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Monday 7 November 2011

एक सन्देश संसार की सबसे साहसी और स्वाभिमानी कौम 'राजपूत' के नाम...

एक सन्देश संसार की सबसे साहसी और स्वाभिमानी कौम के नाम-
जागो राजपूतों जागो...
अपने कर्तव्यों को पहचानो... अपने आत्म-सम्मान और गौरव का ध्यान करो...
धर्म की ध्वजा को राजपूत महारथियों ने सदा ही सर्वोच्चता दी है...

वीर क्षत्रिय वंशों ने सदियों तक महान 'आर्याव्रत' पर सुशासन किया है..
 

लेकिन अब कांग्रेस और उसके नेताओं ने अपने स्वार्थों के लिए भगवान् श्री राम के अस्तित्व को नकारा है और देश की जनता को जिस 'रामराज्य' का दिवा-स्वप्न दिखाकर 'मूर्ख' बनाया है, उस रामराज्य के संस्थापक पुरुषोत्तम श्री राम 'संपूर्ण' राजपूत ही थे...
 

मानव सभ्यता की वर्तमान पांच सदियों को छोड़ दे तो भारत को 'विश्व गुरु' और 'सोने की चिड़िया' कहलवाने का श्रेय सिर्फ क्षत्रिय राजाओं को जाता है...
महान सम्राट चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य, सम्राट अशोक, सम्राट हर्षवर्धन आदि यशस्वी क्षत्रिय राजाओं का राज्याधिकार संपूर्ण 'अखंड भारत' पर रहा है... 
 

राजपूत वीरों ने इस देश के लिए हमेशा बलिदान दिए हैं...
देश के 'प्रथम स्वतंत्रता सेनानी' महाराणा प्रताप के शौर्य का कोई सानी नहीं है...
वीर पृथ्वी राज चौहान, राजा अनंगपाल तौमर, दिल्ली के अंतिम हिन्दू सम्राट वीर हेमादित्य (हेमू), राणा सांगा, राणा कुम्भा, राजा मालदेव राठोड, वीर दुर्गादास राठोड, वीरवर महाराव शेखा जी और अन्य असंख्य वीर राजपूत राजाओ ने राजपूताना की धरती को अपने साहस और वीरता से सुशोभित किया है...
वर्तमान समय में भी देश की सेना में दुश्मन से लोहा लेने वालों में और वीरगति प्राप्त करने वालों में राजपूत वीर कम नहीं हुए हैं...

मेरे भारत के मुकुट के कोहिनूरो, राजपूत सरदारों...

मेरा इस लेख को लिखने का उद्देश्य अपने मुहं से अपनी बड़ाई करना बिलकुल नहीं है.. बल्कि मेरा लक्ष्य आप सबको आपके अस्तित्व के कडवे सत्य का अहसास कराना है...
आज समय की पुकार है.. कि हमें अपने खोये हुए गौरव को पुनः अर्जित करना है... अपनी बाजुओं को फिर कसना है.. फिर भरना है वो जोश और जूनून अपने सीनों में अपनी मातृभूमि के लिए, अपने राष्ट्र भारत के लिए...

विभिन्न प्रकार के नशों ने, संस्कारों की कमी ने, भौतिक सुखों की लालसा ने और बिना खून पसीना बहाए धनार्जन के दिवा-स्वप्नों ने हम राजपूत वीरों की युवा पीढ़ी को पथ-भ्रष्ट और बर्बाद कर दिया है...
नशे के व्यसन के साथ साथ सबसे बड़ा दुर्गुण कुसंस्कारी होना है... मेरे ऑरकुट मित्र प्रार्थना में आने वाले राजपूतों में 80 % लोग अश्लील होते हैं या फिर उनके मित्र अश्लील होते हैं या फिर उन्होंने ऐसी कम्युनिटी ज्वाइन कर रखी होती है जिसे देखते ही शर्म आ जाये... कुछ ऐसे भी रहे हैं जो बाद में अश्लील सामग्री के साथ पकडे गए और मुझे उन सबको हटाना पड़ा.. मेरे 800 दोस्तों में आठ राजपूत युवा भी नहीं हैं जो राष्ट्रवादी हों.??
यही हाल फेस बुक पर है... किसी राजपूत युवा ने अंग्रेजी शराब या बीयर की फोटो लगा दी तो "CHEERS बन्ना हुकुम" के प्रत्युत्तर इकट्ठे हो जाते हैं.. जैसे उनके हाथ में ही जाम आ गया हो..

मैं जब भी ये सब देखता हूँ और सोचता हूँ तो मुझे इस शूर-वीर जाति का पतन ही नहीं काल समक्ष दिखता है.?
राजपूत युवा हाथ में शराब की बोतल और तलवार लेकर जीप या बाईक पर बैठकर तस्वीर खिंचवाना शान समझता है.. जबकि वास्तव में वो फोटो उनके चारित्रिक ह्रास का प्रमाण होती है..
इन युवाओं को अपने जीवन और समाज की सच्चाई भी नहीं दिखती कि राजपूतों के लिए ना कोई आरक्षण है, ना कहीं सरकारी रोज़गार है, ना गरीब राजपूतों को किसी सरकारी योजना से मदद मिलती है...
और सबसे कडवा सत्य ये है कि... ना ही हम संगठित हैं... 

और ऊपर से युवा-शक्ति 'करेला नीम चढ़ा'...???

इस देश में किसी एक जाति विशेष का इतना बड़ा सामाजिक, आर्थिक और चारित्रिक पतन कभी नहीं हुआ... जितना राजपूत समाज ने पिछले सभी लोकत्रांत्रिक वर्षों में अपना सर्वस्व खोया है... और वो कहते हैं ना 'रस्सी जल गई पर मरोड़ नहीं गई' वो अब भी राजपूतों के साथ है... झूठी शान ने कभी आगे बढ़ने नहीं दिया.. विभिन्न तरह के सामाजिक व्यसनों ने उठने ना दिया... और अब ये हाल है... भूमिहीन राजपूतों की संख्या बढती ही जा रही है...
 

अब भी समय है.. उठो.. जागो.. टटोलो अपने स्वाभिमान को.. कि हम क्या हुआ करते थे.. और आज हमारे हालात क्या हैं.??
हम आज भी संगठित हो जाये और सबके ह्रदय में राष्ट्रवाद की भावना जागृत हो जाए तो अपना भारत आज भी, अब भी 'राजपूताना' बन सकता है...
आवश्यकता है एक बड़े और अटूट संगठन की और प्रबल इच्छा-शक्ति की...

इन्कलाब जिंदाबाद...
वन्दे मातरम...
जय हिंद... जय भारत...


पैलो छत्री धरम, वचन दे नही पलटै..
व्है
साँचो रजपूत, सीस दे बोली सटै..
दूजो
छत्री धरम, जुड्योड़ो जंग ना भज्जै..
कर
थांगी किरपाण, प्राण रै साथै तज्जै..
तीजो
छत्री धरम, आण पै जद अड़ ज्यावै..
आँख
मींचकै जणा, काळ स्यूं भिड़ ज्यावै..
चौथो
छत्री धरम, नहीं सरणागत मोडै..
पड्यो
बखत निज सांस, हित सरणागत तोडै..
धरम
पांचवो छत्री, पीठ पर वार करै नीं..
सत्रु
  निहत्थे कदैसीस तलवार धरै नीं..
छट्ठो
छत्री धरम, जीवै निज हित-अपणहित..
हँसतो
-हँसतो सीस, चढ़ादे मातभौम हित..
नौ
वों छत्री धरम, कदै मिथ्या ना बोलै..
सदा
न्याय-अन्याय, सत्य रै पलडै तोलै..
धरम
ख़ास इक औरगिण्योजा छत्री लेखै..
सत्रू
सामैं कदे, नहीं बो  घुटणा टेकै..




4 comments:

  1. Great Article Jitendra. I Salute Your Thoughts for Bharat Mata & Hindu Cause. Keep It Up.

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  2. बहुत बढ़िया जीतेन्द्र बना......आप ने राजपूत युवाओं को उनका आइना दिखा दिया हे. अब यह उनपर निर्भर करता हे की वो समय के साथ चलें और खुद को बदलें या अपनी अकड़ में बर्बाद हो जायें.
    में आपके ब्लॉग को ज्वाइन कर रहा हूँ.चलिए कम से कम आपको एक राजपूत मित्र तो मिला, जो आपके विचारों से सहमत हे. बस आप इसी तरह से अपना काम करते रहिये ....कारवां चलता जायेगा और लोग जुड़ते जायेंगे.

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  3. ऊपर से युवा-शक्ति 'करेला नीम चढ़ा' एकदम सच लिखा है

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