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Tuesday 27 September 2011

'शहीद-ए-आज़म' भगत सिंह के 104 वें जन्मदिवस की शुभकामनाएं...

क्रांति के महानायक और 'इन्कलाब जिंदाबाद' के प्रणेता 'शहीद-ए-आज़म' भगत सिंह के 104 वें जन्मदिवस पर उनके चरणों में शत शत नमन...
इन्कलाब जिन्दाबाद जैसे नारे देने वाले महान क्रान्तिकारी 'शहीद-ए-आज़म' भगत सिंह  का जन्म सरदार किशन सिंह संधू और सरदारनी विद्यावती कौर के घर 28 सितम्बर 1907 को वर्तमान पाकिस्तान के पंजाब में लायलपुर जिले के एक गांव में हुआ था.. लायलपुर अब फैसलाबाद के नाम से प्रसिद्ध है.. उनका पैतृक गांव खटकर कलां पंजाब के नवांशहर जिले में बंगा कस्बे के पास है जिसे हाल ही में 'शहीद भगत सिंह नगर' का नाम दिया गया है..
उन्हें अपनी दादी से "भागां वाला" उपनाम मिला था, जिसका अर्थ "भाग्यशाली" होता है..
भगत सिंह को देशभक्ति विरासत में मिली थी, उनके दादा, अर्जुन सिंह ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया था और महाराजा रणजीत सिंह की सेना में सेवा की थी, वो स्वामी दयानंद सरस्वती के हिन्दू सुधारवादी आंदोलन, आर्य समाज के अनुयायी थे... उनके चाचा अजित सिंह, स्वर्ण सिंह और उनके पिता ग़दर पार्टी के सदस्यों करतार सिंह सराभा, ग्रेवाल और हरदयाल के नेतृत्व में थे. अजित सिंह अपने खिलाफ लंबित मामलों की वजह से फारस भागने के लिए मजबूर हुए थे जबकि स्वर्ण सिंह का अपने घर में लाहौर की बोर्स्तले जेल से रिहा  होने के बाद 1910 में देहांत हो गया था... इन सबका प्रभाव भगत सिंह के व्यक्तित्व पर पड़ा था...
12 साल के भगत पर जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड का इतना गहरा असर पड़ा कि वो वहाँ की मिट्टी ले आए थे और सदैव अपने साथ स्मृति चिन्ह के रुप मे रखते थे...
भगत सिंह अन्य सिख छात्रों की तरह लाहौर के खालसा हाई स्कूल में नहीं थे, क्योंकि उनके दादा जी को ब्रिटिश अधिकारियों के लिए स्कूल के संचालकों की स्वामिभक्ति मंजूर नहीं थी.. इसके बजाय, उनके पिता ने दयानंद एंग्लो वैदिक हाई स्कूल में भगत सिंह का दाखिला कराया
आर्य समाजी स्कूल में 13 साल की उम्र में, भगत सिंह ने महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन का पालन शुरू कर दिया.
इस आन्दोलन में भगत सिंह ने खुले तौर पर ब्रिटिश सरकार को ललकारा था... लेकिन चौरा-चौरी की हिंसक घटना के बाद गांधी के आन्दोलन वापस लेने से भगत सिंह नाखुश थे...उसके बाद वह युवा क्रांतिकारी आंदोलन में शामिल हो गए और अंग्रेजों के खिलाफ एक हिंसक आंदोलन की वकालत शुरू की..
1923 में भगत ने मशहूर पंजाब हिंदी साहित्य सम्मेलन द्वारा आयोजित एक निबंध प्रतियोगिता जीत ली, जिससे पंजाब हिंदी साहित्य सम्मेलन के सदस्यों सहित महासचिव प्रोफेसर भीम सेन विद्यालंकार का ध्यान आकर्षित किया..
इस उम्र में उन्होंने प्रसिद्ध पंजाबी साहित्य को उद्धृत किया और पंजाब की समस्याओं पर विचार - विमर्श किया.. उन्होंने कविता और साहित्य जो पंजाबी लेखकों द्वारा लिखा गया था पढ़ा और उनके पसंदीदा कवि सियालकोट से अल्लामा इकबाल थे...
अपनी किशोरावस्था के वर्षों में, भगत सिंह ने लाहौर में नेशनल कॉलेज में अध्ययन शुरू कर दिया है लेकिन जल्दी शादी से बचने के लिए घर से दूर कानपुर भाग आये और गणेश शंकर विद्यार्थी के द्वारा संगठन 'नौजवान भारत सभा' के सदस्य बन गये.. नौजवान भारत सभा में भगत सिंह और उनके साथी क्रांतिकारियों की युवाओं के बीच लोकप्रियता में वृद्धि हुई... इतिहास के प्रोफेसर विद्यालंकार द्वारा परिचय के माध्यम से हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन में शामिल हो गए जो राम प्रसाद बिस्मिल, चंद्रशेखर आजाद और अशफाकुल्ला खान जैसे प्रमुख नेताओं का संगठन था.. यह माना जाता है कि वह कानपुर चले गए थे काकोरी ट्रेन डकैती के कैदियों को आज़ाद कराने के किये लेकिन अज्ञात कारणों से लाहौर वापस आये... 1926 अक्टूबर में दशहरा के दिन लाहौर में एक बम विस्फोट हुआ था, और भगत सिंह को उनकी कथित संलिप्तता के लिए 29 मई 1927 में गिरफ्तार किया गया और 60, 000 रूपये  की जमानत पर उन्हें गिरफ्तारी के पांच सप्ताह के बाद छोड़ा गया था
उन्होंने अमृतसर से प्रकाशित उर्दू और पंजाबी समाचार पत्रों में लिखा और संपादित किया..
सितम्बर 1928 में कीर्ति किसान पार्टी के बैनर तले भारत भर से विभिन्न क्रांतिकारियों की बैठक दिल्ली में हुई जिसके सचिव भगत सिंह थे. उसके बाद की क्रांतिकारी गतिविधियों से भगत सिंह इस संगठन के नेता के रूप में उभरे...
उन्होंने आज़ाद के साथ 'हिंदुस्तान समाजवादी प्रजातांत्रिक संघ' की स्थापना की जिसका उद्देश्य सशस्त्र क्रांति के द्वारा देश में गणतंत्र की स्थापना करना था.. फरवरी 1928 में साइमन कमीशन का अहिंसक विरोध करने वाले लाला लाजपत राय की लाठीचार्ज में मौत का बदला लेने के लिए भगत सिंह ने इसके लिए ज़िम्मेदार ब्रिटिश अधिकारी उपमहानिरीक्षक स्कॉट की हत्या के लिए योजना बनाई लेकिन गलती से सहायक अधीक्षक सांडर्स मारा गया.. जिससे भगत सिंह को लाहौर से मौत की सजा से बचके भागना पड़ा...
ब्रिटिश सरकार की दमनकारी नीतियों के खिलाफ और भारतीय रक्षा अधिनियम के तहत पुलिस को दी गई शक्तियों के विरुद्ध सरकार का ध्यान आकर्षित करने के लिए 8 अप्रैल, 1929 को भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने सेंट्रल असेंबली हॉल में बम फेंक दिया और बम के धमाके का मकसद बहरी सरकार को जगाना था.. दोनों ने वहीँ पर अपनी गिरफ्तारी दी.. वो चाहते तो भाग सकते थे..
भगत सिंह अपने साथी राजनीतिक कैदियों की जेल अधिकारियों द्वारा अमानवीय व्यवहार के विरोध में भूख हड़ताल पर चले गये...

7 अक्टूबर, 1930 को भगत सिंह, सुख देव और राज गुरू को एक विशेष अदालत द्वारा मौत की सजा दी गई.. भारी लोक दबाव और भारत के कुछ राजनीतिक नेताओं द्वारा कई अपीलों के बावजूद, भगत सिंह और उनके साथियों को 23 मार्च, 1931 के शुरुआती घंटों में फांसी पर लटका दिया गया...

वीर भगत सिंह के कुछ पसंदीदा शेर बता रहा हूँ आपको--
जिंदगी  तो  अपने  दम  पर  ही  जी  जाती  है...
दूसरों के कंधों पर तो सिर्फ जनाजे उठाए जाते हैं...
 
जबसे सुना है मरने का नाम ज़िन्दगी है...
सर पे कफ़न लपेटे कातिल को ढूंढते हैं...
 
भगत सिह ने लिखा था कि एक दिन ऐसा आएगा जब उनके विचारो को हमारे देश के नौजवान मार्गदर्शक के रूप मे लेंगे... भगत सिह के शब्दो मे क्रांति का अर्थ है, क्रांति जनता द्वारा जनता के हित मे और दूसरे शब्दो मे 98 प्रतिशत जनता के लिए स्वराज जनता द्वारा जनता के लिए है . भगत सिह जी का यह कहना था कि अपने उद्देश्य पूर्ति के लिए रूसी नवयुवको क़ी तरह हमारे देश के नौजवानो को अपना बहुमूल्य जीवन गाँवो मे बिताना पड़ेगा और लोगो को यह समझाना पड़ेगा कि क्रांति क्या होती है और उन्हें यह समझना पड़ेगा कि क्रांति का मतलब मालिको क़ी तब्दीली नही होगी और उसका अर्थ होगा एक नई व्यवस्था का जन्म एक नई राजसत्ता का जन्म होगा.  यह एक दिन एक साल का काम नही है.  कई दशको का बलिदान ही जनता को इस महान कार्य के लिए तत्पर कर सकता है और इस कार्य को केवल क्रांतिकारी युवक ही पूरा कर सकते है..
क्रांतिकारी का मतलब बम और पिस्तौल से नही है वरन अपने देश को पराधीनता और गुलामी की जंजीरों से
मुक्त और आज़ाद कराना है... भगत सिह क्रांतिकारी क़ी तरह अपने देश को आज़ाद कराने क़ी भावना दिल मे लिए स्वतंत्रता आंदोलन मे शामिल हुए थे... भगत सिह को इन्क़लाबी शिक्षा घर के दहलीज पर प्राप्त हुई थी. भगत सिह के परिवारिक संस्कार पूरी तरह से अंग्रेज़ो के खिलाफ़ थे.. हर हिंदुस्तानी मे यह भावना थी कि किसी तरह अंगरज़ो को हिंदुस्तान से बाहर खदेड़ दिया जाए... जब भगत सिह को फाँसी क़ी सज़ा सुनाई गई थी उन्होंने अपने देश क़ी आज़ादी के लिए हँसते हँसते फाँसी पर झूल जाना पसंद किया और उन्होने अपने देश के लिए अपने प्राणों क़ी क़ुर्बानी दे दी . सरदार भगत सिह ने छोटी उम्र मे अपने प्राणों क़ी क़ुरबानी देकर देश के नवयुवको के सामने मिसाल क़ायम क़ी है, जिससे देश के नवयुवको को प्रेरणा ग्रहण करनी चाहिए..

भारत के महान क्रांतिकारी, महान वीर शहीद भगत सिंह को शत-शत नमन...

वन्दे मातरम्...
जय हिंद... जय भारत...

1 comment:



  1. 'शहीद-ए-आज़म' भगत सिंह के 104 वें जन्मदिवस पर उनके चरणों में शत शत नमन !


    आपको सपरिवार
    नवरात्रि पर्व की बधाई और शुभकामनाएं-मंगलकामनाएं !

    -राजेन्द्र स्वर्णकार

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