मुखर्जी सधुहती अपने पिता के पैतृक घर भेजे गए थे और अपने पिता की मृत्यु तक वहां रुके थे, जब वह केवल 5 साल के थे.. वह कायाग्राम लौटे अपने माँ के साथ और नाना-नानी के घर में रहते थे..
एक बच्चे के रूप में जतिन्द्रनाथ मुखर्जी व्यापक रूप से अपनी शारीरिक शक्ति और साहस के लिए जाने जाते थे... जबकि वह एक 'नेता' पैदा हुए थेजतिन्द्रनाथ मुखर्जी के चरित्र के लिए यह एक और पक्ष है जो कम देखा गया है.. जतिन उल्लासपूर्ण और बहुत दयालु थे.. सबसे महत्वपूर्ण बात ये कि उन्होंने सामाजिक या धार्मिक स्थिति के आधार पर लोगों के बीच वह कभी भेदभाव नहीं किया.. 

वर्ष 1895 में, जतिन्द्रनाथ मुखर्जी कलकत्ता सेन्ट्रल कॉलेज में ललित कला के एक छात्र के रूप में शामिल हो गए. उन्होंने स्टेनो टाइपिंग, जो अपने समय के दौरान एक प्रतिष्ठित कोर्स था, में छात्र के रूप में दाखिला लिया. अपने कॉलेज के वर्षों के दौरान  जतिन्द्रनाथ मुखर्जी स्वामी विवेकानंद के संपर्क में आये जिनके  सामाजिक और राजनीतिक विचारों को बाद में जतिन ने प्रेरणा के रूप में क्रांतिकारी गतिविधियों का संचालन  करने के लिए उपयोग किया. जतिन जल्द ही सिस्टर निवेदिता सहायता समूह का हिस्सा बन गये. यह स्वामी विवेकानंद थे जिन्होंने जतिन्द्रनाथ मुखर्जी की क्षमता का एहसास एक भविष्य के  क्रांतिकारी के रूप में किया और उन्हें कुश्ती कला सीखने के लिए अम्बुगुहा के जिमनैजियम भेजा था यहाँ जतिन सचिन बनर्जी के संपर्क में आये.. ब्रिटिश भारत के औपनिवेशिक शिक्षा प्रणाली से नाखुश, जतिन्द्रनाथ मुखर्जी ने 1899 में अपनी पढ़ाई छोड़ दी और बैरिस्टर प्रिंगल केनेडी, जिनके लेखन और ऐतिहासिक अनुसंधान से प्रभावित और प्रेरित जतिन, सचिव के रूप में मुजफ्फरपुर  चले गए..

हालांकि रिपोर्ट की पुष्टि नहीं की जा सकती है, यह कहा गया था कि जतिन्द्रनाथ मुखर्जी कलकत्ता में छात्र वर्षों के सन 1900 में अनुशीलन समिति के संस्थापकों में से थे. अनुशीलन समिति ने ब्रिटिश सरकार के समर्थकों और अधिकारियों को मारने की दिशा में काम किया. मीडिया रिपोर्ट में यह भी सुझाव दिया है कि जतिन्द्रनाथ मुखर्जी ने श्री अरविंद,जो पहले से ही उस समय के स्थापित क्रांतिकारी थे, के साथ हाथ मिलाया था, और वर्ष 1903 में समूह ने ब्रिटिश रेजिमेंट में भारतीय सैनिकों पर क्रांति के द्वारा जीत की योजना तैयार की...

यह जतिन्द्रनाथ मुखर्जी थे जिनके कारण औपनिवेशिक भारत में अंग्रेजी अधिकारियों के हाथों दुर्व्यवहार की ओर प्रिंस ऑफ वेल्स का ध्यान आकर्षित किया था, राजकुमार वर्ष 1905 में देश के लिए एक औपचारिक यात्रा पर था..

एक तेंदुआ कायाग्राम गांव के आसपास के क्षेत्र में रहने वाले लोगों के लिए बहुत परेशानी का कारण बना हुआ था.. अपने जीवन के बारे में चिंता नहीं करते हुए, जतिन्द्रनाथ मुखर्जी ने तेंदुए की हत्या के जोखिम का फैसला लिया. केवल एक खुखरी(गोरखा कटार) के साथ जतिन्द्रनाथ मुखर्जी ने गर्दन पर वार करके तेंदुए को मार डाला, लेकिन उनके स्वयं के शरीर पर गंभीर घाव हुए. बहादुरी के इस कार्य के लिए जतिन्द्रनाथ मुखर्जी को एक रजत ढाल मिला जिस पे जतिन को बाघ को मारते हुए उत्कीर्ण किया गया था और उन्हें 'बाघा जतिन' के नाम से प्रसिद्धि मिली..

बाघा जतिन जल्द ही कलकत्ता लौटे अपनी क्रांतिकारी गतिविधियों को जारी रखने के लिए, बारीन्द्र  घोष, क्रांतिकारी श्री अरबिंदो के भाई के साथ उन्होंने देवघर और कलकत्ता के मानिकतला क्षेत्र में बम कारखानों की स्थापना की. बाघा जतिन की धर्मार्थ की भावना ने उन्हें  प्राकृतिक आपदाओं में बाढ़ और महामारी की पीड़ा के लिए राहत गतिविधियों को शुरू करने के लिए मदद की. बाघा जतिन हमेशा कुंभ मेला, अर्धोदय या रामकृष्ण के जन्म का उत्सव जैसे धार्मिक समारोहों में मौजूद रहते थे.
वर्ष 1907 में बाघा जतिन दार्जिलिंग में तीन वर्ष की अवधि के लिए एक विशेष मिशन पर गए. दार्जिलिंग में भी बाघा जतिन अपनी शारीरिक शक्ति, अपने अपार साहस और निर्भयता के प्रदर्शन के कार्य करने के लिए प्रसिद्ध हो गए.. उन्होंने दार्जिलिंग में अनुशीलन समिति की एक शाखा खोली और नाम दिया बंधब समिति. अप्रैल 1908 में बाघा जतिन सिलीगुड़ी रेलवे स्टेशन पर तीन अंग्रेजी सैन्य अधिकारियों के साथ एक लड़ाई में शामिल हो गए और उन सभी को अकेले पीटा. 1908 में, बंगाल में कई क्रांतिकारियों को मुजफ्फरपुर में अलीपुर बम प्रकरण में आरोपित किया गया था, जबकि जतिन्द्रनाथ मुखर्जी आज़ाद थे.. उन्होंने गुप्त क्रांतिकारियों का युगांतर पार्टी के रूप में नेतृत्व ले लिया..

बाघा जतिन ने बंगाल, बिहार, उड़ीसा और उत्तर प्रदेश भर में विभिन्न शहरों में क्रांतिकारियों की विभिन्न शाखाओं के बीच मजबूत संपर्क स्थापित किया. यह समय वह था जब वरिष्ठ नेताओं के सलाखों के पीछे जाने के बाद अंग्रेजों के खिलाफ बंगाल क्रांति के नए नेता के रूप में बाघा जतिन उभरे..  वह बंगाल में उग्रवादी क्रांतिकारी नीति शुरू करने के लिए जिम्मेदार थे.. बाघा जतिन को 27 जनवरी,1910 को गिरफ्तार किया गया था, हालांकि वह कुछ दिनों के बाद छोड़ दिए गए थे..

1910 में हावड़ा-सिबपुर षड्यंत्र केस की विफलता के बाद जतिन को गिरफ्तार किया गया और फरवरी 1911 में रिहा हुए.. जेल से अपनी रिहाई के बाद, बाघा जतिन ने राजनीतिक विचारों और विचारधाराओं के एक नए युग की शुरूआत की..  वर्ष 1913 में कोलकाता लौटकर उन्होंने युगांतर पार्टी का पुनर्गठन कर क्रांतिकारी गतिविधियों को फिर से शुरू किया. बाघा जतिन की राजनीति में वापसी इतनी प्रभावशाली रही कि क्रांतिकारी रास बिहारी बोस ने बनारस से कलकत्ता स्थानांतरित होकर जतिन्द्रनाथ मुखर्जी के नेतृत्व में काम करना स्वीकार किया..

1914
में प्रथम विश्व युद्ध के बाद, जतिन मुखर्जी की युगांतर पार्टी ने बर्लिन समिति और जर्मनी में भारतीय स्वतंत्रता पार्टी के गठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. जबकि भारतीयों की अंग्रेजो के खिलाफ क्रांति योजनाओं को जर्मनी का समर्थन प्राप्त था, यह बाघा जतिन थे जिन्होंने इस पूरी प्रक्रिया में समन्वय और नेतृत्व प्रदान किया था. हालांकि युगांतर और जतिन मुखर्जी की गतिविधियों ने जल्द ही पुलिस अधिकारियों का ध्यान पकड़ा, जिससे जतिन मुखर्जी अप्रैल 1915 में उड़ीसा में बालासोर जाने के लिए मजबूर हुए.. उन्होंने उड़ीसा तट चुना क्योंकि यहाँ पर जर्मन हथियार आपूर्ति देने वाले थे जो कि अंग्रेजों के खिलाफ उनके विद्रोह में भारत की सहायता करेगा. भारतीय क्रांतिकारियों के लिए जर्मनी से मदद लेने की योजना अमेरिका को चेक क्रांतिकारियों द्वारा पता चली थी. अमेरिकियों ने ब्रिटेन को बाघा जतिन की शक्तियों पर अंकुश लगाने की सूचना दी..
एक अमेरिकी प्रचारक ने मशहूर टिप्पणी की थी कि "बाघा जतिन कुछ और अधिक वर्षों के लिए जीवित रहते तो कोई भी महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता के रूप में नहीं जानता."
जैसे ही जर्मनी के साथ जतिन मुखर्जी की भागीदारी के बारे में ब्रिटिश अधिकारियों को पता चला, उन्होंने तत्काल कार्रवाई से गंगा के डेल्टा क्षेत्रों, उड़ीसा के चटगांव और नोआखली तटीय क्षेत्रों को सील कर दिया.. पुलिस खुफिया विभाग की एक इकाई को बालासोर जतिन्द्रनाथ मुखर्जी के ठिकाने की खोज करने के लिए भेजा था. बाघा जतिन को अंग्रेजों द्वारा की गई कार्रवाई के बारे में पता था और उन्होंने अपने छिपने का स्थान छोड़ दिया है, उड़ीसा के जंगलों और पहाड़ियों में चलने के दो दिनों के बाद बालासोर रेलवे स्टेशन तक पहुँचे.. न केवल ब्रिटिश बल्कि ग्रामीण भी बाघा जतिन और उनके साथियों की खोज में थे क्युकी ब्रिटिश सरकार ने 'पांच डाकुओं' के बारे में जानकारी देने वाले को इनाम देने की घोषणा की थी.. अंत में 9 सितंबर 1915 को जतिन मुखर्जी और उनके साथियों ने बालासोर में चाशाखंड क्षेत्र में एक पहाड़ी पर बारिश से बचने के लिए आश्रय लिया हालांकि चित्ताप्रिया और उनके साथियों ने बाघा जतिन से आग्रह किया उन्हें छोड़ कर जाने के लिए लेकिन जतिन ने अपने दोस्तों को खतरे में अकेला छोड़कर जाने से इनकार कर दिया. पांच क्रांतिकारियों जिनके पास माउजर,पिस्टल थी और आधुनिक राइफल से लैस पुलिस और सशस्त्र सेना के बीच 75 मिनट चली मुठभेड़ में अनगिनत लोग ब्रिटिश सरकार के घायल हो गए और क्रांतिकारियों में चित्ताप्रिया रे चौधरी की मृत्यु हो गई, जतिन और जतिश गंभीर रूप से घायल हो गए, जब गोला बारूद ख़त्म हो गया तो मनोरंजन सेनगुप्ता और निरेन पकडे गए.. बाघा जतिन को बालासोर अस्पताल ले जाया गया जहां उन्होंने 10 सितंबर, 1915 को अपनी अंतिम सांस ली.

आज 'बाघा जतिन' की पुण्य तिथि पर श्री रामधारी सिंह 'दिनकर' की कुछ महान पंक्तियों के साथ माँ भारती के इस सच्चे शहीद सपूत को कोटि-कोटि नमन

जला अस्थियाँ बारी बारी
छिटकायीं जिनने चिंगारी

जो चढ़ गए पुण्य-वेदी पर

लिए बिना गर्दन का मोल


क़लम, आज उनकी जय बोल !



जो अगणित लघु दीप हमारे

तूफ़ानों में एक किनारे

जल-जल कर बुझ गए

किसी दिन माँगा नहीं स्नेह मुंह खोल


क़लम, आज उनकी जय बोल !



पी कर जिनकी लाल शिखाएं

उगल रहीं लू-लपट दिशाएँ

जिन के सिंहनाद से सहमीं

धरती रही अभी तक डोल


क़लम, आज उनकी जय बोल !



अंधा चकाचौंध का मारा

क्या जाने इतिहास बेचारा

साखी हैं उनकी महिमा के

सूर्य, चन्द्र, भूगोल, खगोल


क़लम, आज उनकी जय बोल !

वन्दे मातरम्...
जय हिंद.. जय भारत...

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