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Wednesday, 25 July 2012

"तुम मुझे क्या खरीदोगे... मैं तो मुफ्त हूँ.!!"


"तुम मुझे क्या खरीदोगे... मैं तो मुफ्त हूँ.!!"
'मुफ्त' होना ही दुःख है आम आदमी का... उसके सिवाय इस देश में कुछ भी मुफ्त नही है और गरीब की औकात इस महंगाई का सामना करने की अब रही नही.?

देश की जनता का बुरा हाल और मरना मुहाल कर दिया है, इस लोकद्रोही कांग्रेस सरकार ने... 
हर चीज के दाम आसमान छू रहे हैं... किसी पर कोई नियंत्रण नही है.??
आम आदमी का दिन-रात बढती खाद्य महंगाई से जीना मुश्किल हो गया है... सरकार जनहित ताक पर रखकर हाथ पर हाथ धरे बैठी है...

जबकि भ्रष्टाचार के लिए सभी मंत्रियों के हाथ खुले छोड़ रखे हैं...
आर्थिक विषमता की खाई असीमित होती जा रही है...
गरीब भूखे मर रहे हैं और अमीर करोडपति से अरबपति हो रहे हैं...

जनता के पास कोई विकल्प भी नही है 2014 से पहले...
"एक दिन की मूर्खता से पांच साल तक सजा मिलती है."
 --यही तथाकथित लोकतंत्र का कडवा और काला सत्य है...

आज के गरीब की हिम्मत नही है और ना ही उसका वश चलता है कि वो जुल्म का विरोध करे...  और जिनको डटकर विरोध करना चाहिए, वो मौन हैं और घरों में दुबके बैठे हैं...
इन सबके लिए 'दुष्यंत कुमार जी' ने कहा है-

"कहीं तो धूप की चादर बिछाकर बैठ गए...
कहीं तो छाँव सिरहाने लगाकर बैठ गए...
जब लहुलुहान नजारों का जिक्र आया तो,
शरीफ लोग उठे और दूर जाकर बैठ गए..."

देश के इन्हीं तथाकथित 'शरीफ' लोगों ने अनैतिक, अन्याय और अत्याचार के खिलाफ प्रतिक्रिया देना बंद कर दिया है...
जिस दिन देश व समाज के सभ्य व बुद्धिजीवी लोग सरकार के भ्रष्टाचार, अत्याचार व दुराचार के खिलाफ आवाज उठा देंगे...
इस देश को लूटने वाले डकैतों को अपना बोरिया-बिस्तर बाँधना ही पडेगा...
आवश्यकता है देश की जनता के संगठित होने की...

'राष्ट्र सर्वप्रथम सर्वोपरि'
वन्दे मातरम्...
जय हिंद... जय भारत...

Sunday, 22 July 2012

'कोकरोच और कव्वा' बनाम 'हिन्दू और मुस्लिम'

एक कीट होता है कोकरोच, इनकी ख़ास आदत होती है... जब भी कोई साथी कोकरोच ऊपर चढ़ता है...टांग पकड़ कर खींच लेते हैं... एक कोकरोच मरेगा तो दूसरा देखने भी नही आएगा... संगठन नाम की कोई चीज नही होती...
एक पक्षी होता है कव्वा... शक्ल व वाणी का कर्कश, चालाक और ख़ास बात ये कि एक कव्वे की मौत पर अठारह कोस के कव्वे इकट्ठे होकर कांव-कांव मचाते हैं और अपने संगठन की मिसाल बनाते हैं...

भारत में कोकरोच हैं हिन्दू... रोज मरते हैं... जुल्म सहते हैं.. अन्याय झेलते हैं मगर संगठित नही होते...

उदारत
ा की आड़ में नपुंसकता छुपाते हैं, कटते हैं, मरते हैं मगर उफ़ तक नही करते...
जनसंख्या है सौ करोड़, मगर कर्म हैं विलुप्त प्रजाति जैसे...

जबकि कव्वे हैं मुसलमान- कट्टर, कर्कश और कठोर... संगठन इस तरह का कि स्वीडन में मुहम्मद का कार्टून बनता है और दंगे होते हैं दिल्ली में...

जनसंख्या है बीस करोड़, मगर कर्म हैं तालीबानी...

समझने की बात ये हैं कि कव्वा हमेशा कोकरोच को खाता है... पिछली एक सहस्त्राब्दी से तो यही हो रहा है...

जयचंद के वंशज हैं वो लोग जो 'अमन की आशा' की आशा में भेड़ की खाल में सियारों को और घर में बैठे तालिबानी पैरोकारों को शह देते हैं...
मुस्लिम तुष्टिकरण के लिए देश में साम्प्रदायिक दंगों की स्थिति बनाते हैं...

जो हाल दिल्ली के सुभाष पार्क का हुआ है- मुल्लों का अतिक्रमण व एक और बाबरी मस्जिद की धमकी...

गैर जमानती वारंट के बाद भी देशद्रोही बुखारी का बाल बांका ना होना...
जबकि हिन्दू संतों पर अत्याचार... बाबा रामदेव पर हमला... आचार्य बालकृष्ण की गिरफ्तारी...
ये सब कांग्रेस की मुल्ला तुष्टिकरण नीति का परिणाम है...

निष्कर्ष रूप में यही कहूँगा, इन सबके लिए उत्तरदायी कारण सिर्फ एक है-- असंगठित, छिन्न-भिन्न हिन्दू...


समस्त हिन्दुओं...

इसके लिए तुम स्वयं जिम्मेदार हो... तुम्हारे अन्दर का पुरुषार्थ खत्म हो चुका है..
और स्वार्थ जाग गया है.. तुम्हे देश और सनातन हिन्दू धर्म से कोई लेना देना नही.??
तुम सर पर रूमाल बांधकर मुल्लों की लाशों पर सर पटकते ही मर जाओगे...
तुम्हारी पिछली पीढ़ियों ने 'शर्म निरपेक्षता' को सींचा है.??
और वो अब बबूल बनकर तुम्हारी औलादों को चुभ रही है और चुभती ही रहेगी..
अगर 'नपुंसक चुप्पियों' से उठकर संगठित नहीं हुए तो..??
'कायर अहिंसक मनोवृति और झूठी शर्म निरपेक्षता' से निकलकर संगठित नहीं हुए तो..??
आने वाली पीढ़ी को क्या जवाब दोगे..???
अपनी 'मृत आत्मा' के किसी कोने में 'नकली धर्म-निरपेक्षता' की नींद में सोये हुए 'छोटे से जमीर के टुकड़े' से अवश्य पूछना.??



 






 






जय श्री राम...
'राष्ट्र सर्वप्रथम सर्वोपरि'
वन्दे मातरम्...
जय हिंद... जय भारत...