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Monday 9 January 2012

अति-महत्वपूर्ण संदेश भारतीय युवाओं के लिए

अति-महत्वपूर्ण संदेश भारतीय युवाओं के लिए:-
उस परम-पिता ने सृष्टि की रचना से ही पुरुष को नारी से सर्वोत्तम बनाया है...
वो चाहे शारीरिक संरचना हो या मानसिक संरचना...
शायद कुछ महिलाओं को ये सत्य ना पचे मगर यही सार्वभौमिक सत्य है...
मादा की अपेक्षा नर हमेशा सुन्दर होता है...
जाने कितने ही उदाहरण हैं ऐसे-
आप मोर को देखिये और फिर मोरनी को देखिये...
आप बैल को देखिये और फिर गाय को देखिये...
आप शेर को देखिये और फिर शेरनी को देखिये...
सब भगवान् की लीला है...
और सृष्टि रचयिता ने हमेशा ही नर को सुन्दरता का प्रतिरूप बनाया है...

फिर ना जाने औरत के सामने आदमी स्वयं को 'हीन' क्यों समझता है.??
वर्तमान परिद्रश्य में देखें तो बहुत ही बुरा हाल है...
आजकल के युवा जो माँ-बाप के सामने जबान चलाते हैं...
हर छोटी-छोटी बात पर 'गुस्सा' और आँखें दिखाते हैं...
मगर जब उनके सामने कोई लडकी आ जाये
तो दुनिया के सबसे सभ्य बन जाते हैं...
'सबसे अच्छा' बनने के लिए वो सब जाल बुनते हैं जो 'लडकी' को पसंद हो...
अपनी सगी बहन को दो रूपये की टॉफी भी नहीं देते होंगे मगर 'गर्ल फ्रेंड' को अपनी पॉकेट मनी में से पचास रूपये की चोकलेट उपहारस्वरूप दे देते हैं...
ये कटु सत्य है...
क्यों... क्यों होता है ऐसा..??
क्यों भारतीय युवा 'दिशाहीन' हो रहा है..??
उनके जीवन का उद्देश्य क्यों भटक रहा है..??
 

क्युकी वर्तमान युवा चरित्रहीनता की तरफ बढ़ रहा है...
वो फिल्मो का अंध-अनुयायी है...
देश की फिल्मे और मीडिया उस देश के लोगो का चरित्र बनाते हैं...
आप ही देखें-
'दम भर जो उधर मुंह फेरे, ओ चंदा' (आवारा-1951) से 'ऊह-ला-ला ला' (डर्टी पिक्चर-2012) तक सारा चरित्र चल-चित्रण सामने है...


मैं तो बस इतना ही कहूँगा-
अपने माँ बाप और देश से ज्यादा प्यार, मोहब्बत और 'लड़की बाजी' को अहमियत देने वाले सभी लोगो के अस्तित्व पर लानत है...
धिक्कार है उनके घटिया विचारों, गन्दी सोच और तुच्छ मानसिकता भरे जीवन को, जो इस देश और धरती के लिए 'बोझ' के सिवाय कुछ भी नही...
भगवान सद्बुद्धि दे भारतीय युवाओं को...
ताकि वो राष्ट्रवादी और देशप्रेमी बन सकें...


"...बारह बरस लौं कूकर जीवै, अरु तेरह लौं जियै सियार।
बरस अठारह क्षत्रिय जीवै, आगे जीवन कौ धिक्कार।।..."

जब धिक्कार वाला जीवन शुरू हो जाये...
यानि कि उम्र अठारह वर्ष से ज्यादा हो जाए...
तो इस धिक्कारता से बचने का केवल एक ही उपाय है...
राष्ट्रवादी बनो... देश के लिए जीओ और देश के लिए मरो...
सबको राष्ट्रवादी बनने के लिए प्रेरित करो और राष्ट्रवाद का प्रचार करो...
कोई भी देश तभी विकसित होता है...
जब उसके देशवासी अपने देश को 'स्वयं' से ज्यादा प्रेम करते हैं...
यानि कि 'राष्ट्रवादी' होते हैं...
मैं सबको 'राष्ट्र के लिए समर्पित' बनाने का एक छोटा सा प्रयास कर रहा हूँ...
और अहसास दिलाना चाहता हूँ सबको कि सारी दुनिया में सबसे बड़ी माँ है-
माँ भारती और उससे प्रेम ही निस्वार्थ और सार्थक प्रेम है...
मेरा कार्य सिर्फ 'जोड़ना' है सबको...
एक बड़ा 'काफिला' चाहिए जो वतन की राहों को 'रौशन' कर दे...
मुझे उम्मीद है कि आप 'सच्चे राष्ट्रवादी' बनेंगे...
और हम सबका केवल एक ध्येय होगा-
"राष्ट्र सर्वप्रथम सर्वोपरि."

मुझसे जुड़ने वाले हर व्यक्ति को बता दूँ कि-
मैं किसी भी राजनीतिक पार्टी या संगठन से कोई सरोकार नहीं रखता...
खिलाफत कर सकता हूँ, समर्थन नहीं करता...
मेरे जीवन का एकमात्र उद्देश्य माँ भारती की सेवा करना है...
लोगो को जागृत करके, बुराई का विरोध करके...
मैं उन सभी विचारों, नीतियों और लोगों का विरोध करता हूँ
जिन पर आदर्शवाद और नैतिकता धिक्कारते हैं...

वन्दे मातरम्...
जय हिंद... जय भारत...

2 comments:

  1. राष्ट्र भक्ति से परिपूर्ण सन्देश

    Gyan Darpan
    ..

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  2. जितेंदर जी,
    आप को बहुत बहुत साधोवाद .आप ने बहुत अच्छा लेख लिखा है .
    आज युवा पाश्चात्य जगत की दौड़ मे अँधा हो रहां है ,
    इसका दुष्परिणाम खुद युवक के सामने उनका जीवन अंधकार म्ये हो जाता है .
    असे बहुत से उद्धरण मेरे पास है खुद मेरे दोस्तों के ..
    उनका जीवन लवर लोवेरी के चक्कर मे पड़ कर पूरा जीवन बर्बाद कर देते है .

    टीवी ,मोबाइल ,इंटर नेट ये सब आज के युवको कोउनके लक्ष्य से पथभरष्ट कर रहे है .
    संयम ख़तम हो रहां है आज के युवको का,
    राष्टवाद,देशप्रेम हमारे युवको को मजाक लगता है .

    जितेंदर जी आज मुझे मैकाले ने सोचा था भारत के लिए आज वो दिखयी दे रहां है .

    आप हार्दिक शुभ-कामना जितेंदर जी ,
    आप सच्चे माँ भारती के सपूत है

    मैं सोच रहां हूँ अगर आप जैसे एक सच्चे राजपूत और देश भक्त को भारत की सेवा करने का मोका दिया जायें तो. भारत का गोरव फिर से लोट आने मे कुछ जादा समय नही लगेगा .

    जय हिंद ,जय माँ भारती


    आप का मित्र
    कँवर विक्रांत सिंह

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